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मन सूरजमुखी

मन सूरजमुखी सा होता है
जिधर कहीं
स्नेह प्यार मोहब्बत 
और अपनेपन की उष्मा मिलती है 
विभोर होकर उस राह चल देता है
बेख़बर बेख़्याल सा
अनजान अपने आस पास के झंझावातों से
मंत्रमुग्ध सा 
चुंधियाई धूप का पीछा करता रहता है
उसे नहीं पता होता कि कब 
वो पूरब से पश्चिम को पहुंच गया 
वो सिर्फ उस आँच की तरफ मोहित होता है
जिसकी सोहबत से 
उसके भीतर की सीलन छूमंतर हो जाती है
लेकिन सुनो....... 
अगर यह उष्मा तुम्हारी ओर से आ रही है
तो जवाबदेही है तुम्हारी
उस उष्मा की सच्चाई को बनाये रखने की
क्योकि 
उष्मा के खरेपन और खोट का मापतोल
सूरजमुखी को नहीं आता 
#आत्ममुग्धा

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२८-०१ -२०२२ ) को
    'शब्द ब्रह्म को मेरा प्रणाम !'(चर्चा-अंक-४३२४)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. मन सूरजमुखी सा होता है
    जिधर कहीं
    स्नेह प्यार मोहब्बत
    और अपनेपन की उष्मा मिलती है
    विभोर होकर उस राह चल देता है

    बिल्कुल सही कहा मन जिधर प्यार अपनापन मिलता है उधर वे खबर चल पड़ता ! अपना पराया ऊंच नीच अमीर गरीब नही देखता!
    खूबसूरत भावों से सजों कर बनी अतिसुंदर रचना! 😍💓

    जवाब देंहटाएं
  3. सुंदर भावपूर्ण सृजन कोमल एहसासों को समेटे।
    अभिनव रचना।

    जवाब देंहटाएं

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