परीक्षा भवन में आज गहरा सन्नाटा था
रह रह कर मेरा दिल घबरा रहा था
सुबह की घटनाओ को याद कर
ना जाने क्यों आँखे भी फटी सी रह गई , जहा थी वही अचल सी मैं रह गई
धडकनों की आवाज़ लगने लगी ऐसे
नगाड़ो पर पड़ रहे हो हथोड़े जैसे
एक सौ साठ प्रति मिनिट हो रही थी ह्रदय गति
कुछ उपाय समझ ना आया , घूम गई मेरी मति
कांप गई मैं पूरी की पूरी , हाथ पावँ थरथराने लगे
सुबह के दृश्य चलचित्र की भांति मेरे सामने आने लगे
सुबह सुबह गधा भी आज बांयें से गुजरा था
निगोड़ी काली बिल्ली ने भी रास्ता मेरे काटा था
राशिफल भी कुछ अच्छा ना था , अनिष्ट के घटित होने का उसमे पक्का वादा था
लेकिन फिर भी मै बड़ी बहादुरी से चली आई थी परीक्षा देने
लेकिन अब ;
परीक्षा भवन के सन्नाटे से मेरा दिल घबरा रहा था
अनिष्ट के घटित होने का ख्याल दिल में बार बार आ रहा था
परचा मिलने में समय था अभी बाकी
कि तभी मुझे याद आया , अरे !
आज सुबह तो आँख भी मेरी फड़की थी
कोसने लगी मैं खुद को , किस बुरी घडी में मैंने घर से निकलने की ठानी थी
खैर , घडी ने साढे सात बजाए
पर्चे बांटने को सर परीक्षा भवन में आये
मैं तेरहवे नंबर पर बैठी थी
मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ रही थी
कि अचानक ;
मेरी नजर मेरी बैंच पर लिखे अक्षर पर पड़ी
मेरा मन जार जार रोने लगा
बैंच पर लिखा था मेरा नंबर १३
शुभ अशुभ की दृष्टी से यह नंबर होता है अशुभ बड़ा
इतना तो मुझे भी था पता
आखिरकार सर मेरे करीब आये
और ; मुझे परचा दिया
माँ सरस्वती के स्मरण के साथ मैंने परचा देखा
कि तभी ;
परीक्षा भवन में हलचल हुई , सरसराहट हुई
कोहराम मचा , कोलाहल हुआ
प्रिन्सिपल रूम में आई
पुछ्तात पर पता चला कि
तेहरवे नंबर पर जो छात्रा बैठी थी
परचा देखते ही बेहोश हो गई
टिप्पणियाँ
जबकी विजय कर्म की होती है..
बढ़िया लेखन...
कोई अंधविश्वास छूटा नहीं आपसे :-)
अंतिम लाईने अंधविश्वाश को बढ़ावा देती नजर आ रही है
या मेरे समझ में फेर है
ईश्वर का स्मरण करने के बाद तो हर भूत भाग जाता है