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कुछ क्षणिकाए

 
 जलना 
आग में और इर्ष्या में 
कारण है विनाश का सर्वनाश का !
                 


                                    
    चुप्पी
 चटकाती है दिल 
रिश्ते मरते तिल-तिल  !




सूरज 
तुम्हारे नाम का 
मेरे ललाट पे सज 
मान बढाता तुम्हारा और मेरा भी !









मैं आहत होती हु 
अपनों के रूखे व्यवहार से नहीं 
बल्कि चाशनी में लिपटी उनकी बातों से !







   
         अपनों का साथ 
     है खुशियों का तडका
        दुखो की दाल में !

   




धुँआ धुँआ 
है जिंदगी 
जब जल रहे हो 
रिश्ते आस पास 

टिप्पणियाँ

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…
बहुत सुंदर क्षणिकाएँ...
अनु
आत्ममुग्धा ने कहा…
anuji,pratham prayaas tha aur us par aapki swikruti ki mohar lag gai.....aage bhi margdarshan chaungi...sdhanywaad!

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उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

सीख जीवन की

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