माँ मुझे मत मारो
मैं तुम्हारा ही एक हिस्सा हु
तुम्हारी कोख में पल रहा
एक अधूरा ख्वाब हु मैं
जिसे देख रही हो तुम पिछले तीन महीनों से
तुम चाहती हो वो कलाई
जिस पर दीदी राखी बांधे
वो ललाट जिस पर दूज का टिका सजे
और अब
तुम्हारा मन विचलित है
क्योकि तुम्हे मेरी पहचान हो गई है
जब से तुम्हे मेरे बारे में पता चला है
तुमने तैयारियां शुरू कर दी
मुझे मार डालने की
लेकिन माँ
मेरा क्या कुसूर ?
तुम कहती हो
पापा को वारिस चाहिए
दादी को वंश बढ़ाना है
लेकिन माँ
ये तो बहाना है
क्योकि प्रश्नचिन्ह तो तुम्हारे ही मन में है
तुम खुद नहीं चाहती कि
मैं जन्म लू
माँ मुझे याद है
जब तुम्हे पहली बार मेरा अहसास हुआ
तुम बहुत खुश थी
और मैं भी
मैं जल्द से जल्द इस दुनियां में आना चाहती थी
तुम्हारी गोद में समा जाना चाहती थी
तुम्हारी मधुर आवाज़
कोमल स्पंदन
सब कुछ मुझे आनंदित कर देता था
लेकिन धीरे-धीरे
तुम्हारे ख्याल ख्वाब मुझे समझ आने लगे
मैं नन्ही जान
डर गई
क्या होगा ?
जब तुम्हे मेरे अस्तित्व का पता चलेगा
माँ, मेरा दम घुटने लगा तुम्हारे पेट में
फंस गई मैं गर्भनाल की लपेट में
अब तो मेरा दिल भी धड़कने लगा है
मेरे नन्हे हाथ पावं आकार लेने लगे है
माँ , मुझे आने दो
मेरे रूप को देखकर तुम सब भूल जाओगी
मैं बेटा नहीं , तुम्हारा अभिमान बनुगी
तुम विद्रोह करो माँ
दादी से,पापा से,समाज से
माँ तुम भी तो औरत हो
फिर क्यों मुझे मारना चाहती हो
क्यों शर्मिंदा करती हो
अपनी ही कोख को
लेकिन माँ
अब मैंने भी फैसला कर लिया
मैं कोई अभिशाप नहीं हु
आउंगी तो सम्मान के साथ
और जाउंगी तो अपनी मर्जी से
तुम विद्रोह करो या ना करो
लेकिन
मैं करती हु विद्रोह
तुम मुझे क्या गिराओगी
मैं खुद जा रही हु तुम्हारी कोख छोड़कर
मैं जा रही हु माँ
हमेशा हमेशा के लिए ...........................................
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सादर,