सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भवाई नृत्य शैली

जब आप कोई भी यात्रा करते है तो आपकी जिंदगी की किताब में एक पन्ना अनुभवों का जानकारियों का जुड़ जाता है। इस बार मैं थी रणमहोत्सव में....जहाँ मुझे गुजरात की कोर जानकारी मिली। यहाँ की संस्कृति के परम्परागत वाद्य यंत्रों के बारे में जाना जोकि विलुप्त प्रायः है । रणमहोत्सव जैसे आयोजन शायद इसीलिए किये जाते है कि इन विलुप्त होती गूढ़ कलाओं को जीवित रखा जा सके, कलाकारों को काम मिल सके और पूरा देश इनसे परिचित हो सके। मेरा मानना है कि किसी भी संस्कृति को बचाये रखना बहुत दुभर काम है और अगर कोई कलाकार चार पुश्तों से अपनी कला को संभाल रहे है तो उनके लिये प्रोत्साहन और रोज़गार दोनो जरुरी है। 
      इसी के चलते मैं रुबरु हुई गुजरात की एक नृत्य शैली से जो राजस्थान से भी जुड़ी हुई है। इस शैली का नाम है 'भवाई' । हमे बताया गया कि इसे करने के 365 तरीके है और हमारे सामने इसकी एक प्रस्तुति होनी थी 'किरवानो भेष' । 
    प्रस्तुति शुरु हुई ....सफेद सिल्क में चमचमाती वेशभुषा में एक लोक कलाकार आये और उन्होने घूमते हुए करतब शुरु किये । पहले वे तलवार जैसी किसी चीज को हाथ में घुमाते हुए प्रदर्शन कर रहे थे। तलवार घूमते हुए उनकी अंगुली से खिसकते हुए उनकी कोहनी तक आ गयी ...एक रिदम था उनके (कलाकार ) और तलवार के घूमने में। दोनो में जैसे तालमेल था। एक और साथी कलाकार उनके पीछे था जो उन्हे अलग अलग तरह की तलवारे उन्हे दे रहा था । 
    अब उन्हे एक कपड़ा दिया गया...लगभग साड़ी जितना। उन्होने कपड़े का एक कोना अपने हाथ में पकड़ा और बाकी कपड़े को कंधे पर डाल लिया और पूरा ध्यान दोनों हाथों से पकड़े कपड़े पर बनाया और वे लगातार कुछ बुनने लगे जैसे । कपड़े को सधे हाथों से घूमाते हुए वो कुछ बना रहे थे और आश्चर्य की बात यह कि ये सब वो  स्वयं घूमते हुए बना रहे थे। जब से उन्होंने प्रस्तुति शुरु की वो एक बार के लिये भी नहीं रुके थे। इसी तरह कपड़े से कुछ बनाते हुए वो कंधे से थोड़ा कपड़ा नीचे उतार लेते और बनाते जाते। जब कंधे पर थोड़ा कपड़ा बचा तो हम सबके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था उन्होने अनवरत रुप से घुमते हुए मोर बना दिया था....तालियों की गड़गडाहट के बीच दर्शक दीर्घा में बैठी मैं चकित थी। उनको इतने लंबे वक्त से घुमते हुए देखकर मुझे चक्कर आ गया। 
       उनका पूरा वीडियो तो मैं नहीं बना पायी क्योकि हम सब भी देखने में मगन थे लेकिन एक छोटी सी क्लिप बनायी ताकि इस लोक कला और कलाकार के बारें में लोगो को बता सकूँ ।
यहाँ मैं फोटो संलग्न कर रही हूँ ।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

किताब

इन दिनों एक किताब पढ़ रही हूँ 'मृत्युंजय' । यह किताब मराठी साहित्य का एक नगीना है....वो भी बेहतरीन। इसका हिंदी अनुवाद मेरे हाथों में है। किताब कर्ण का जीवन दर्शन है ...उसके जीवन की यात्रा है।      मैंने जब रश्मिरथी पढ़ी थी तो मुझे महाभारत के इस पात्र के साथ एक आत्मीयता महसूस हुई और हमेशा उनको और अधिक जानने की इच्छा हुई । ओम शिवराज जी को कोटिशः धन्यवाद ....जिनकी वजह से मैं इस किताब का हिंदी अनुवाद पढ़ पा रही हूँ और वो भी बेहतरीन अनुवाद।      किताब के शुरुआत में इसकी पृष्ठभूमि है कि किस तरह से इसकी रुपरेखा अस्तित्व में आयी। मैं सहज सरल भाषाई सौंदर्य से विभोर थी और नहीं जानती कि आगे के पृष्ठ मुझे अभिभूत कर देंगे। ऐसा लगता है सभी सुंदर शब्दों का जमावड़ा इसी किताब में है।        हर परिस्थिति का वर्णन इतने अनुठे तरीके से किया है कि आप जैसे उस युग में पहूंच जाते है। मैं पढ़ती हूँ, थोड़ा रुकती हूँ ....पुनः पुनः पढ़ती हूँ और मंत्रमुग्ध होती हूँ।        धीरे पढ़ती हूँ इसलिये शुरु के सौ पृष्ठ भी नहीं पढ़ पायी हूँ लेकिन आज इस किताब को पढ़ते वक्त एक प्रसंग ऐसा आया कि उसे लिखे या कहे बिना मन रह नहीं प

कुछ अनसुलझा सा

न जाने कितने रहस्य हैं ब्रह्मांड में? और और न जाने कितने रहस्य हैं मेरे भीतर?? क्या कोई जान पाया या  कोई जान पायेगा???? नहीं .....!! क्योंकि  कुछ पहेलियां अनसुलझी रहती हैं कुछ चौखटें कभी नहीं लांघी जाती कुछ दरवाजे कभी नहीं खुलते कुछ तो भीतर हमेशा दरका सा रहता है- जिसकी मरम्मत नहीं होती, कुछ खिड़कियों से कभी  कोई सूरज नहीं झांकता, कुछ सीलन हमेशा सूखने के इंतजार में रहती है, कुछ दर्द ताउम्र रिसते रहते हैं, कुछ भय हमेशा भयभीत किये रहते हैं, कुछ घाव नासूर बनने को आतुर रहते हैं,  एक ब्लैकहोल, सबको धीरे धीरे निगलता रहता है शायद हम सबके भीतर एक ब्रह्मांड है जिसे कभी  कोई नहीं जान पायेगा लेकिन सुनो, इसी ब्रह्मांड में एक दूधिया आकाशगंगा सैर करती है जो शायद तुम्हारे मन के ब्रह्मांड में भी है #आत्ममुग्धा

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा