एक मन कितनी बार भरोसा करेगा ?
दूसरी बार...
तीसरी बार....
चौथी बार....?
पाँचवी बार में वो अभ्यस्त हो जाता है
उसे हर बार दरकते भरोसे की
आहट पता लग जाती है
वो अब भरोसे की कल्पनाओं से बाहर है
मन के शब्दकोष में अब
ये शब्द गुमशुदा है
वो असमंजस में है, पीड़ा में है
प्रपंचों के जंजाल में
खुद को एक सीध में रखते हुए
अब वो अक्सर एक सवाल करता है
कैसे होगा भरोसा ?
क्योकि यहाँ एक दौड़ लगी है
हर एक भागा जा रहा है
भरोसा हाथ में लिये
जैसे दौड़ते थे हम बचपन में
लेमन स्पून दौड़ में
निंबू गिर जाता था
हम खेल के बाहर हो जाते थे
लेकिन....
भरोसा गिरता है
और कोई खेल के बाहर नहीं होता
इसलिए किसी को कोई डर नहीं
झूठ सच कुछ भी करके
सब भरोसा बनाये हुए है
और मन स्तब्ध है
टिप्पणियाँ
पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (9-10-22} को "सोने में मत समय गँवाओ"(चर्चा अंक-4576) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
और कोई खेल के बाहर नहीं होता
इसलिए किसी को कोई डर नहीं
झूठ सच कुछ भी करके
सब भरोसा बनाये हुए है
और मन स्तब्ध है
वाकई में स्तब्ध है ।