"ऐ अँधेरे देख ले मुँह तेरा काला हो गया ,माँ ने आँखे खोल दी घर में उजाला हो गया "
मुनव्वर राणा की ये पंक्तियाँ कितनी सच है । लेकिन जिस घर में माँ की मौजूदगी नहीं हो वहाँ तो अंधेरा ही अंधेरा है,इस अंधेरे में माँ की यादें ही एक टिमटिमाती सी लौ है,जिसके सहारे जिन्दगी को जिया जा सकता है। मेरी माँ की याद में........एक संक्षिप्त जीवन परिचय
मेरी माँ......एक धार्मिक,कर्मठ,निडर,आत्मविश्वासी और सच्चा सादा व्यक्तित्व !
छः भाई बहनों में मम्मी चौथे नम्बर पर थी। मेरा ननिहाल सदैव से ही एक सुखी सम्पन्न परिवार रहा है।मेरी नानी बेहद धार्मिक और अनुशासनप्रिय महिला थी।नानाजी मेहनती और ईमानदार तो थे ही ,अपने अच्छे कर्मों की वजह से बहुत मान और लोकप्रियता भी पाते थे। आज भी उनकी लोकप्रियता बरक़रार है। मम्मी ने शायद नानी और नानाजी दोनो के गुणों को ही अपने अंदर समाहित किया था......िबल्कुल उनके जैसे....बेहद धार्मिक,अनुशासनप्रिय,ईमानदार,स्वाभिमानी,मितव्ययी,पढ़ने की शौक़ीन,नयी चीज़ें जानने को उत्सुक,सदैव सत्यवादी और बिल्कुल नानाजी की ही तरह साधारण पहनावा। भाई बहनों में मम्मी सबसे लम्बी थी,जबकि मम्मी की हाईट सिर्फ पाँच फ़ुट ही थी।
तेरह साल की बहुत कम अवस्था में मम्मी का विवाह पापा से हो गया,पापा भी सोलह वर्ष के किशोर ही थे उस समय। मम्मी बताया करती थी कि उनका गौना विवाह के एक वर्ष उपरान्त ही हुआ,लेकिन गृहस्थी संभालने के लिये चौदह वर्ष की आयु पर्याप्त नहीं थी। मम्मी का नया जीवन शुरू हो रहा था,थोड़ा पथरीला था लेकिन पापा हर डगर मम्मी के साथ थे। हम तीनों बहन भाईयों का जन्म हुआ,माँ बापुजी और मम्मी पापा के सान्निध्य में हम बड़े हो रहे थे।
मम्मी उस वक़्त बहुत सुंदर दिखती थी और एक बड़ी फ़्रेम का चश्मा लगाया करती थी,और उसी की वजह से वे क़तई घरेलु महिला नहीं दिखती थी,आत्मविश्वासी तो खैर वे सदैव से ही थी।
मुझे याद है बचपन में जब भी कभी मैं मम्मी से टाईम पुछती थी तो मम्मी अपना रेडियो चालु करती और समय बता देती थी। मुझे समझ में नहीं आता कि रेड़ियो से समय कैसे पता चलता है,मैं बहुत बार रेडियो आॅन करके देखा भी करती थी।बाद में जाकर समझ में आया कि रेडियो पर आ रहे कार्यक्रमों से मम्मी समय का अंदाज़ा लगा लेती थी। मम्मी रेडियो सुनने और किताबें पढ़ने की बहुत शौक़ीन थी। उपन्यासों का अच्छा ख़ासा संग्रह था उनके पास,जिनमें से कुछ नानाजी की धरोहर थे। मम्मी को नयी जगहों पर घुमने जाना बहुत अच्छा लगता था,इसी के चलते उन्होंने कश्मीर,उटी,मैसूर,बेंगलोर,मुम्बई,दिल्ली,गुजरात,मथुरा,आगरा जैसे स्थानों का भ्रमण किया। अपनी धार्मिक प्रवृत्ति के चलते जितने अधिक मंदिर और तीर्थस्थलों के वे दर्शन कर सकती थी,उसने अपने जीवन में किये।
मम्मी हमेशा सच बोलती थी और बिल्कुल खरा सच,बिना झुठ का सहारा लिये। किसी के भी मुँह पर कहने का साहस रखती थी। पीठ पीछे बात बनाना न उसका शग़ल था न शौक़। यही बात उसने हम बच्चों को सिखायी,मम्मी जैसे गुण तो
खैर मुझमे नहीं है लेकिन आज,मम्मी जाने के बाद उनके पदचिन्हों का अनुसरण करने को मन करता है,उनका जीवन हम सब के लिये आज एक आदर्श है।
मम्मी हमेशा लेने की बजाय देने में विश्वास करती थी। ईश्वर से वे एक ही प्रार्थना करती थी कि मेरा हाथ हमेशा देने की स्थिति में रहे लेने की नहीं और उनके ईश्वर ने सदैव उनका साथ भी दिया। सच बोलना और देना उनके जीवन जीने के आधार स्तम्भ रहे है। उसका ईश्वर ही जाने कि उसके गुप्तदानों की फ़ेहरिस्त कितनी लम्बी रही होगी।किसी भी पीड़ित के हाथ में चुपके से कुछ मदद डाल देना उसका स्वभाव रहा था। मदद भी सदैव अपनी निजी जमापूंजी से ही करती थी,कभी किसी पारिवारिक सदस्य पर दबाव नहीं डाला। जीवन के संघर्षों ने उसे अति धार्मिक बना दिया था,वह हनुमान की परम भक्त थी।
सच कहु उसकी सारी पुजा हमारे ही पाप मिटाती थी,उसकी आरती हमारे ही सिरों पर हाथ फेरती थी,उसकी परिक्रमायें हमारे जीवन की राह में फूल बिछाती थी,उसका हनुस्मरण और सुंदरकांड के पाठ हमारे ही कष्टों को दुर करते थे,उसके मंदिर में विराजमान मुसकाते लड्डू गोपाल घर में किलकारीयाँ गुंजाते थे,उसका बेबाक़ सच बोलना हमे सुरक्षा के घेरे में महसूस कराता था,अपने इष्ट के आगे झुकता उसका माथा हमे ही ऊँचा उठाने के लिये झुकता था,उसके बालों में चमकती चाँदी हमे सोना बनाती थी,उसके सिलवटें पड़े सूती वस्त्र हमे जीवन के पाठ पढ़ाते थे,उसकी इच्छाएँ हमारी खुशियों के इर्द गिर्द ही थी और शायद उसका पंचतत्व में विलीन होना भी हम सब के लिये एक बहुत बड़ा सबक़ ही था। उसके आत्मविश्वासी चरित्र ने हमे कभी डरना नहीं सिखाया था,उसका पूरा जीवन परिवार को ही समर्पित था। ऐसी मेरी माँ को मेरा नित नित नमन !
मुनव्वर राणा की ये पंक्तियाँ कितनी सच है । लेकिन जिस घर में माँ की मौजूदगी नहीं हो वहाँ तो अंधेरा ही अंधेरा है,इस अंधेरे में माँ की यादें ही एक टिमटिमाती सी लौ है,जिसके सहारे जिन्दगी को जिया जा सकता है। मेरी माँ की याद में........एक संक्षिप्त जीवन परिचय
मेरी माँ......एक धार्मिक,कर्मठ,निडर,आत्मविश्वासी और सच्चा सादा व्यक्तित्व !
छः भाई बहनों में मम्मी चौथे नम्बर पर थी। मेरा ननिहाल सदैव से ही एक सुखी सम्पन्न परिवार रहा है।मेरी नानी बेहद धार्मिक और अनुशासनप्रिय महिला थी।नानाजी मेहनती और ईमानदार तो थे ही ,अपने अच्छे कर्मों की वजह से बहुत मान और लोकप्रियता भी पाते थे। आज भी उनकी लोकप्रियता बरक़रार है। मम्मी ने शायद नानी और नानाजी दोनो के गुणों को ही अपने अंदर समाहित किया था......िबल्कुल उनके जैसे....बेहद धार्मिक,अनुशासनप्रिय,ईमानदार,स्वाभिमानी,मितव्ययी,पढ़ने की शौक़ीन,नयी चीज़ें जानने को उत्सुक,सदैव सत्यवादी और बिल्कुल नानाजी की ही तरह साधारण पहनावा। भाई बहनों में मम्मी सबसे लम्बी थी,जबकि मम्मी की हाईट सिर्फ पाँच फ़ुट ही थी।
तेरह साल की बहुत कम अवस्था में मम्मी का विवाह पापा से हो गया,पापा भी सोलह वर्ष के किशोर ही थे उस समय। मम्मी बताया करती थी कि उनका गौना विवाह के एक वर्ष उपरान्त ही हुआ,लेकिन गृहस्थी संभालने के लिये चौदह वर्ष की आयु पर्याप्त नहीं थी। मम्मी का नया जीवन शुरू हो रहा था,थोड़ा पथरीला था लेकिन पापा हर डगर मम्मी के साथ थे। हम तीनों बहन भाईयों का जन्म हुआ,माँ बापुजी और मम्मी पापा के सान्निध्य में हम बड़े हो रहे थे।
मम्मी उस वक़्त बहुत सुंदर दिखती थी और एक बड़ी फ़्रेम का चश्मा लगाया करती थी,और उसी की वजह से वे क़तई घरेलु महिला नहीं दिखती थी,आत्मविश्वासी तो खैर वे सदैव से ही थी।
मुझे याद है बचपन में जब भी कभी मैं मम्मी से टाईम पुछती थी तो मम्मी अपना रेडियो चालु करती और समय बता देती थी। मुझे समझ में नहीं आता कि रेड़ियो से समय कैसे पता चलता है,मैं बहुत बार रेडियो आॅन करके देखा भी करती थी।बाद में जाकर समझ में आया कि रेडियो पर आ रहे कार्यक्रमों से मम्मी समय का अंदाज़ा लगा लेती थी। मम्मी रेडियो सुनने और किताबें पढ़ने की बहुत शौक़ीन थी। उपन्यासों का अच्छा ख़ासा संग्रह था उनके पास,जिनमें से कुछ नानाजी की धरोहर थे। मम्मी को नयी जगहों पर घुमने जाना बहुत अच्छा लगता था,इसी के चलते उन्होंने कश्मीर,उटी,मैसूर,बेंगलोर,मुम्बई,दिल्ली,गुजरात,मथुरा,आगरा जैसे स्थानों का भ्रमण किया। अपनी धार्मिक प्रवृत्ति के चलते जितने अधिक मंदिर और तीर्थस्थलों के वे दर्शन कर सकती थी,उसने अपने जीवन में किये।
मम्मी हमेशा सच बोलती थी और बिल्कुल खरा सच,बिना झुठ का सहारा लिये। किसी के भी मुँह पर कहने का साहस रखती थी। पीठ पीछे बात बनाना न उसका शग़ल था न शौक़। यही बात उसने हम बच्चों को सिखायी,मम्मी जैसे गुण तो
खैर मुझमे नहीं है लेकिन आज,मम्मी जाने के बाद उनके पदचिन्हों का अनुसरण करने को मन करता है,उनका जीवन हम सब के लिये आज एक आदर्श है।
मम्मी हमेशा लेने की बजाय देने में विश्वास करती थी। ईश्वर से वे एक ही प्रार्थना करती थी कि मेरा हाथ हमेशा देने की स्थिति में रहे लेने की नहीं और उनके ईश्वर ने सदैव उनका साथ भी दिया। सच बोलना और देना उनके जीवन जीने के आधार स्तम्भ रहे है। उसका ईश्वर ही जाने कि उसके गुप्तदानों की फ़ेहरिस्त कितनी लम्बी रही होगी।किसी भी पीड़ित के हाथ में चुपके से कुछ मदद डाल देना उसका स्वभाव रहा था। मदद भी सदैव अपनी निजी जमापूंजी से ही करती थी,कभी किसी पारिवारिक सदस्य पर दबाव नहीं डाला। जीवन के संघर्षों ने उसे अति धार्मिक बना दिया था,वह हनुमान की परम भक्त थी।
सच कहु उसकी सारी पुजा हमारे ही पाप मिटाती थी,उसकी आरती हमारे ही सिरों पर हाथ फेरती थी,उसकी परिक्रमायें हमारे जीवन की राह में फूल बिछाती थी,उसका हनुस्मरण और सुंदरकांड के पाठ हमारे ही कष्टों को दुर करते थे,उसके मंदिर में विराजमान मुसकाते लड्डू गोपाल घर में किलकारीयाँ गुंजाते थे,उसका बेबाक़ सच बोलना हमे सुरक्षा के घेरे में महसूस कराता था,अपने इष्ट के आगे झुकता उसका माथा हमे ही ऊँचा उठाने के लिये झुकता था,उसके बालों में चमकती चाँदी हमे सोना बनाती थी,उसके सिलवटें पड़े सूती वस्त्र हमे जीवन के पाठ पढ़ाते थे,उसकी इच्छाएँ हमारी खुशियों के इर्द गिर्द ही थी और शायद उसका पंचतत्व में विलीन होना भी हम सब के लिये एक बहुत बड़ा सबक़ ही था। उसके आत्मविश्वासी चरित्र ने हमे कभी डरना नहीं सिखाया था,उसका पूरा जीवन परिवार को ही समर्पित था। ऐसी मेरी माँ को मेरा नित नित नमन !
टिप्पणियाँ
माँ के प्रति आपके उदगार पढ़ कर अच्छा लगा ...
मेरी हर पोस्ट पर टिप्पणी के रुप में आपकी उपस्थिति ना सिर्फ मुझे प्रोत्साहित करती है बल्कि इस कठिन समय में सांत्वना भी दे रही है..............