२३ अप्रैल - सुबह की किरणें आज मेरे कमरे में नहीं आ रही थी.....अलसायी आँखों से मैने खिड़की के बाहर देखा....घने पेड़ों ने मेरी सिहरन बढ़ा दी । मैने बच्चों को उठाया,उनके कमरे की खिड़की से कंचनजंघा पर्वतमाला दिख रही थी और उसकी खुबसुरती बयां करने की नाकाम कोशिश मैं यहाँ नही करना चाहुंगी ।
चाय नाश्ते के बाद हम घुमने के लिये निकल गये ।सबसे पहले हमे माॅनेस्टरी जाना था और थोड़ी ही देर में हम दार्जिलींग की "माॅनेस्टरी" के सामने थे । माॅनेस्टरी के चारो तरफ लहराते झंडे वातावरण में आस्था घोल रहे थे और लग रहा था कि अतिथियों के स्वागत में उनके रंग कुछ ज्यादा ही सुर्ख हो गये हो ।सुबह का समय था,प्रार्थना हो रही थी,हमे थोड़ी देर इंतजार करना पड़ा । संशय नहीं कि माॅनेस्टरी बहुत संुदर थी लेकिन मिरिक की माॅनेस्टरी निश्चित रूप से मुझे लुभाने में थोड़ी अधिक कामयाब रही । हमने फोटोग्राफ्स खींचे और वहाँ से "राॅक गार्डन" के लिये निकल चले ।
"राॅक गार्डन",पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये बनाया गया था और यह "चंडीगढ़" के राॅक गार्डन से पूरी तरह भिन्न था । एक पतली सी पगडंडी जैसे रस्ते से हम गार्डन की ओर जा रहे थे । मेरे मन में उत्सुकता बनी हुई थी क्योकि आस पास का माहौल और फिज़ा में घुलती ठंडी हवा इसकी खुबसूरती की दस्तक मेरे मन में पहले ही दे चुकी थी । कल कल की ध्वनी भी हवा के साथ मेरे कानों के पास सरसरा रही थी । गार्डन की हरियाली किसी को भी मुग्ध करने के लिये पर्याप्त थी और उस पर शांत निश्छल बहती एक छोटी सी धारा , जो पत्थरों से टकरा कर एक संगीत पैदा कर रही थी । हम सब पत्थरों पर अपनी जगह बना कर बैठ गये । मेरा मन चंचल हुआ जा रहा था,हवा के लागातर बह रहे झोंकों के साथ पानी की हल्की फुहारे मेरे तन मन को भीगो रही थी । मैं और बच्चें पत्थरों पर इधर से उधर झुम रहे थे,पानी का तेज प्रवाह जैसे मुझे खींचकर मेरी उम्र से काफी पीछे ले गया हो और मेरा मन झुमती हवा के साथ चहचहाने लगा , ठंडे स्वच्छ पानी में पांव डालकर बैठने का लोभ संवरण मैं नहीं कर सकी । बच्चों ने खूब फोटो खिंचवाई । हम थोड़ी देर के लिये गार्डन में रखी बैंचों पर बैठ गये ,वहाँ से देखने पर उस नन्ही धारा की हिलोरें लेती कलरव ध्वनी ने मुझे जैसे मोहपाश में बाँध दिया हो ।बच्चे अभी भी फोटो खिंचवाने में लगे थे और हम दोनो कुछ मीठे से पलों को अपनी जमा पूंजी बना रहे थे । भगवती भाई(ट्यूर मैनेजर) के आवाज देने पर हम वहां से रवाना हुए ।
अब हम "रिम्बी फाॅल" देखने वाले थे,यह ठंडे पानी का एक निश्चल झरना था । यहां पर मैने और शगुन ने सिक्कीम के पारम्परिक वस्त्र "भुतिया" में फोटो खिचंवायी,यकीन मानीये , कपड़े इतने सुंदर थे कि पहने रखने की इच्छा मन में हिलोरे ले रही थी । लेकिन हमेशा की तरह सुशील जल्दबाजी में थे । भगवती भाई ने हमे बताया कि अब हम kacheopalri lake जाने वाले है,यह झील देवी के पदचिन्ह के रूप में है । झील के आस पास का वातावरण एकदम निर्मल था,यहां कचरा करना सख्त मना था,और एक मान्यता के अनुसार शाम सात बजे के बाद पक्षियों का एक झुण्ड आता है और सारा कचरा उठा ले जाता हैं .....दिलचस्प ।
रात को होटल में एक बच्ची का जन्मदिन मनाया गया,रोज की तरह स्वादिष्ठ खाने की महक इस तरह से मेरे नथुनों में बस जाती कि वजन बढ़ने की परवाह ना करते हुए मैं बस अपना पुरा ध्यान खाने पर ही केन्द्रित कर लेती ...........
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