कल शाम का खुशगवार मौसम न जाने क्यों बहुत कुछ लिखने को प्रेरित कर रहा था .हाथ में लेखनी को पकड़ा ही था कि मेरी १२ वर्षीया बेटी ने कहा 'मम्मा मैं भी कुछ लिखू '
मैं मुस्कुरा दी और लिखने में व्यस्त हो गई ,तभी उसने कुछ दो-चार लाइने लिख कर पकड़ा दी ,उसकी टूटी-फूटी हिंदी ,साथ में मुम्बईया भाषा का तड़का और उसकी मन:स्थिति ....सब था इन लाइनों में
प्रस्तुत कर रही हूँ उसके प्रथम प्रयास को प्रोत्साहन के लिए आपके समक्ष
कितनी करती किताबे बोर
स्कूल ले जाती मैं बस्ते का बोझ
आती जब किताबे आँखों के सामने
क्यों सो जाते हम बच्चे लोग
पर क्या करे .....................
पढना ही पड़ता हर रोज
कभी हिंदी की मात्राओं में खोती
तो कभी
गणित के फार्मूलों में उलझती
उफ़ ये मराठी
मेरे सर के ऊपर से चली जाती
विज्ञान के चमत्कार तो समझ ही ना पाती
सच,कितना करती मुझे बोर ये किताबे
टिप्पणियाँ
आपने भी सुन्दर प्रोत्साहन दिया उसकी भावाभिव्यक्ति
करने का.
मेरे ब्लॉग पर आईं और अपने सुवचनों से मेरा मनोबल
बढ़ाया,इसके लिए आपका दिल से आभार.
bitiya se kahen...likhti rahe...
god bless her.