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भ्रम

इन दिनों मन विचलीत सा है
चंचल सा रहने वाला ये मन
ना जाने क्युँ बेचैन सा है
एक तस्वीर सी उभरती है
दिलो दिमाग़ में
जो कई सवाल खड़े करती है
कुछ गफ़लत सी छाई रहती है
कुछ समझ सकूँ 
उससे पहले धुँधला जाती है
वो तस्वीर
असमंजस में हूँ कि
परिस्थितियों का एक सिलसिलेवार क्रम है
या फिर सिर्फ मेरे मन का भ्रम है 
मानती हूँ कि
मेरी छठी इन्द्रिय 
हैं कुछ ज्यादा ही सक्रिय
इसीलिये भ्रम मात्र तो मान नहीं सकती
सच हो नहीं सकता
कश्मकश में है मन
सोच रही हूँ
वक़्त पर सब छोड़ दूँ
समय की आँधी 
धुँधलका हटा देगी
और 
तस्वीर खुद-ब-खुद साफ़ दिख जायेगी
तब तक 
ऐ जिन्दगी ! 
तु और मैं गफ़लत में ही सही
थोड़ा जी लेते है।


टिप्पणियाँ

जिंदगी तो जीना ही पड़ती अहि ... गज्लत में या आनद से आराम से ... पर मन मानता भी नहीं ...
आत्ममुग्धा ने कहा…
शायद इसी का नाम जिन्दगी है...... कभी खुली किताब तो कभी अबूझ पहेली

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