सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

'सत्यमेव जयते'



कल आमिर खान prodction के 'सत्यमेव जयते' का पहला एपिसोड देखा ,देखकर भीग गया मन. पिछले पांच-छ: सालों से टीवी की दुनियां में रिअलिटी शो की झड़ी सी लगी है, उन सबमे से सत्यमेव जयते वाकई कुछ रियल सा लगा. हकीकत,जिसे हम सभी जानते है, उसी के कुछ अनछुए पहलु और मुद्दों को मद्देनज़र करता है यह शो.
आमिर खान हमेशा से ही कुछ अलग करते आये है और इस बार वे छोटे परदे पर भी सफल हुए है,वे सही कहते है कि दिल पे लगेगी तभी बात बनेगी.उन्होंने सीधे दिल पे चोट की है इस शो के माध्यम से. रविवार की सुबह जब नाश्ते और खाने की जगह सिर्फ brunch ही होता है, समय निकालना थोडा मुश्किल होता है लेकिन मैंने निकाला और वो भी पूरा एक घंटा.
पहले एपिसोड का मुद्दा था 'कन्या भ्रूण हत्या'. शो की शुरुआत में ही आँखे नम होने लगी,लड़की को जन्म देने की वजह से पीड़ा झेल रही महिलाओ से रूबरू करवाया गया,उनकी व्यथा इतनी तीव्र थी कि शब्द लड़खड़ा रहे थे,आँखे ही नहीं गला भी भर रहा था,आमिर की आँखों में भी कुछ पिघलता हुआ सा महसूस हुआ....दर्शक-दीर्घा में बैठे लोग भी निशब्द थे....सबके दिलों पे जो लगी थी,लेकिन शो ख़त्म होते-होते आमिर खान ने लोगो में एक जज्बा सा पैदा कर दिया कि हमे ही कुछ करना होगा क्योकि उनके शब्दों में हम ही तो है जादू कि छड़ी.
आमतौर पर सब यही सोचते है कि कन्या भ्रूण हत्या वो गरीब महिलाए करवाती है जो बेटी के विवाह का बोझ वहन नहीं कर पाती,या फिर वो महिलाए जो शिक्षित नहीं है,या फिर वो रुढ़िवादी महिलाए जिन्हें परिवार का वंश चलाने के लिए वारिस चाहिए,लेकिन इस शो ने हमारी सोच बदल दी हमे पता चला कि कन्या भ्रूण हत्या सिर्फ और सिर्फ संकीर्ण मानसिकता वाले लोग ही करवाते है फिर भले ही वे उच्च शिक्षित हो,उच्च वर्गीय हो या आधुनिक हो. बल्कि एक और सच सामने आया कि अशिक्षित और निम्न वर्ग को तो कोई चिंता ही नहीं है कि भ्रूण लड़के का है या लड़की का. आमिर के साथ मेरा भी सलाम उस भारती को जो अपनी गोद में अपनी नन्ही सी बेटी को उठाये मुस्कुरा कर कह रही है कि जो भगवान् देगा ख़ुशी से लेंगे.एक डॉक्टर ने भी कहा कि आदिवासी लोग कभी नहीं पूछते कि गर्भ में पल रहे बच्चे का सेक्स क्या है बल्कि जन्मोत्सव मनाते है चाहे लड़का पैदा हो या लड़की
हमने हमेशा विज्ञान का अधिकतर गलत उपयोग ही किया है.भूर्ण गिरना उन परिस्थितियों में सही है जब बच्चे का शारीरिक विकास सही नहीं हो रहा हो,उसके शरीर में कोई त्रुटी हो ,इन विषम परिस्थितियों में बच्चे को इस दुनिया में ना लाने का फैसला माँ-बाप और बच्चे दोनों के लिए जायज होता है,लेकिन भ्रूण लड़की है,सिर्फ इसीलिए उसे इस दुनिया में आ आने देना एक जघन्य अपराध है और मुझे आश्चर्य है कि शायद ६०%मामलों में माँ की सहमती भी होती है.आमिर के शो पर आई महिलाओं ने विद्रोह किया और अपनी बेटियों को जन्म दिया,मैं नतमस्तक हु उन माओं के आगे.
कुल मिलाकर परिस्थितिया यही दिखाती है कि वंश चलाना लोगो कि प्राथमिकता है इसलिए उन्हें बेटा चाहिए,लेकिन इसके अलावा कही कुछ और भी है जो लोगो को शायद इस राह पर लेकर जा रहा है.
थोड़े दिन पहले एक खबर पढ़ी थी जिसमे एक वहशी पिता ने अपनी ही नाबालिग बेटी से कई महीनों तक बलात्कार किया और बेटी ,पिता के इस घिनौने कार्य से अपने ही पिता की संतान की माँ बन गई .....मेरी रूह काँप गई यह पढ़कर और ना जाने क्यों मैं यह सोच बैठी कि काश वो बेटी पैदा ही नहीं हुई होती.पुरे दिन मेरे दिमाक में यही प्रश्न कौंधता रहा कि दोनों बच्चियों का क्या कसूर? पिता के नाम पर दरिन्दे ने इंसानियत का ही क़त्ल कर दिया.नवजात बच्ची किस रूप में आई,किन रिश्तों को लेकर आई उसकी तो पूरी जिंदगी ही प्रश्न चिन्ह बन गई
शायद मेरी सोच गलत हो , शायद आप लोग मुझसे सहमत ना हो लेकिन जब बेटियों की सुरक्षा की कोई गारंटी ना हो तभी कोई माँ साथ देती है एक डॉक्टर का, पती का और सास का अपना बच्चा गिराने के लिए.जब तक समाज में ऐसे दरिन्दे घूम रहे है हमारी माँ ही नहीं बल्कि कन्या भ्रूण भी डर रहा है इस दुनिया में दस्तक देने को.............नन्ही कलियों को लाने से पहले हमे हमारी बगिया को महकाना पड़ेगा क्योकि
" बरबाद गुलिस्ता करने को
एक ही उल्लू काफी था


अब हाल-ए-गुलिस्तां क्या होगा
हर शाख पे उल्लू बैठा है "

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

पिता और चिनार

पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है, विशाल....निर्भीक....अडिग समय के साथ ढलते हैं , बदलते हैं , गिरते हैं  पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं , न जाने, ख़ुद कितने पतझड़ देखते हैं फिर भी बसंत गोद में गिरा जाते हैं, बताते हैं ,कि पतझड़ को आना होता है सब पत्तों को गिर जाना होता है, सूखा पत्ता गिरेगा ,तभी तो नया पत्ता खिलेगा, समय की गति को तुम मान देना, लेकिन जब बसंत आये  तो उसमे भी मत रम जाना क्योकि बसंत भी हमेशा न रहेगा बस यूँ ही  पतझड़ और बसंत को जीते हुए, हम सब को सीख देते हुए अडिग रहते हैं हमेशा  चिनार और पिता

कुछ अनसुलझा सा

न जाने कितने रहस्य हैं ब्रह्मांड में? और और न जाने कितने रहस्य हैं मेरे भीतर?? क्या कोई जान पाया या  कोई जान पायेगा???? नहीं .....!! क्योंकि  कुछ पहेलियां अनसुलझी रहती हैं कुछ चौखटें कभी नहीं लांघी जाती कुछ दरवाजे कभी नहीं खुलते कुछ तो भीतर हमेशा दरका सा रहता है- जिसकी मरम्मत नहीं होती, कुछ खिड़कियों से कभी  कोई सूरज नहीं झांकता, कुछ सीलन हमेशा सूखने के इंतजार में रहती है, कुछ दर्द ताउम्र रिसते रहते हैं, कुछ भय हमेशा भयभीत किये रहते हैं, कुछ घाव नासूर बनने को आतुर रहते हैं,  एक ब्लैकहोल, सबको धीरे धीरे निगलता रहता है शायद हम सबके भीतर एक ब्रह्मांड है जिसे कभी  कोई नहीं जान पायेगा लेकिन सुनो, इसी ब्रह्मांड में एक दूधिया आकाशगंगा सैर करती है जो शायद तुम्हारे मन के ब्रह्मांड में भी है #आत्ममुग्धा

किताब

इन दिनों एक किताब पढ़ रही हूँ 'मृत्युंजय' । यह किताब मराठी साहित्य का एक नगीना है....वो भी बेहतरीन। इसका हिंदी अनुवाद मेरे हाथों में है। किताब कर्ण का जीवन दर्शन है ...उसके जीवन की यात्रा है।      मैंने जब रश्मिरथी पढ़ी थी तो मुझे महाभारत के इस पात्र के साथ एक आत्मीयता महसूस हुई और हमेशा उनको और अधिक जानने की इच्छा हुई । ओम शिवराज जी को कोटिशः धन्यवाद ....जिनकी वजह से मैं इस किताब का हिंदी अनुवाद पढ़ पा रही हूँ और वो भी बेहतरीन अनुवाद।      किताब के शुरुआत में इसकी पृष्ठभूमि है कि किस तरह से इसकी रुपरेखा अस्तित्व में आयी। मैं सहज सरल भाषाई सौंदर्य से विभोर थी और नहीं जानती कि आगे के पृष्ठ मुझे अभिभूत कर देंगे। ऐसा लगता है सभी सुंदर शब्दों का जमावड़ा इसी किताब में है।        हर परिस्थिति का वर्णन इतने अनुठे तरीके से किया है कि आप जैसे उस युग में पहूंच जाते है। मैं पढ़ती हूँ, थोड़ा रुकती हूँ ....पुनः पुनः पढ़ती हूँ और मंत्रमुग्ध होती हूँ।        धीरे पढ़ती हूँ इसलिये शुरु के सौ पृष्ठ भी नहीं पढ़ पायी हूँ लेकिन आज इस किताब को पढ़ते वक्त एक प्रसंग ऐसा आया कि उसे लिखे या कहे बिना मन रह नहीं प