जब कोई आपके जीवन में
बहुत सारे प्यार के साथ
दस्तक देता है
तो आप खिल जाते है
बसंत सा महकने लगता है जीवन
लेकिन जब विदा का वक्त आता है
तो क्यो विदा नहीं दे पाते ?
जब आगमन का स्वागत था
तो विदा का क्यो नहीं ?
याद रखिये
बसंत अपने पीछे हमेशा
पतझड़ लेकर आता है
आप स्वागत करे या न करे
उनका आना तय है
तो सीखिये प्रकृति से
विदा बोझिल नहीं होनी चाहिये
विदा भारी मन से नहीं होनी चाहिये
विदा ऐसी हो जैसे
बसंत खूद को झर देता है
पतझर के लिये
बिना शोक
बिना गिला
बिना शिकायत
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-10-21) को "/"तुम पंखुरिया फैलाओ तो(चर्चा अंक 4222) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
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कामिनी सिन्हा