कुछ दिनों के तुम मेहमान बनकर आये
दुखों को पार लगाने आये
ढ़ोल नगाड़ों पर तुम नाचते आये
पलक पांवड़ो पर बिछकर आये
तुम आये खुशियों को साथ लेकर
तुम आये उस उत्सव की तरह
जिसके साथ साथ सब हर्ष आता
इसीलिए तो कहते
रिद्धि सिद्धि सुख संपत्ति के तुम दाता
आज अंतिम दर्शन का दिन आया
विर्सजन करते मन अकुलाया
लेकिन जाओगे तभी तो आओगे
आने जाने के इस जीवन में
विसर्जित होकर भी ह्रदय में रह जाओगे
अगले बरस तक राह तकेगी आँखे
तब तक तुम्हे विदा करते
उड़ते अबीर गुलाल
और
मेघ गर्जना के साथ
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१२-०९ -२०२२ ) को 'अम्माँ का नेह '(चर्चा अंक -४५५०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर