आज विश्व हिंदी दिवस है ......हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता हमे खुश कर देती है...सच में...दिल से खुश।
पर एक बात कहूँ.....हमारे देश में ऐसे बहुतेरे नमुने अब भी है जो अंग्रेजी को इंटैलीजेंसी से तोलते है 🤦🤦🤦
हिंदी को लेकर मेरे पास कई किस्से है जो सच में हिंदी से मेरे प्रेम को बढ़ा देते है।एक दो किस्से आप लोगो से शेयर करना चाहूँगी.....
1. उस वक्त शायद मैं 10वीं कक्षा में थी....हिंदी मीडियम की लड़कियों की सरकारी स्कूल में पढ़ती थी । हम सब स्कुल की तरफ से समर ट्युर पर जाना चाहते थे क्योकि दूसरी एक और स्कुल अपनी छात्राओं को ऐसे ट्यूर कराती थी। सबने मिलकर तय किया कि प्रिंसिपल के पास जाकर बात की जाये और उन्हे प्रार्थनापत्र दिया जाये। प्रार्थनापत्र लिखा मैंने 😎😎 और मुझे मिलाकर चयनित पाँच छात्राएं प्रिंसिपल से बात करने गयी। हमने उन्हे सबसे पहले ऐप्लिकेशन थमा दी ( यहाँ बता दूँ कि उस सेशन की हमारी वो प्रिसिंपल बड़ी सख्त मिजाज थी ) और डरते हुए हम पाँचों उनके रियेक्शन देखने लगी। उन्होने उसे पढ़ा और नाक पर गिरे चश्मे से हमे घूरते हुए पूछा कि ऐप्लिकेशन किसने लिखी है?
मैं डरते डरते आगे आयी तो उन्होने कहाँ कि वाक्य विन्यास बड़ा शानदार है।
हम ट्युर पर तो नहीं गये पर ये बिना थपथपाहट वाली शाबासी मुझे हमेशा के लिये याद रह गयी।
2. एक बार कोई बंदा , जिसे हिंदी आती थी पर जानबूझकर अंग्रेजी बोले जा रहा था। मैंने कहा कि आप हिंदी बोलेंगे तो मैं अधिक अच्छे से समझ सकूँगी। उसके व्यवहार से मुझे लगा कि उसने हिंदी को हिकारत भरी नजरों से देखा तो मैंने कहा कि...मुझे अंग्रेजी बोलनी नहीं आती, पर माफ कीजियेगा हिंदी इतनी कमाल बोल लेती हूँ कि चलताऊँ अंग्रेजी न बोल पाने का मलाल नहीं।
3. एक और किस्सा जिसने मुझे हिंदी की आत्मीयता को महसूस कराया। ये साल दो साल पहले का किस्सा है....मैं किसी बहुत सम्माननीय व्यक्तित्व के साथ थी, उन पर किताब लिखना चाहती थी। इसी सिलसिले में चार पाँच बार उनसे मुलाकात भी हुई । वे अपने निजी जीवन पर कभी भी किसी के सामने नहीं बोले लेकिन मुझसे उन्होने सब बताने का वादा किया था। मैं जब भी कुछ पूछती तो बड़े उत्साह से बताते पर स्थिर मनस्थिति से।उनके भावों को पकड़ पाना बहुत मुश्किल होता था। वो बताते सब थे पर अपना भावुक पक्ष हमेशा छुपा लेते थे। मेरी हरेक बात का उत्तर वह हिंदी में देते थे , पर जैसे ही मैं कोई निजी प्रश्न पुछती वे हर बार उसका उत्तर अंग्रेजी भाषा में देते। मै समझ जाती थी कि वो अपने इमोशन्स को छुपाना चाहते है । भावहीन तरीके से वे अपनी निजी बात मुझे अंग्रेजी में कह देते थे ।
इसे यूँ भी कह सकते है कि अंग्रेजी में हम सपाट तरीके से अपनी बात कह देते है जबकि हिंदी हमारी आत्मा से निकलते भावों की शाब्दिक प्रस्तुति होती है।
बस......इसीलिए मैं कहती हूँ कि हिंदी इस देश की, हमारी, हमारी संस्कृति की, हम सबकी आत्मा की भाषा है, भावभरी भाषा है ।
हम सबको विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं 😍
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-1-21) को "कैसे बचे यहाँ गौरय्या" (चर्चा अंक-3944) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
आपने सही विश्लेषण किया आत्ममुग्धा जी।
सादर।
सादर।