सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

निर्भया


मेरी खिड़की से आ रही गड़गड़ाहट आज
उपर गरज रहे बादल
तो नीचे धुम धड़ाका विसर्जन का
झुम रहे गणपति भी
गा रहे सब
गणपति बप्पा मोरया
लेकिन मेरा मन
खोया है कही ओर
चिल्ला चिल्ला के कह रहा
निर्भया....निर्भया....निर्भया
मुझे नींद ना आयेगी आज
जब तक दरिंदों के सर
फांसी का ना सजेगा ताज
देश का सम्मान है तु
तु ही है मेरा भी मान
मिला अब तो तुझे
बप्पा का भी आशिर्वाद
आसमां से बुंद-बुंद बरस रही तु
मत रो,लाडली
अब खौल रहा सबका लहु
तु चिन्ता मत कर निर्भया
तेरे गुनहगारों को मिलेगी सजा
खिड़की से आ रही आवाज
गणपति बप्पा मोरया
....
फैसले के इंतजार
है तेरी निर्भया......

टिप्पणियाँ

  1. नए क़ानून के अनुसार उन्हें फांसी ही मिलनी चाहिए ... वैसे भी उनकी आत्मा तो मन ही चुकी है जितनी जल्दी शरीरी मृत्यु हो उतना ही चैन मिलेगा निर्भय की आत्मा को ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. धन्यवाद नासवाजी,नये कानून के तहत् उन्हे फांसी ही मिलेगी....लेकिन अगर ऐसा नहीं हुआ तो आक्रोश फूट पड़ेगा....क्योकि यह एक ऐतिहासिक फैसला होगा.....

      हटाएं
  2. तेरे गुनहगारों को मिलेगी सजा
    खिड़की से आ रही आवाज
    जरूर फांसी की सजा मिलेगी .

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी
    पोस्ट हिंदी
    ब्लॉगर्स चौपाल
    में शामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल
    {बृहस्पतिवार}
    12/09/2013
    को क्या बतलाऊँ अपना
    परिचय ..... - हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल - अंकः004
    पर लिंक की गयी है ,
    ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें. कृपया आप भी पधारें, आपके
    विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें. सादर ....राजीव कुमार झा

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत धन्यवाद राजीवजी,यह मेरे लिये सम्मान की बात है.....आभार आपका

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

पलाश

एक पेड़  जब रुबरू होता है पतझड़ से  तो झर देता है अपनी सारी पत्तियों को अपने यौवन को अपनी ऊर्जा को  लेकिन उम्मीद की एक किरण भीतर रखता है  और इसी उम्मीद पर एक नया यौवन नये श्रृंगार.... बल्कि अद्भुत श्रृंगार के साथ पदार्पण करता है ऊर्जा की एक धधकती लौ फूटती है  और तब आगमन होता है शोख चटख रंग के फूल पलाश का  पेड़ अब भी पत्तियों को झर रहा है जितनी पत्तीयां झरती जाती है उतने ही फूल खिलते जाते है  एक दिन ये पेड़  लाल फूलों से लदाफदा होता है  तब हम सब जानते है कि  ये फाग के दिन है बसंत के दिन है  ये फूल उत्सव के प्रतीक है ये सिखाता है उदासी के दिन सदा न रहेंगे  एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी  उदासी को उत्सव में बदल देखी बस....उम्मीद की लौ कायम रखना 

जिंदगी विथ ऋचा

दो एक दिन पहले "ऋचा विथ जिंदगी" का एक ऐपिसोड देखा , जिसमे वो पंकज त्रिपाठी से मुख़ातिब है । मुझे ऋचा अपनी सौम्यता के लिये हमेशा से पसंद रही है , इसी वजह से उनका ये कार्यक्रम देखती हूँ और हर बार पहले से अधिक उनकी प्रशंसक हो जाती हूँ। इसके अलावा सोने पर सुहागा ये होता है कि जिस किसी भी व्यक्तित्व को वे इस कार्यक्रम में लेकर आती है , वो इतने बेहतरीन होते है कि मैं अवाक् रह जाती हूँ।      ऋचा, आपके हर ऐपिसोड से मैं कुछ न कुछ जरुर सिखती हूँ।      अब आते है अभिनेता पंकज त्रिपाठी पर, जिनके बारे में मैं बस इतना ही जानती थी कि वो एक मंजे हुए कलाकार है और गाँव की पृष्ठभूमि से है। ऋचा की ही तरह मैंने भी उनकी अधिक फिल्मे नहीं देखी। लेकिन इस ऐपिसोड के संवाद को जब सुना तो मजा आ गया। जीवन को सरलतम रुप में देखने और जीने वाले पंकज त्रिपाठी इतनी सहजता से कह देते है कि जीवन में इंस्टेंट कुछ नहीं मिलता , धैर्य रखे और चलते रहे ...इस बात को खत्म करते है वो इन दो लाइनों के साथ, जो मुझे लाजवाब कर गयी..... कम आँच पर पकाईये, लंबे समय तक, जीवन हो या भोजन ❤️ इसी एपिसोड में वो आगे कहते है कि मेरा अपमान कर