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पुरुष दिवस

जानती हूँ मैं
मुश्किल होता है पुरुष होना
अपने कंधों पर हर भार ढ़ोना
आँसूओं को अंदर ही अंदर सींचना
नहीं मतलब किसी को तुम्हारे भावों से
क्योकि भावुक तो स्त्रीयां मानी जाती है
तुम्हे तो पुरुषत्व के साथ जीना है
एक गुरूर, एक दंभ, एक अहं
एक गढ़ी गढ़ाई परिभाषा है तुम्हारी
तुम जीना चाहते हो अपने मनोभावों को
लेकिन उंडेल नहीं पाते उन्हें
क्योकि तुम पुरुष हो
न जाने कितने विचार
रोज मरते है तुम्हारे अंदर
तुम उन्हे जीवनदान देना चाहते हो
लेकिन घोट देते हो अपने ही अंदर
क्योकि तुम नहीं दिखा सकते
अपना नर्म, नाजुक और संवेदनशील मन
तुम भी मापना चाहते हो आसमान
तुम भी उड़ना चाहते हो परिंदों की तरह
तुम भी हवाओं की थिरकन चाहते हो
कभी कभी
तुम विरोध भी करना चाहते हो
लेकिन तुम नहीं निकाल सकते मोर्चा
क्योकि तुम पुरुष हो
तुम्हारी हकीकत की जमीं सख्त है
लेकिन सुनो पुरूष
आधी आबादी तुम्हें बहुत प्यार करती है
तुम प्रतिद्वंदी नहीं पूरक हो
हम मिलकर पूर्ण होते है
ना तुम्हारा कोई दिन
ना मेरा कोई दिन
हर दिन हमारा हो।

संगीता
#अंतर्राष्ट्रीय_पुरुष_दिवस

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बधाई पुरुष दिवस की। सुन्दर रचना।

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उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

सीख जीवन की

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