सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

तुम शिव बनना

आज पुरुष दिवस है
लगभग सभी पुरुष बेखबर है 
इस दिन से
उनके लिये रोज की तरह
सामान्य सा दिन है यह भी
क्योकि उनके जीवन की जद्दोजहद
कहाँ मौके देती है
उन्हे जश्न मनाने के
वे तो अपना जन्मदिन तक नहीं मना पाते
हर घर में ऐसे बहुत से पुरुष होते है
जो अपनों की राह में 
खुशियों की तरह बिछ जाते है
हिम्मत बनकर खड़े रहते है
वो रीढ़ होते है घर परिवार की
उनकी आँखों के हिस्से आँसू नहीं है
उनके गालों की जमीं 
रुखी है खुरदुरी है पर खारी नहीं है
उनका दिल नरम नाजुक है
पर दिखता सबको वो सख्त है
अपनों की मृत्यु पर वो 
तमाम जिम्मेदारियों को कांधे पर ले लेते है
और भीगे मन से
घर का एक खाली कोना तलाशते रहते है
चुपचाप दो बूंद झलकाने को
अपनी दाढ़ी मूछों के पीछे
अपने भावों को छुपाये रहते है
सुनो तुम....
आधी आबादी हो तुम
हर स्त्री ह्रदय का पुरुष तत्व हो तुम
अपनी आँखों को इजाजत दो बहने की
अपने दिल को इजहार की
अपने मन को खुशी में झूमने की
तुम्हारे होने से सब कुछ है
अपने पुरुष होने पर गर्व करना, दंभ नहीं
तुम आधार हो एक ऐसी संस्था के (पितृसत्तात्मक)
जहां तुम्हारा वर्चस्व है
बस, इस अंहकार से परे रहकर 
अपने भीतर के स्त्रीत्व को जीवित रखना
तुम शिव बनना 
शक्ति स्वतः तुम्हारे साथ होगी 

टिप्पणियाँ

वाआआआअह ....
कमल की रचना ... काश शिव बन पाना आसन हो ...

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सीख जीवन की

ये एक बड़ा सा पौधा था जो Airbnb के हमारे घर के कई और पौधों में से एक था। हालांकि हमे इन पौधों की देखभाल के लिये कोई हिदायत नहीं दी गयी थी लेकिन हम सबको पता था कि उन्हे देखभाल की जरुरत है । इसी के चलते मैंने सभी पौधों में थोड़ा थोड़ा पानी डाला क्योकि इनडोर प्लांटस् को अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती और एक बार डाला पानी पंद्रह दिन तक चल जाता है। मैं पौधों को पानी देकर बेफिक्र हो गयी। दूसरी तरफ यही बात घर के अन्य दो सदस्यों ने भी सोची और देखभाल के चलते सभी पौधों में अलग अलग समय पर पानी दे दिया। इनडोर प्लांटस् को तीन बार पानी मिल गया जो उनकी जरुरत से कही अधिक था लेकिन यह बात हमे तुरंत पता न लगी, हम तीन लोग तो खुश थे पौधों को पानी देकर।      दो तीन दिन बाद हमने नोटिस किया कि बड़े वाले पौधे के सभी पत्ते नीचे की ओर लटक गये, हम सभी उदास हो गये और तब पता लगा कि हम तीन लोगों ने बिना एक दूसरे को बताये पौधों में पानी दे दिया।       हमे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे, बस सख्त हिदायत दी कि अब पानी बिल्कुल नहीं देना है।      खिलखिलाते...

काम ही पूजा है

हर रोज सुबह की सैर मुझे पूरे दिन के लिये शारीरिक मानसिक रूप से तरोताजा करती है। सैर के बाद हम एक भैयाजी के पास गाजर, बीट, हल्दी, आंवला ,अदरक और पोदीने का जूस पीते है, जिसकी मिक्सिंग हमारे अनुसार होती है। हम उनके सबसे पहले वाले ग्राहक होते है , कभी कभी हम इतना जल्दी पहूंच जाते है कि उन्होने सिर्फ अपना सब सामान सैट किया होता है लेकिन जूस तैयार करने में उन्हे पंद्रह मिनिट लग जाते है, जल्दबाजी में नही होती हूँ तो मैं जूस पीकर ही आती हूँ, वैसे आना भी चाहू तो वो आने नहीं देते , दो मिनिट में हो जायेगा कहकर, बहला फुसला कर पिलाकर ही भेजते है। उनकी अफरा तफरी और खुशी दोनो देखने लायक होती है।      आज सुबह भी कुछ ऐसा ही था, हम जल्दी पहूंच गये और उन्होने जस्ट सब सैट ही किया था , मैं भी जल्दबाजी में थी क्योकि घर आकर शगुन का नाश्ता टीफिन दोनों बनाना था। हमने कहां कि आज तो लेट हो जायेगा आपको, हम कल आते है लेकिन भैयाजी कहाँ मानने वाले थे । उन्होने कहा कि नयी मशीन लाये है , आपको आज तो पीकर ही जाना होगा, अभी बनाकर देते है। मुझे सच में देर हो रही थी लेकिन फिर भी उनके आग्रह को मना न कर स...

पुस्तक समीक्षा

पिछले दिनों एक बहुत दिलचस्प किताब पढ़ी, जिसने न केवल सोचने पर मजबूर किया बल्कि झकझोरा भी।       किताब है प्रवासी भारतीय समाज की स्थिति पर जो डॉलर समेटने के मायाजाल में है। हालांकि जब किताब लिखी गयी थी तब से अब तक में कुछ परिवर्तन तो निसंदेह हुए है , अमेरिका में बसने का सपना आज की नयी पीढ़ी में उतना चरम पर नहीं है जितना तात्कालिन समय में था और यह एक सुखद परिवर्तन है।          पिछले दिनों मैं भी कुछ समय के लिये अमेरिका में थी शायद इसीलिये इस किताब से अधिक अच्छे से जुड़ पायी और समझ पायी। एक महीने के अपने अल्प प्रवास में हालांकि वहाँ का जीवन पूरी तरह नहीं समझ पायी पर एक ट्रेलर जरुर देख लिया। वहाँ रह रहे रिश्तेदारों, दोस्तों से मिलते हुए कुछ बातें धूंध की तरह हट गयी।      यह किताब उस दौरान मेरे साथ थी लेकिन पढ़ नहीं पायी। जब भारत लौटने का समय आया तो मैंने यह किताब निकाली और सोचा कि 16 घंटे की यात्रा के दौरान इसे पढ़ती हूँ। समय और मौका दोनो इतने सटीक थे कि मैं एक सिटींग में ही 200 पन्ने पढ़ गयी। ऐसा लग रहा...