कभी कभी मन डुबा सा रहता है
कभी हिलोरे लेता
किसी पल सहम जाता
तो कभी कमल सा खिल जाता
कभी खारा हो जाता समंदर सा
तो कभी नदी की मिठास सा
कभी घनीभूत होता विचारों से
तो कभी सांय सांय करता
खाली अट्टालिका की तरह
कभी ध्वज सा लहराता किसी शिखर पर
कभी जमीदोंज होता कोई कोना
कभी शांत होता मंदिर के गर्भगृह सा
तो कभी शोर मचाता सुनामी सा
कभी कलकल बहता झरने सा
तो कभी सब कुछ लीलता तुफान सा
कभी परिचित सा
तो कभी अजनबी अनजान सा
मन है.........
विरोधाभास के बीच
कहाँ खुद को जानने देता
#आत्ममुग्धा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-09-2022) को "कमल-कुमुद के भिन्न ढंग हैं" (चर्चा अंक-4541) (चर्चा अंक-4534) पर भी होगी।
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कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आपका इस प्रोत्साहन हेतू
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