आज बिटिया का १४ वां जन्मदिन है,आज के दिन मेरे मन का ये कोना उसके नाम
बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती है
घुटनों के बल चलती वो कब दौड़ने लगी,
मेरी अंगुली पकड़ कर चलने वाली,
कब मेरे कांधे आ लगी
मुझे पता ही ना चला
बिटिया अब सयानी हो चली है
पेंसील की जगह पैन चलाने लगी है
शब्दों की तुकबंदी के साथ कलम से भी
अब वो खेलने लगी है
अब वो तुतलाती नहीं
अंग्रेजी में बड़बड़ाती है
परिवार के नन्हे बच्चों को
टीचर बनकर पढ़ाती है
घर में, स्कुल में दादागिरी दिखलाती है
लेकिन सच कहु,हर जगह
खिचड़ी में घी के जैसे घुल जाती है
उसके छोटे छोटे सपनों में
खुशियाँ बड़ी समायी है
हर जन्मदिन पर वो एक साल बड़ी हो जाती है
बिल्कुल सच है
बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती है
बच्चों में जान उसकी अटकती
नहीं किसी से वो डरती
हम सबकी वो दुलारी है
सहेलियों को भी उतनी ही प्यारी है
मेरे घर की वो धुरी
आँगन में तितली सी मंडराती हैं
नाक पे बैठा गुस्सा उसको
डांट बड़ी पड़वाता है
दुजे ही पल वो मुसकाती है
भाई को बड़ी धमकाती है
कभी कभी मुझसे भी होड़ कर जाती है
जब दो लाईने लिखकर
निबन्ध में प्रमाणपत्र वो पाती है
कभी समोसा कभी कचोरी तो कभी बड़ापाव,
काला खट्टा को चुसे जाती है,
जब स्कुल से घर वो आती है
पापा बड़े खुश हो जाते,
जब दोनो मिलके हाजमोला खाते है
मेरे घर की बगियाँ महकाती है
आँखों में अब वो काजल सजाती है
क्योकि सच है
बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती है.......
बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती है
घुटनों के बल चलती वो कब दौड़ने लगी,
मेरी अंगुली पकड़ कर चलने वाली,
कब मेरे कांधे आ लगी
मुझे पता ही ना चला
बिटिया अब सयानी हो चली है
पेंसील की जगह पैन चलाने लगी है
शब्दों की तुकबंदी के साथ कलम से भी
अब वो खेलने लगी है
अब वो तुतलाती नहीं
अंग्रेजी में बड़बड़ाती है
परिवार के नन्हे बच्चों को
टीचर बनकर पढ़ाती है
घर में, स्कुल में दादागिरी दिखलाती है
लेकिन सच कहु,हर जगह
खिचड़ी में घी के जैसे घुल जाती है
उसके छोटे छोटे सपनों में
खुशियाँ बड़ी समायी है
हर जन्मदिन पर वो एक साल बड़ी हो जाती है
बिल्कुल सच है
बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती है
बच्चों में जान उसकी अटकती
नहीं किसी से वो डरती
हम सबकी वो दुलारी है
सहेलियों को भी उतनी ही प्यारी है
मेरे घर की वो धुरी
आँगन में तितली सी मंडराती हैं
नाक पे बैठा गुस्सा उसको
डांट बड़ी पड़वाता है
दुजे ही पल वो मुसकाती है
भाई को बड़ी धमकाती है
कभी कभी मुझसे भी होड़ कर जाती है
जब दो लाईने लिखकर
निबन्ध में प्रमाणपत्र वो पाती है
कभी समोसा कभी कचोरी तो कभी बड़ापाव,
काला खट्टा को चुसे जाती है,
जब स्कुल से घर वो आती है
पापा बड़े खुश हो जाते,
जब दोनो मिलके हाजमोला खाते है
मेरे घर की बगियाँ महकाती है
आँखों में अब वो काजल सजाती है
क्योकि सच है
बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती है.......
टिप्पणियाँ
अगर हम जिन्दगी को गौर से देखें तो यह एक कोलाज की तरह ही है. अच्छे -बुरे लोगों का साथ ,खुशनुमा और दुखभरे समय के रंग,और भी बहुत कुछ जो सब एक साथ ही चलता रहता है.
http://dehatrkj.blogspot.in/2013/09/blog-post.html