बात लॉकडाउन से पहले की है....मैं कुछ जरुरी शॉपिंग करने बेटी के साथ मॉल गयी थी। बेटी को कॉलेज जाना था इसलिये हमने तुरतफूरत सब लिया और बिलिंग काउंटर पर आ खड़े हुए । हमारे काउंटर पर एक दिव्यांग लड़की थी जिसने सामान का बिल बनाया और साइन लैंग्वेज में पेमेंट मोड पूछा। मैंने कार्ड दिखा दिया, उसने कार्ड लेकर स्वाईप किया और मुझे एक ऑफर के बारे में बताया या बताने की कोशिश की। मुझे कुछ समझ नहीं आया, बस, इतना समझा कि वो किसी ऑफर के बारे में बता रही है और उसे मेम्बरशिप नम्बर देना है । मैंने रजिस्टर्ड फोन नम्बर दिया जो मेरे हसबैंड का था। अब उसने मुझसे ओटीपी मांगा जो रजिस्टर्ड नम्बर पर आया । मैंने माफी मांगते हुए कहा कि मैं ये ऑफर बाद में देख लूंगी क्योकि बेटी को कॉलेज जाना था। इतना सुनकर वो मुझे और अधिक तरीके से समझाने लगी । मुझे अहसास हुआ कि शायद मैं सही तरीके से समझ नहीं पा रही हूँ। मुझे ग्लानि भी हुई पर समय की कमी की वजह से मै 'फिर कभी' कहकर निकल आयी। निकलते वक्त मैंने उसके उदास चेहरे को देखा। निसंदेह उसकी समझाईश में कमी नहीं थी, कमी मुझमे थी जो मैं उसकी भाषा समझ नहीं पा रही थी।
घर आकर यह बात मुझे दो दिन तक कचोटती रही। मैने गुगल किया और साइन लैंग्वेज के बारे में जाना। मुझे पता लगा कि कितने ही देशों के शैक्षिक पाठ्यक्रम में बेसिक साइन लैंग्वेज़ अनिवार्यतः शामिल की गयी है। हमारे देश में यह मूक बधिर भाषा ही मानी जाती है और किसी भी सामान्य स्वस्थ व्यक्ति को इसे सीखाना शायद औचित्यपूर्ण नहीं समझा जाता । इस घटना के पहले मैं भी ऐसा ही समझती थी लेकिन इसके बाद लगने लगा कि अगर मुझे इस भाषा का तनिक भी ज्ञान होता तो उस लड़की के चेहरे पर यूँ उदासी न छाती। मैंने यूट्यूब चैनल सर्च किये जो साइन लैंग्वेज़ सीखाते है। अगले पंद्रह दिनों तक रोज के एक घंटे में, मैं साइन लैंग्वेज़ के अल्फाबेट , नम्बर और रोजमर्रा के वाक्य सीखती रही। मैं चाहती थी कि अब जब भी मैं उससे मिलू तो उसे उसकी भाषा में अभिवादन करुँ। लॉकडाउन की वजह से न तो मैं उससे मिल पायी और अपनी आलस्यवृत्ती की वजह से न ही उस भाषा को सीखना कंटीन्यू रख पायी। लेकिन जो भी हो उस लड़की ने मुझे इंस्पीरेशन दिया कुछ नया सीखने का और सीखते हुए मुझे बहुत अच्छा लगा।
जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि मेरा मन दो दिन तक कचोटता रहा ...इसी कचोट में मैंने उस लड़की को समर्पित कुछ लिखा जो शायद सभी तक पहूँचना चाहिये।
आसान नहीं होता किसी को समझना
उन मनोभावों को पढ़ पाना
जिसे सिर्फ उसकी ही आत्मा समझती है
वो लाख समझाना चाहे
पर समझा नहीं पाता
कुछ बता नहीं पाता
वो आपकी बात सुन नहीं सकता
पर अपनी बात कहना चाहता है
कैसे कहे ?
बोल भी तो नहीं पाता
उसके शब्दकोश में शब्द ही नहीं है
उसके कानों में कोई आवाज नहीं पहुँचती
फिर भी वो आवाज उठाता है
और एक तरफ वो
जिसके पास शब्दों का अपार भंडार है
जिसके कानों में
कभी मिश्री से शब्द घुलते है
तो कभी
गरम शीशा सा पिघलता है
लेकिन एक मूक भाषा का उसे ज्ञान नहीं
तमाम खुबियों के बाद
अपनी पाँचों इंद्रियों की उपस्थिति के बावजूद
वो असमर्थ है
कुछ अनसुना सा
कुछ अनकहा सा समझने में
वो कहता है
उसकी छठी इंद्री तो और भी सक्रिय है
जिस पर गुमान भी है उसे
पर वो भी निशब्द है
उस समझाइश के आगे
अपनी तमाम उच्च स्तरीय शिक्षा के बावजूद
अगर नहीं समझ पाते हम
किसी अक्षम इंद्री को
तो नकारा है हम
हम सिर्फ ज्ञान बघारना जानते है
लेकिन असल में
जरुरत है हमे कुछ सीखने की
न जाने जीवन के किस मोड़ पर
कोई हमसे गले मिलना चाहे
और हम
आत्मकेंद्रित लोग
शब्दों और आवाजों की दुनिया में खोये
उन गर्मजोश बाहों के समीप से निकल जायेंगे
और छोड़ देंगे उन्हे
बहुत पीछे
सुनो ......
साथ लो उन्हे
समझो उन्हे
और
उनकी भाषा को
क्योकि
दुनिया सिर्फ तुम्हारे अकेले की ज़ागीर न है
सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर विचार और रचना भी।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सर
हटाएंSachchi Abhivyakti di❤️
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