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माँ

संदेह के बादलों से
भय की हो रही है बारिश
चू रही है छत
सील रहा है सब कुछ
बन रही है
चिन्ता की रेखायें
मेरे ललाट के आस पास
लेकिन
मन के एक कोने में
दूर कही
सुनहरी धूप खिलने को है
जो हटा देगी घने बादलों को
रोक देगी बरसते पानी को
क्योकि
एक नया इंद्रधनुष बनने को है
फिर भी
ना जाने क्यो
अनजाना सा लग रहा है क़यास
कभी बिखर तो कभी बंध रही है मेरी आस
मन ही नहीं
अब तो
मेरी चौखट भी रहने लगी है उदास
क्योकि
पल पल कर रहा है छलनी मुझे
मेरी माँ को खोने का अहसास

टिप्पणियाँ

एक अच्छी प्रस्तुति ....सुन्दर रचना ..माँ पर कुछ भी लिखो कम ही लगता है
आत्ममुग्धा ने कहा…
धन्यवाद संजयजी,आपने बिल्कुल सच कहा,माँ पर जितना लिखो कम लगता है ।
बहुत सुंदर अहसास.
आत्ममुग्धा ने कहा…
माफ़ कीजियेगा राजीवजी,सराहने के लिये आपका आभार लेकिन माँ को खोने का अहसास कदापि सुंदर नहीं हो सकता यह बहुत पीड़ादायक क्षण होता है।
Himkar Shyam ने कहा…
किसी के लिए उसकी माँ की अनुपस्थिति बहुत पीड़ादायक होती है. माँ की बातें, नसीहतें, प्यार को भुलाया जाना असंभव है. माँ हमेशा आसपास ही होती है.
मार्मिक ... माँ को खोने का एहसास उदासीन कर देता है हर पल को ... माँ के यादें नमी सी ले आती हैं ...
आत्ममुग्धा ने कहा…
आभार आप सभी का 🙏

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