जानती हूँ मैं
मुश्किल होता है पुरुष होना
अपने कंधों पर हर भार ढ़ोना
आँसूओं को अंदर ही अंदर सींचना
नहीं मतलब किसी को तुम्हारे भावों से
क्योकि भावुक तो स्त्रीयां मानी जाती है
तुम्हे तो पुरुषत्व के साथ जीना है
एक गुरूर, एक दंभ, एक अहं
एक गढ़ी गढ़ाई परिभाषा है तुम्हारी
तुम जीना चाहते हो अपने मनोभावों को
लेकिन उंडेल नहीं पाते उन्हें
क्योकि तुम पुरुष हो
न जाने कितने विचार
रोज मरते है तुम्हारे अंदर
तुम उन्हे जीवनदान देना चाहते हो
लेकिन घोट देते हो अपने ही अंदर
क्योकि तुम नहीं दिखा सकते
अपना नर्म, नाजुक और संवेदनशील मन
तुम भी मापना चाहते हो आसमान
तुम भी उड़ना चाहते हो परिंदों की तरह
तुम भी हवाओं की थिरकन चाहते हो
कभी कभी
तुम विरोध भी करना चाहते हो
लेकिन तुम नहीं निकाल सकते मोर्चा
क्योकि तुम पुरुष हो
तुम्हारी हकीकत की जमीं सख्त है
लेकिन सुनो पुरूष
आधी आबादी तुम्हें बहुत प्यार करती है
तुम प्रतिद्वंदी नहीं पूरक हो
हम मिलकर पूर्ण होते है
ना तुम्हारा कोई दिन
ना मेरा कोई दिन
हर दिन हमारा हो।
संगीता
#अंतर्राष्ट्रीय_पुरुष_दिवस
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