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मेरा नाम है गौहर जान

पिछले दिनों एक दिलचस्प किताब पढ़ी.....'मेरा नाम है गौहर जान'
     यह उन दिनों की बात है जब संगीत इतना सामान्य रूप से उपलब्ध नहीं होता था, संगीत राजघरानों के दरबार की शोभा होते थे और उस पर किसी स्त्री संगीतकार का होना अपने आप में उपलब्धि थी।
       ग्रामोफोन के आविष्कार के बाद 1902 में रिकॉर्ड की जाने वाली पहली भारतीय आवाज गौहर जान की थी, जिन्होने अपने जीवनकाल में लगभग 600 रिकॉर्डिंग की, लेकिन गौहर जान इस संक्षिप्त परिचय से कही अधिक बड़ी है। उनकी उपलब्धियां विस्तृत है।
      किताब में गौहर के जीवन को दस्तावेजों के साथ सुत्रबद्ध किया गया है।  गौहर के जीवन की छोटी से छोटी कड़ी, सुक्ष्म से सुक्ष्म जानकारी को बटोरकर और कुछ पुराने दुर्लभ चित्रों से इस किताब को सजाया गया है ।
न केवल नृत्य और संगीत की बात इस किताब में है बल्कि समकालीन संगीतकारों का संक्षिप्त ब्यौरा भी इसमे है।
       अब आते है गौहर जान पर , जो कि भारतीय माँ और युरोपियन पिता की इकलौती संतान थी। 26 जुन 1873 को जन्मी इस बच्ची का नाम एलीन एंजेलिन योवार्ड रखा गया जो आगे चलकर गौहर जान बनी और गौहर की माँ , जो स्वयं एक बेहतरीन शायरा थी, वो भी परिस्थितियों के चलते विक्टोरिया हेमिंग्स से मलका जान हुई ।
          संगीत और काव्य में दिलचस्पी के चलते मलका जान ने बनारस में इसका प्रशिक्षण लिया और एक प्रतिष्ठित तवाय़फ का दर्ज़ा पाया ।वह अपने समय की अग्रणी तवायफ के रुप में मशहूर होने लगी और आर्थिक रुप से मजबूत भी। नन्ही गौहर को रंग रुप,संगीत और कविता की प्रतिभा माँ से विरासत में मिली थी । मलका जान ने गौहर को देश के दिग्गज संगीतकारों से शिक्षा दिलवाई । न केवल संगीत और नृत्य बल्कि मलका जान ने गौहर को कई भाषाओं का ज्ञान भी पारंगत शिक्षकों से दिलवाया। कुछ समय में ही गौहर हिंदुस्तानी, बंगाली,फ़ारसी, अंग्रेज़ी, अरबी, उर्दू में लिखने और गाने योग्य हो गयी। अंग्रेजी और फ्रैंच बोलने में माहिर भी।
       जैसे जैसे गौहर बड़ी होती गयी, उसका हुनर निखरता गया। गौहर की प्रतिभा को देखते हुए शास्त्रीय संगीत के धुरंधर स्वयं गौहर को सिखाने का प्रस्ताव रखते थे और गौहर भी इस प्रशिक्षण को ईशकृपा मानकर लगन से सिखती गयी और यही से उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त होने लगा।
      इस किताब में जब मैं गौहर की प्रतिभाओं के बारे में पढ़ रही थी तो हतप्रभ थी कि कोई इतना गुणी कैसे हो सकता है । गौहर में हर विधा को सीख लेने की दक्षता थी। जिस सहज भाव से वो ठुमरी गाती थी, उतनी ही सहजता से बंगाली गीत और अंग्रेजी सुर भी लगा लेती थी।
          अपने नृत्य और गायन प्रदर्शन के चलते उसने पूरे देश के विभिन्न हिस्सों की यात्राएं की और वहाँ रही भी। वो अपने समय की सबसे समृद्ध तवायफ थी। उसकी खर्चीली जीवन शैली और रहन सहन अलहदा था। उसके कपड़े, गहने , गाड़ी, मकान सब कुछ उसके व्यक्तित्व का बखान करते थे।
       किताब का एक हिस्सा संगीत को बयान करता है, मेरी संगीत में अधिक दिलचस्पी नहीं है इसलिये मैंने उसे बस पढ़ लिया, आत्मसात नहीं कर पायी लेकिन अगर आप संगीत में दिलचस्पी रखते है तो इस किताब से आपको अद्भुत जानकारियां मिलेंगी, खासतौर पर ठुमरी के बारे में।
     इस किताब से मैंने जाना कि तवायफ़ के मायने उस वक्त में क्या थे। उनकी इज्जत की जाती थी और नवाबी घरों में न केवल उनका आना जाना था बल्कि वे स्वयं नवाबों के जैसे रहती थी। संगीत और नृत्य की उनकी प्रतिभा अव्वल दर्जे की होती थी। वे अपनी लिखी रचनाएं गाती थी और प्रयोगात्मक तरीके से बंदिश, ठुमरी में परिवर्तन भी करती थी। उन्हे राग अलाप की महीन से महीन जानकारी होती थी। गौहर जान भी ऐसी ही प्रतिभाशाली तवायफ़ थी, जो इन गुणों में तो दक्ष थी ही लेकिन एक ऐसी शख्सियत भी थी जिसका सम्मोहन सब पर चलता था।
      
    यह किताब अमेजॉन पर उपलब्ध है।
किताब - मेरा नाम है गौहर जान
लेखक - विक्रम सम्पत
हिंदी अनुवाद - अंशुमान पाण्डेय
                      अंशुमान जैन

    



     
        

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