एक पेड़
जब रुबरू होता है पतझड़ से
तो झर देता है अपनी सारी पत्तियों को
अपने यौवन को
अपनी ऊर्जा को
लेकिन उम्मीद की एक किरण
भीतर रखता है
और इसी उम्मीद पर
एक नया यौवन नये श्रृंगार....
बल्कि अद्भुत श्रृंगार के साथ
पदार्पण करता है
ऊर्जा की एक धधकती लौ फूटती है
और तब आगमन होता है
शोख चटख रंग के फूल पलाश का
पेड़ अब भी पत्तियों को झर रहा है
जितनी पत्तीयां झरती जाती है
उतने ही फूल खिलते जाते है
एक दिन ये पेड़
लाल फूलों से लदाफदा होता है
तब हम सब जानते है कि
ये फाग के दिन है
बसंत के दिन है
ये फूल उत्सव के प्रतीक है
ये सिखाता है
उदासी के दिन सदा न रहेंगे
एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी
उदासी को उत्सव में बदल देखी
बस....उम्मीद की लौ कायम रखना
टिप्पणियाँ
बसंत के दिन है
ये फूल उत्सव के प्रतीक है
ये सिखाता है
उदासी के दिन सदा न रहेंगे
व्वाहहहहहहह
आभार
सादर
कोई पल नहीं टिकता है
ये फूल उत्सव के प्रतीक है
ये सिखाता है
उदासी के दिन सदा न रहेंगे
सकारात्मक भावों का संचार करती बहुत सुन्दर रचना ।
ये सिखाता है
उदासी के दिन सदा न रहेंगे
एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी
उदासी को उत्सव में बदल देखी
बस....उम्मीद की लौ कायम रखना
बहुत ही सुंदर सटीक सृजन
वाह!!!
नहीं रहने देता हताश ।
खूबसूरत रचना ।
उदासी के दिन सदा न रहेंगे
एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी
उदासी को उत्सव में बदल देखी
बस....उम्मीद की लौ कायम
.. सकारात्मक भाव से सजी हुई बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना।