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एक संवाद

आज एक संवाद सुना ।
 दो स्त्रियां.....जिनमे से एक बिल्कुल सधे शब्दों में कुछ पूछती है और दूसरी कभी खिलखिलाकर तो कभी रोतलू सी उनका जबाब देती है और कभी असमंजस में कहती है कि ' पता नहीं ' । 
      संवाद था सुदीप्ति और अनुराधा के बीच । सुदीप्ति को मैं इंस्टाग्राम पर उनकी साड़ियों की वजह से जानती थी और हमेशा पढ़ती भी थी। अनुराधा को उसकी पहली किताब 'आजादी मेरा ब्रांड' के वक्त से जानती हूँ । तीखे नैन नक्श वाली निश्छल सी लड़की ,जो यकीनन वही है जो वो दिखती है और  खूबसूरत इतनी कि कोई भी मुग्ध हो जाये । 
     संवाद एक बार शुरू हुआ तो पता ही न लगा कि कब समय गुजर गया।
 दोनो ही नदियों की तरह.....सुदीप्ति जहाँ शांत बहाव वाली मन को सुकून देने वाली नदी तो वहीं अनुराधा ,चंचल हिलोरे लेती कलकल बहती नदी, जो अपनी बौछारों से आपको भिगो दे ।
      सुदीप्ति जिस तरह से प्रश्न पूछती है ....उनकी आवाज का गांभीर्य और ठहराव उस प्रश्न को बातचीत बना देता है और यह वाकई एक कला है।
 सामने वाला आपका दोस्त है, आपकी व्यक्तिगत जानपहचान है लेकिन एक सार्वजनिक मंच पर उस निजता को बनाये रखते हुए एक प्रवाहमयी संवाद को साधना सच में प्रंशसनीय है।
       अनुराधा.....इसके बारे में क्या ही कहा जाये...एक हरियाणवी छोरी जो दुनिया जहान की बातें करती है । जो दुनिया घूमती है लेकिन ,अपने मन के समंदर से हर रोज बाहर आने को डूबती तैरती है। तमाम बड़ी बड़ी बातों को धता बताकर एक छोटी सी बात बोलती है जो अक्सर मैं भी खुद से कहती रहती हूँ....हर दिन खुद को सही करना। सही करने से उसका तात्पर्य यह नहीं कि आप गलत हो....सही से मतलब है कि दुनिया से परे खुद पर काम करना, खुद को प्यार करना , खुद को जीना। 
        पूरे संवाद में कई बार गला भर्राया....जहां जहां अपनों का, परिवार का जिक्र हुआ....अनु की आँखें तो चमकती थी पर आवाज रुंधी सी होती थी। अपनी जड़ों से जुड़ाव यही होता है। अपनी बुआ, मौसी, ताई , चाची, बहन सबके बारें में बोलते वक्त उसकी आवाज जैसे खनकती थी लेकिन उनके जीवन की हकीकत उसे रुआंसा कर देती है....अपनों का दर्द उसकी आवाज
में उतर आता है इसलिए लगता है कि किताब में दर्ज़ इस लड़की के जज़्बात झूठे नहीं हो सकते। 
        अपने आपको ठोस धरातल पर रखने वाली ये लड़की स्वीकारती है कि उसमे विकार है....वैसे तो ये स्वीकारोक्ति भी आजकल ट्रेंड में है लेकिन ,जिस सहजता से वो कहती है कि मुझमे इर्ष्या बहुत है और इस पर मैं लगातार काम कर रही हूँ....इसलिए हर दिन ठीक हो रही हूँ। अपने परिवार की अशिक्षित महिलाओं पर गर्व करने वाली इस लड़की में दंभ नहीं है लेकिन गर्वित होते रहना इसका स्वभाव है.....मेरा अपना यही मानना है कि हर स्त्री का यह स्वभाव होना चाहिए। 
        सुदीप्ति, जिस तरह से तुमने इस संवाद को रोचक बनाया उसके लिये शुक्रिया तुम्हारा।
तुम्हारी और तुम्हारी साड़ियों की मैं हमेशा से फैन हूँ ।


संवाद सुनिये नीचे दिये लिंक पर क्लिक करके ....
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#आत्ममुग्धा 

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