बात दो-चार दिन पहले की है ,सुबह जब नारियल के तेल की शीशी को हथेली पर उंडेला तो उसमे से तेल नहीं निकला ,मुझे आश्चर्य हुआ कि अभी हफ्ते भर पहले तो ख़रीदा ही था ,इतनी जल्दी ख़त्म कैसे हुआ ? लेकिन शीशी खाली नहीं थी ....थोडा दबाया तो कुछ निकलता हुआ सा महसूस हुआ ........'ये तो तेल ही है जो ठण्ड कि वजह से जम गया था .मेरा आश्चर्य अब एक सुखद अहसास में बदल गया क्योकि मुंबई के मौसम में और वो भी फरवरी के महीने में तेल का जमना आम बात नहीं है
पुरे साल भर एक ही जैसे मौसम की मार सहने वाले हम मुम्बईकर तरसते है ऐसे मौसम को ...........इस बार की गुलाबी ठंड वाकई मौसमी मज़ा दे रही है .सुबह की धुप कुछ ज्यादा ही प्यारी लगने लगी है और जब सुबह की यह धुप मेरी खिड़की से लटकी कांच की लटकनो पर पड़ती है तो लगता है कि कई नन्हे सूरज मानो जैसे मेरी खिड़की पर आ गए हो , जब उनकी चमक परावर्तित होकर मेरे आँगन में बिखरती है तो उन पर चलने का मिठास मैं बयाँ नहीं कर सकती
यहाँ ठिठुरन तो नहीं है लेकिन सिहरन जरुर है ,दांत तो नहीं बजते लेकिन कानो से ठंडी हवा का प्रवाह चाय की चुस्की मारने को उकसाता है ,हाथो में दस्ताने तो नहीं है लेकिन मैंने पावों में मौजे जरुर पहन लिए है ,रजाई ना सही लेकिन कम्बल की गर्माहट अब हमें भी सुहाती है ,बच्चे मुहं से भाप तो नहीं निकालते जैसा कि हम अपने बचपन में अकसर किया करते थे, हाँ लेकिन सुबह की पाली के स्कूली बच्चे मैरून रंग की स्वेटर में जरुर दिखने लगे है ,अल-सुबह की नींद में सपने ज्यादा आने लगे है ,हाथ अलाव तो नहीं सेंक रहे लेकिन हाथों में किसी अपने का गर्माहट भरा हाथ सुहाने लगा है चाय की चुस्कियां मीठी ज्यादा लगने लगी है ,पकोड़ों ओर तरह-तरह के पराठों की महक पुरे घर में फैलने लगी है ,स्नानघर की खिड़की से आने वाली ठंडी हवा की सिरहन ने पुरे स्नानघर पर अपना कब्ज़ा जमा रखा है और स्वय को मेरे घर का सबसे ठंडा क्षेत्र घोषित कर रहा है .......स्नानघर की यह ठिठुरन मुझे लगातार मेरे मायके की याद दिला रही है ,घर के सबसे नन्हे जीव को भी मेरी बेटी छोटे से रुमाल में ढक कर सुला रही है .......ऐसे ही ना जाने कितने अनगिनत अहसास है जो जी रहे है हम इन दो-चार दिनों की गुलाबी ठण्ड में ............
कल से पारा उछल के सीधे चार डिग्री ऊपर आ गया और मौसम में मुम्बैया असर दिखने लगा .....कही मेरी यादें भी मौसम की तरह लुप्त ना हो जाए ..................
कल से पारा उछल के सीधे चार डिग्री ऊपर आ गया और मौसम में मुम्बैया असर दिखने लगा .....कही मेरी यादें भी मौसम की तरह लुप्त ना हो जाए ..................
अल-सुबह की नींद में सपने ज्यादा आने लगे है ,हाथ अलाव तो नहीं सेंक रहे लेकिन हाथों में किसी अपने का गर्माहट भरा हाथ सुहाने लगा है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लेखन...
वर्ड वेरिफिकेशन हटा दीजिए..
thankyou vidyaji
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