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सूपर मोम

सूपर मोम.......यह शब्द पिछले कुछ वर्षों से महिलाओं से जुड़े शब्दों में प्रमुख रूप से उभरकर आया शब्द है .आखिर कौन है सुपर मोम ?.......यह माँ का वो आधुनिक रूप है जिसकी कल्पना हमारी दादी-नानी ने तो कदापि नहीं की थी .इस सुपर मोम की जिंदगी सुबह पांच बजे से शुरू होकर रात के ग्यारह बजे भी थमने का नाम नहीं लेती .यह सुपर मोम आधुनिक समाज की वो नारी है जो हर जगह अपनी सक्रीय भूमिका निभाती है , अब उसका कार्यक्षेत्र सिर्फ रसोईघर ही नहीं रहा बल्कि हर क्षेत्र में वह अपनी दमदार दावेदारी रखती है .वह घर की धूरी है , ऑफिस में powerful कॉरपोरेट women है , सिर्फ पति और बच्चों को ही समय नहीं देती , खुद के लिए भी समय निकालती है , पार्लर और स्पा में जाती है ,किट्टी पार्टी एन्जॉय करती है , डिस्को में थिरकती है , रसोईघर में लैपटॉप पर अंगुलियाँ चलाते हुए मिनटों में microwave में खाना बना लेती है बिना धुएँ , चूल्हे और चौके के और भी ना जाने ऐसी कितनी अनगिनत चीजे है जो ये सुपर मोम पलक झपकते ही कर लेती है और सबसे बड़ी बात कि इस सुपर मोम से सब खुश है , पति इसकी कोई बात नहीं काटता, बच्चें mother's day पर कार्ड देते है और बेस्ट सुपर मोम से नवाजते है
                                                       अब हम थोडा।........नहीं ...थोडा ज्यादा पीछे चलते है , चलते है दादी-नानी के ज़माने में . वे सुबह पांच बजे उठती थी और रात के नौ-दस बजे तक चक्करघिन्नी सी घुमती रहती थी . पति के साथ कंधा मिलाना तो दूर दिन के उजाले में रूबरू बात करना तक नसीब नहीं होता था,धूआँ ,चूल्हा-चौका ही उनकी जिंदगी थी , बच्चों की तरफ से उन्हें कोई उपाधि नहीं दी जाती थी , श्रृंगार के नाम पर नई  साड़ी और मेहँदी ही काफी थी , उनके जीवन का एक ही ध्येय था अपने घर को संजो के रखना ................आश्चर्य है कि यही ध्येय हमारी सुपर मोम का भी है ......तो क्या साड़ी से जींस तक के सफ़र में कुछ भी नहीं बदला ?
       हमारी दादी-नानी घूँघट में सिसकती भी थी तो किसी को आहट  ना होती थी ऐसे में समाजसुधारकों ने आवाज़ उठाई
               'अबला जीवन हाय!तेरी यही कहानी
              आँचल में है दूध आँखों में पानी '
   ऐसी बातों को सुन हमारी माँ बदली , हम भी बदले और माँ,माँ से सुपर मोम बन गई
      .............................लेकिन ना जाने क्यों ,मुझे कभी-कभी लगता है कि हमारी सुपर मोम को छला जा रहा है , आगे बढती हुई नारी को सुपर मोम का तगमा देना पुरुष प्रधान समाज की चालाकी तो नहीं ?
   वो दादी-नानी के जैसे ही चक्करघिन्नी हो गई है.वो माँ घूँघट में पिसती थी और आज की माँ सुपर मोम की आड़ में , उसे थकने थमने का समय नहीं क्योकि वो सुपर मोम है, वो बीमार नहीं हो सकती क्योकि उसपर कई जिम्मेदारियों का बोझ है , वो multivitamins लेती है क्योकि उसके खाना खाने का कोई वक़्त नहीं , बच्चे को जन्म देने के तीसरे ही दिन वो ड्यूटी ज्वाइन कर लेती है क्योकि वो सुपर मोम है . 35 की परिपक्व उम्र में जब वो माँ बनकर बच्चे को जन्म देती है , तो रात में बच्चे की किलकारियाँ उसके मातृत्व सुख को नहीं बढाती बल्कि नींद की भरपूर कमी उसकी चिडचिडाहट जरुर बढ़ा  देती है ......एकल परिवारों की यह अकेली नारी फिर भी नहीं थकती और लगातार आगे बढती जा रही है .....ऐसी सुपर मोम को मेरा सलाम
     फिर भी इतना जरुर कहूँगी
       सुपर मोम क्या यही है तेरी कहानी
     कहाँ है आँचल का दूध
        और कहाँ गई तेरी आँखों की रवानी  

टिप्पणियाँ

सुपर मौम के नाम पे छलावा भी हो रहा है ... झाड पे चढ़ा देते हैं कभी कभी सब मिल के ... अच्छा लिखा है ...
दोहरी जिम्मेदारी की नई जंग है.....

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