कभी कभी मन डुबा सा रहता है
कभी हिलोरे लेता
किसी पल सहम जाता
तो कभी कमल सा खिल जाता
कभी खारा हो जाता समंदर सा
तो कभी नदी की मिठास सा
कभी घनीभूत होता विचारों से
तो कभी सांय सांय करता
खाली अट्टालिका की तरह
कभी ध्वज सा लहराता किसी शिखर पर
कभी जमीदोंज होता कोई कोना
कभी शांत होता मंदिर के गर्भगृह सा
तो कभी शोर मचाता सुनामी सा
कभी कलकल बहता झरने सा
तो कभी सब कुछ लीलता तुफान सा
कभी परिचित सा
तो कभी अजनबी अनजान सा
मन है.........
विरोधाभास के बीच
कहाँ खुद को जानने देता
#आत्ममुग्धा
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