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अनकंडीशनल लव

अक्सर होता है कि हम लोगो को मतलब अपने प्रिय लोगो को बांधकर रखना चाहते है .....हर वक्त उनका सामिप्य चाहते है क्योकि हम उनसे प्यार करते है। क्या यह सच में प्यार है ? 
        हम उनकी हर बात मानते है। उनको खुश रखने की कोशिश करते है। उनकी गलत बातों को नजरअंदाज कर जाते है बिल्कुल उसी तरह जैसे एक माँ को अपने बच्चें की गलतियां कभी दिखती ही नहीं है । क्या यह है अनकंडीशनल लव ?
        आप किसी के आँसू नहीं देख सकते क्योकि आप उनसे प्यार करते है । आप उनके लिये हर वो काम करते है जो उनकी आँखों को नम होने से बचाये रखे । आप दुनियां के हर बदरंग से उन्हे बचाकर रखते है। उनकी हर तमन्ना आपकी अपनी इच्छा बन जाती है। 
प्रेम की क्या यही परिभाषा है ? 

      अब एक बार खूद को विराम देकर ऊपर की बातें फिर से पढ़े....और स्वयं से सवाल करे.....यह प्यार है या मोह ? बंधन है या स्वतंत्रता ? निर्भरता है या उंमुक्तता ?
 
       हालांकि मुझे इतना ज्ञान नहीं है कि मैं इतने प्योर इमोशन या भाव की व्याख्या कर पाऊँ ।  बस...अपने अनुभवों से जाना है , सीखा है, समझा है। ऊपर लिखी सब चीजे मैंने अपनों के लिये की....उनकी आँखों की चमक, मुझ पर अपार विश्वास मुझे ये सब करने को उत्साहित करता था लेकिन इसी बीच मैंने अपने बहुत नजदीकी लोगो को खोया और जैसे एक बारगी जीवन रूक सा गया। उसके बाद से मेरी परिभाषाएं बदल गयी। 

      जब अचानक माँ की गंभीर बीमारी का पता लगा और लगभग तीन महीनों तक उन्हे बिस्तर पर देखा तो जैसे मेरा पूरा वजूद हिल गया। जिसके पाँवो में हमेशा घुंघरू रहते थे, जो कदम कभी थमते नहीं थे, जो बेलौस हँसी हमेशा आंगन में खनकती रहती थी....वो सब मौन होकर बिस्तर पर थे । उनकी आँखों में चमक की जगह बेबसी देखी....हँसी की जगह फीकी मुसकान देखी....उनकी याददाश्त सही थी पर बात बात पर दोहे पढ़ने वाली मेरी माँ के मुहँ से शब्द फिसल रहे थे....बोलना कुछ और चाहती थी और बोल कुछ और रही थी। उस वक्त पहली बार मैंने ईश्वर से प्रार्थना की कि आप माँ को पीड़ा मुक्त करिये, उन्हे मुक्ति दीजिये जबकि मैं जानती थी मम्मी जीना चाहती थी ......लेकिन बीमारी की गंभीरता को वो नहीं जानती थी। 
क्या मेरी ऐसी प्रार्थना करना उनके प्रति मेरे प्यार पर संदेह करता है? 
क्या ईश्वर ने सोचा होगा ऐसा कि मैं अपनी माँ से प्यार नहीं करती ?
    दूसरी बार ऐसा तब हुआ जब दादी (हमेशा कहती हूँ कि इस पूरी दुनियां में उनके जितना प्यार मुझे कोई नहीं दे सकता) अपने दर्दीले पांवों की वजह से जीवन से हार चुकी थी और हर बार कहती थी कि अब सहन नहीं होता। मैं उनसे दूर रहती थी लेकिन उनका दर्द मेरी रगों में दौड़ता था। उनकी मृत्यु के दो दिन पहले मैं उनके समीप थी ....वो एकदम शांत थी पर दर्द से परेशान थी। क्या उनके लिये मुक्ति की प्रार्थना करना उनके और मेरे प्यार पर संदेह पैदा करता है ?
       जब मेरा बेटा कोरोना के कहर के बीच एक अनजान आसमान के नीचे अपनी जमीं ढूंढ रहा था तब मुझे अहसास हुआ कि उसे जीवन की सच्चाई को देखने का मौका मिला....अपनों से परे अपने खुद के वजूद को मजबूत करने का समय मिला है। हालांकि आसान नहीं था और कभी नहीं चाहूँगी कि किसी के भी जीवन में ऐसे पल आये । लेकिन आज जबकि वो पल निकल चुके है अब मुझे लगता है कि कष्ट आपको निखारते है । 
      अपनों के लिये हर वक्त बिछे रहकर हम उनकी ऊर्जा को सूप्त कर रहे होते है। खुद पर निर्भरता बढ़ाकर हम प्यार नहीं लाचारी बढ़ा रहे है। मैं प्यार या प्रेम के तथ्य अपने कार्य कलापों से जताने में विश्वास नहीं करती ।मैं प्यार के उस रुप का समर्थन करती हूँ जहां आप सामने वाले को एकदम सही और खरा खरा देख सके। आपकी समस्त प्रार्थनाएं उसके लिये होती है .. .भले वो आपके साथ को देख न पाये, महसूस न कर पाये । सिर्फ आप जाने कि आप उनसे प्यार करते है....उनके सामने नहीं है बल्कि उनकी रीढ़ बने हुए है भले उनको पता नहीं है। और जब कभी लगे आपकी खुली बाहें भी उनके लिये है। आपकी ईश्वर से बॉंडिंग इतनी बढ़िया होती है कि आपको पता होता है कि आपके प्रियजनों का बाल भी बांका नहीं होगा और अगर कुछ गलत होता भी है तो उसके दूरगामी परिणाम कही न कही किसी अच्छे की ओर होते है....मुझे ईश्वर पर संदेह करना कभी नहीं आया। 
         मैं इसी तरह बहुत से लोगो की जिंदगी से चुपचाप निकली हूँ या फिर अपनी जिंदगी से चुपचाप निकलते लोगो को देखा है ...उन्हे बिल्कुल प्यार से ससम्मान जाने दिया... आवाज देकर रोका नहीं....उनकी विदा को गरिमापूर्ण बनाया.... गहन आसक्ति के बावजूद।  सोच कर देखिये.....क्या आसान होता है....यूँ अपनों से दूर होना ? नहीं होता ....बिल्कुल नहीं होता।
         ये बातें बनाने की बात नहीं है......किसी बेहद नजदीकी से अगर आप दूरियों को चुनते है तो यह कोई साधारण बात नहीं है। मैं इन दुरीयों के चयन को अनकंडीशनल लव मानती हूँ ।

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