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HT NO TV DAY

आजकल कुछ खास दिनों को मनाने का प्रचलन बहुत जोरो पर हैं, जैसे hug day,rose day,kiss day,chocolate day,mothers day,fathers day,daughters day,smile day और भी ना जाने क्या क्या ।लेकिन इन सब के बीच "हिन्दुस्तान टाइम्स" एक नई पहल लेकर आया है और पिछले दो सालों से इस मुहिम को सफल भी बना रहा है । HT NO TV DAY एक सार्थक प्रयास ।
          पिछले दो सालों में HT ने ना केवल यह शुभ कार्य प्रारम्भ किया बल्कि इसे सफल बनाने के लिए भी भरसक प्रयत्न किये और निसन्देह: वह इसके लिये बधाई के पात्र है ।
           इस "बुद्धु बक्से" ने हमारी भावी पीढ़ी को पूरी तरह से अपने चक्रव्यूह में फंसा लिया है ।गृहिणीयों की रचनात्मकता और कुशलता भी इसको भेंट चढ़ गई । जो समय परिवार के नाम होता है,वो समय भी ये डकार गया । हमे सब पता है फिर भी........... ।
            मैं यहाँ TV के गुण और दोष नहीं गिनाने वाली हुँ ,वो तो हम सब को पता है ।मेरी इस post का पूरा श्रेय है HT की टीम को , जिनके जज्बे ने हम सबको प्रेरित किया tv बंद करने को ।मैं पिछले एक सप्ताह से पेपर में इनकी गतिविधियाँ देख रही हुँ और कही ना कही उनसे जुड़ी भी हूँ । इनके प्रयास अनुकरणीय है ,इस post के जरिये मैं भी यही संदेश देना चाहती हुँ कि हम सब को इस मुहिम में इनका साथ देना चाहिए । क्या हम अपने घर की बैठक में किसी बाहर वाले को एक दिन भी आने से नहीं रोक सकते ? 
            

टिप्पणियाँ

टी वी घुन की तरह घुस गया है और लील गया है खुद के पलों को ...
इससे मुक्ति होनी ही चाहिए ... अच्छा प्रयास है ...
आत्ममुग्धा ने कहा…
धन्यवाद नासवाजी.........वाकई सराहनीय है ये प्रयास

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उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

साड़ी

आज इंटरनेशनल साड़ी डे है । एक वक्त था जब मैं हर रोज साड़ी पहनती थी, साड़ी पहनना आदतन था। अब भले ये आदत थोड़ी पीछे छूट गयी है पर साड़ी से मोह हर रोज बढ़ता जा रहा। साड़ी की मेरी समझ अब पहले से कही अधिक है।             जैसा कि सब कहते है कि साड़ी महज एक कपड़ा नहीं है वो इमोशन है , मैं इस बात से पूरा सरोकार रखती हूँ । साड़ी सच में आपके भाव है, आपकी अभिव्यक्ति है , आपके व्यक्तित्व का आइना है।    हम सबकी अपनी अपनी पसंद होती है और कुछ चुनिंदा रंगों की साड़िया स्वत: ही हमारी आलमारी में जगह बना लेती है।कुछ साड़ियों दिल के बेहद करीब होती है , कुछ में कहानियां बुनी होती है, कुछ के किस्से गहरे होते है, कुछ हथियायी हुई रहती है, कुछ उपहारों की पन्नी में लिपटी होती है, कुछ कई महीनों की प्लानिंग के बाद आलमारी में उपस्थित होती है तो कुछ दो मिनिट में दिल जीत लेती है ....मेरी हर साड़ी कुछ इन्ही बातों को बयां करती है लेकिन एक काॅमन बात है हर साड़ी में, कोई भी साड़ी कटू याद नहीं देती और यही बात साड़ी को खास बनाती है। आप अपनी आलमारी खोलकर देखिये , साड़ियां मीठी बातों से ही बुनी होती है।     साड़ियां माँ