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हर रोज की तरह,आज भी माॅरनिंग वाॅक के बाद ,डेली न्यूज़ सुनते हुए अपने काम निपटा रही थी।यह मेरा रोज का नियम है,न्यूज़ बिना मेरी इजाज़त के मेरे कानों में जाती रहती है क्योंकि ड्राॅईंगरूम में टीवी पर सिर्फ न्यूज़ ही चलती है। मैं बिना डिस्टर्ब हुए अपने कामों में व्यस्त रहती हुँ। हाँ,कुछ ताज़ातरीन ख़बरें ज़रूर मेरी जानकारी में इज़ाफ़ा कर देती है। लेकिन...............आज की ख़बर ने मेरा दिल दहला दिया। मैं पूरी तरह से भावशुन्य हो गयी और अभी तक हुँ।
एक पाकिस्तानी नागरिक हाथ में एक कटा हुआ िसर लेकर घुम रहा था,न्यूज़ के मुताबिक़ वे जश्न मना रहे थे। संदेह है कि िसर हमारे वीर जवान हेमराज सिंह का हो सकता है,पिछले वर्ष बिना िसर के जिनका अंतिम संस्कार किया गया था। इस ख़ौफ़नाक और निर्मम करतुत को देखकर ना चुप रहते बन पा रहा है और ना ही बोलते। मैं स्तब्ध हुँ और व्यथित भी कि परिवार वालों पर क्या बीत रही होगी........?
क्या हैवानियत से उपर का कोई शब्द है इस करतुत को परिभाषित करने के लिये.............?

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इससे ज्यादा बर्बरता और क्या होगी ... मानवता शर्म से झुक जाती है ...

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उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

सीख जीवन की

ये एक बड़ा सा पौधा था जो Airbnb के हमारे घर के कई और पौधों में से एक था। हालांकि हमे इन पौधों की देखभाल के लिये कोई हिदायत नहीं दी गयी थी लेकिन हम सबको पता था कि उन्हे देखभाल की जरुरत है । इसी के चलते मैंने सभी पौधों में थोड़ा थोड़ा पानी डाला क्योकि इनडोर प्लांटस् को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और एक बार डाला पानी पंद्रह दिन तक चल जाता है। मैं पौधों को पानी देकर बेफिक्र हो गयी। दूसरी तरफ यही बात घर के अन्य दो सदस्यों ने भी सोची और देखभाल के चलते सभी पौधों में अलग अलग समय पर पानी दे दिया। इनडोर प्लांटस् को तीन बार पानी मिल गया जो उनकी जरुरत से कही अधिक था लेकिन यह बात हमे तुरंत पता न लगी, हम तीन लोग तो खुश थे पौधों को पानी देकर।      दो तीन दिन बाद हमने नोटिस किया कि बड़े वाले पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर लटक गये, हम सभी उदास हो गये और तब पता लगा कि हम तीन लोगों ने बिना एक दूसरे को बताये पौधों में पानी दे दिया।       हमे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, बस सख्त हिदायत दी कि अब पानी बिल्कुल नहीं देना है।      खिलखिलाते...