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पचास में पाँच कम

कल मैं पूरे 45 साल की हो गयी....पचास में बस पाँच कम। खुब चहक चहक कर अपना जन्मदिन मनाया। पता नहीं ये कैसा उत्साह होता है जो इस दिन मुझे चढ़ा रहता है और आज जैसे हैंगओवर बर्थडे का। 
          कल से शिद्दत से महसूस कर रही कि ये तन है जो उम्र की गिनती जोड़ रहा बाकी मन तो आज भी अठखेलियां ही कर रहा। मेरा मन कभी मानता ही नहीं इन बंधनों को। अक्सर हम लोग मन को मारकर उम्र के नम्बरों के हिसाब से व्यवहार करने लगते है जो कतई व्यवहारिक नहीं है। मैं ऐसा भी नहीं कहती कि हमे बचकानी हरकतों को बढ़ावा देना चाहिए। वक्त के साथ हमारी सोच विकसित होती है वो स्वाभाविक है लेकिन उम्र के लबादे को ओढ़कर सोचना तर्कसंगत नहीं। 
      आप की उम्र चाहे जो हो, उसे स्वीकार करे , झूर्रिया दिखती है तो दिखने दे, छुपाये नहीं ...ये तो श्रृंगार है प्रकृति का, सहज ही सजने दे। घुटने का दर्द भी उम्र का अहसास करायेगा....इट्स ओके....हड्डियां चटखेगी...चटखने दे, संगीत है कमजोर होते शरीर का, लेकिन मन ....वो तो निर्बाध है, उन्मुक्त है ....वहाँ न सिलवटे है, न झूर्रियां,न दर्द...वो सिर्फ उड़ना जानता है , वहाँ सिर्फ जीवन संगीत है । ये जो मन होता है ना...एक्चुअली वो आपकी मौलिकता होती है , आपका अपना स्वभाव, आपकी अपनी प्रकृति जो कभी नहीं बदलती । उसे कभी बदलियेगा भी मत, अपने शरीर के हिसाब से तो कतई नहीं। मैं तो कल से सबको कह रही कि क्या करुँ, मन तो वही कॉलेज के गलियारों मे ही अटका...वही युवा सोच में , बस फर्क ये कि अनुभव से,वो सोच परिपक्व हो गयी....जी हाँ...परिपक्व, बूढ़ी नहीं ...कदापि नहीं। 
      पर एक और बात है जो मैं कहना चाहती हूँ, वो ये कि उम्र के साथ मन भले ही जवान है लेकिन एक और चीज है जो बढ़े जा रही है और वो है मेरे शौक, कला, रचनात्मकता के प्रति मेरी दीवानगी...जो शायद मेरी जीवंतता को भी बढ़ाती है।
         तो बस ,मुझे नाज है अपनी बढ़ती उम्र पर ।

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