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सीमित रहना

तुम खुद को सीमित कर लो
वरना तुम्हारा फैलाव 
तुम्हे बहा देगा खुद से दूर
समंदर मत बनना चाहो
नदी झरना भी मत बनो
तुम्हारे गालों पर एक खारापन है
बस वही तुम्हारे हिस्से का सागर है
आँखों में झरती एक नदी है
इतनी ही छोटी रखो अपनी दुनिया
छूटती चीजों को 
थामने की कोशिश मत करो
दूर तक जाते हुए
धुंधले होते लम्हों को मत पकड़ो
जो है तुम्हारे भीतर 
बस, उसी तक सीमित रहो
जो नहीं है तुम्हारा
वहाँ तक विस्तृत होने की 
कोशिश मत करो
अपने किनारों को
किसी ओर किनारों से मत सटाओ
कुछ नहीं मिलेगा
सिवाय खुरदुरेपन के 

टिप्पणियाँ

अनीता सैनी ने कहा…
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०४-११-२०२१) को
'चलो दीपक जलाएँ '(चर्चा अंक-४२३७)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
Onkar ने कहा…
सुंदर रचना
सभी के लिए दीप पर्व मंगलमय हो|सुंदर रचना|

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