पिता चिनार के पेड़ की तरह होते है,
विशाल....निर्भीक....अडिग
समय के साथ ढलते हैं ,
बदलते हैं ,
गिरते हैं
पुनः उठ उठकर जीना सिखाते हैं ,
न जाने, ख़ुद कितने पतझड़ देखते हैं
फिर भी बसंत गोद में गिरा जाते हैं,
बताते हैं ,कि पतझड़ को आना होता है
सब पत्तों को गिर जाना होता है,
सूखा पत्ता गिरेगा ,तभी तो नया पत्ता खिलेगा,
समय की गति को तुम मान देना,
लेकिन जब बसंत आये
तो उसमे भी मत रम जाना
क्योकि बसंत भी हमेशा न रहेगा
बस यूँ ही
पतझड़ और बसंत को जीते हुए,
हम सब को सीख देते हुए
अडिग रहते हैं हमेशा
चिनार और पिता
टिप्पणियाँ
हम सब को सीख देते हुए
अडिग रहते हैं हमेशा
चिनार और पिता
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
पितृदिवस की हार्दिक शुभकामनायें
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०६-२०२२ ) को
'पिता सबल आधार'(चर्चा अंक -४४६६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
मेरे ब्लॉग पर भी भ्रमण करें।आपका स्वागत है।
पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
वाह!!!
लाजवाब सृजन।