कभी यात्रा की है
किसी जंगल की ?
नहीं?
तो सुनो
अपने मन में झांको
एक गहन जंगल है वहाँ
घुप्प अंधेरा....
कंटीली झाड़ियाँ
हर रोज उगते कूकुरमुत्ते
और सुनो ध्यान से
बोलते सियार, रोते कूत्ते
सन्नाटे को चीरते झींगूर
हँसी नहीं तेज अट्टहास है वहाँ
किसका?
नहीं जानते तुम
क्योकि तुम पहचान नहीं पाते
किसी एक आवाज को
और शोर समझ नजरअंदाज कर देते हो
तुम देख नहीं पाते
सूखे दरख्तों को
झड़ते पत्तों को
क्योकि यहाँ
घनघोर कोहरा छाया है
तुम्हारे विचारों का
छँट नहीं सकते तुम उससे
ये बादल नहीं है जो उड़ जायेगे
ये भारी है बहुत क्योकि
इसमे धुंध है
तुम्हारी ग्लानियों की, गुस्से की
गलत निर्णयों की, अपनी छवि की
दोहरी मानसिकता की, तनाव की
सब पा जाने की लालसा की
सब खो देने के डर की
लेकिन सुनो
एक दिया जलाओ, उजाले से भरा
तब सब छँट सकता है
जो बाहर दिखते हो
वो अंदर भी दिखो
और फिर सैर करो अपने मन के जंगल में
अब यहाँ अद्भुत जंगली फूल खिलेंगे
संगीता जाँगिड़
टिप्पणियाँ
खुद के अन्दर की यात्रा ही नहीं करता बस इंसान ... एक दिया नहीं जलाता और दूसरों की बात करता है ... अच्छा लिखा है बहुत ...
जो मन के अंधेरे से लड़ जाए फिर किसी से कहाँ हारता है🤗