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मन:स्थिति

कठपुतली है वो लोग
जो गुलाम है
क्षण प्रतिक्षण बदलती 
अपनी ही मन:स्थिति के
तुम प्रयास करना 
एक स्थिर मन:स्थिति का
उन्माद, क्रोध, संवेग और भय में
ये तुम पर हावी हो जाती है
तुम अडिग रहना
गर डगमगा भी जाओ
तो थाम लेना उसे
जिससे तुम बने है
तुम्हारी अपनी प्रकृति
तुम्हारा अपना वजूद
जो खो सकता है खुद को
इन क्षणिक आवेगों के तहत
तुम्हे पता है
ज्ञानयोग में स्वामीजी कहते है कि
हमारी आत्मा की भी 
एक अन्तरात्मा होती है
वही सत्य होती है
तुम उसका आवरण 
कभी किसी के सामने मत खोलना
तुम्हारे अलावा 
कोई नहीं जान पायेगा उसे
लेकिन 
मुद्दा ये है 
कि तुम उसे कितना जानते हो ? 
अगर तुम जान गये 
तो फिर तुम मन:स्थिति के नहीं
बल्कि मन:स्थिति तुम्हारी गुलाम होगी

टिप्पणियाँ

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 02 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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