स्पीति यात्रा के दौरान वहाँ के पहाड़ों ने मुझे अपने मोहपाश में बांधे रखा । उनकी बनावट, टैक्चर बहुत अद्भूत था। वे बहुत लंबे, विशालकाय, अडिग थे। मनाली से काजा का दुर्गम रास्ता पार करते हुए इनसे मौन संवाद होता रहा। मैं इनकी ऊँचाई और आस पास की नीरवता से लगभग स्तब्ध थी। ये एकदम सीधे खड़े से पहाड़ थे जैसे कोई खड़ा रहता है सीना ताने। कालक्रम की श्लांघाओं से दूर ये साक्षी रहे साल दर साल होने वाले परिवर्तनों के।
उन दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए, ग्लेशियरों को पार करते हुए बहुत बार मन ने सोचा कि क्या ये हमेशा से ऐसे ही खड़े है। क्या इनका स्वरूप यही था ? इन पहाड़ो में इतना आकर्षण क्यो है हालांकि ये अलग बात है कि इस नीरव पथ पर दिल की धड़कने तीव्र गति से चलती रही, सड़क की स्थिती ने चेहरे पर बारह बजा रखे थे , इस रास्ते पर यात्रा करना एक साहसिक काम है और इस साहस में ये पहाड़ हर मोड़ पर साथ निभाते रहे और यह यात्रा मेरे जीवन की अविस्मरणीय यात्रा बन गयी।
मैंने इन पहाड़ो के अलग अलग विडियों बनाये, इनकी ऊँचाई,इनकी बनावट मुझमे जैसे रचबस गयी। आज जब अटलजी की ये कविता सुनी तो लगा जैसे ये पहाड़ ही मुझसे बतिया रहे हो । शुक्रगुजार हूँ मैं इन पहाड़ों की, इन्होने हमेशा मुझे चेताया है, मेरी तुच्छता का अहसास कराया है ताकि अंहकार का बीज मन के किसी कोने में दबा भी न रह जाये।
प्रस्तुत विडियों स्पीति घाटी में ही किसी स्थान का है, आप भी इनकी बनावट देखे। ऐसा लगता है जैसे पहाड़ो की भीड़ हो या कोई कुनबा । पत्थर के हजारों पेंग्विन हो जैसे। कल्पनाओं का कोई छोर नहीं, आप भी अपनी कल्पनाओं में किसी भी रूप में देख सकते है इन्हे 😊
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 27 दिसंबर 2023 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
शुक्रिया
हटाएंकभी-कभी मूक पाषाण से अधिक आत्मीय संवाद हो जाता है. शायद तब ही पहाड़ों से ही झरने फूटते हैं. पढ़ कर अच्छा लगा. कृपया कुछ जगहों पर जो वर्तनी दोष पढ़ने में आ रहा है, उसे सुधार लें तो पढने का और भी मज़ा आएगा.
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
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