वो फरवरी का महीना था....मौसम इश्क़ से सराबोर था । फागुन की मस्ती फि़जाओं में रंगों के साथ घुलने की तैयारी में थी। कोरोना का भय लगभग खत्म सा हो चुका था। सभी अपनों से गले भी मिलने लगे थे। हाँ....मास्क अभी भी चेहरों पर थे पर अपनों की नजदीकियों के साथ।
फरवरी की जाती हुई ठंड दिल में सुकून को पसरने दे रही थी। उसी वक्त घर में एक सदस्य को कोरोना के लक्षण दिखाये दिये, जाँच करवाई और अनुमान सही निकला ...कोविड पॉजिटिव। ताबड़तोड़ घर के सभी सदस्यों ने कोविड टेस्ट करवाया। पाँच लोग पॉजिटिव आये। मैं और शगुन (बेटी) नेगेटिव थे जबकि शगुन के पॉजिटिव आने के पूरे चांसेज थे क्योकि वो उन सभी के लागातार संपर्क में थी । हमारे घर पर हम तीन लोगो में से सिर्फ पति ही पॉजिटिव थे इसलिये उन्हे आइसोलेटे कर दिया और तमाम सावधानियां बरती गयी। वे बहुत तेजी से रिकवर हो रहे थे और लक्षण भी माइल्ड थे ...सो चिंता अधिक नहीं थी। आठ दिन बाद मेरी दोनो आँखे अचानक बहुत तेज दर्द करने लगी। दर्द इतना तीव्र था कि जैसे किसी ने पलकों के आर पार सुई निकाल दी हो । मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। घर वालों ने हिदायत दी कि मोबाइल का इस्तेमाल कम किया जाये जैसा कि अक्सर हम भारतीय घरों में होता है। आँखों में दर्द के साथ नाक भी बंद होने लगा और गले में खराश महसूस होने लगी। मैंने अजवाइन को गरम करके एक पोटली बनाई....उसे सुंघती रही और आँखें बंदकर उस पोटली से सेंक करती रही। थोड़ा आराम मिला लेकिन घर में कोविड पेशेंट होने से जिम्मेदारियां सतर्कता थोड़ी अधिक थी और बाई के न आने की वजह से काम का लोड भी पूरा था। जब दर्द सहन नहीं होता तो अजवाइन की पोटली आँखों पर रख लेती और मुझे तुरंत थोड़ा आराम मिल जाता। ऐसे ही दो दिन गुजर गये, आँखों का दर्द भी गुजर गया लेकिन गले की खराश बढ़ती गयी और अब सुबह सुबह शरीर में थोड़ी हरारत रहने लगी। मैं हल्के में लेती रही और ध्यान नहीं दिया । दूसरे तीसरे दिन कमजोरी महसूस होने लगी तो शगुन ने टेस्ट करवाने पर जोर दिया और चौथे दिन खूद मुझे टेस्टिंग के लिये लेकर गयी । लगभग चार दिन तक ये सब होने के बाद अब मैं और शगुन दोनो पॉजिटिव आये। घर के हम तीनो सदस्य पॉजिटिव थे और अब पूरे घर में तीनो आइसोलेट थे। एतिहातन हमने सबको इसकी जानकारी दे दी।गरम पानी और भांप लेना तो पहले से ही शुरु था अब दवाईया लेना भी शुरु कर दिया।
परिवार के बाकी दूसरे सदस्य भी तेजी से रिकवर हो गये। शगुन और उसके पापा को भी कोई तकलीफ नहीं थी और बस, मैं यह मान बैठी कि मुझे भी कोई समस्या नहीं होगी और यही मैं गलती कर बैठी। पॉजिटिव आने के बाद मैं अपना खयाल तो रख रही थी पर आराम नहीं कर रही थी....भांप, दवाईयां, गरम पानी, फल सब ले रही थी लेकिन खाना बनाने के अलावा झाड़ू पौछा कपड़ा बर्तन सब कर रही थी....क्योकि मुझे लगा कि मैं ये कर सकती हूँ । इसी भ्रम में चार दिन और निकाल लिये। पाँचवे दिन सुबह से मेरी साँस फूलने लगी वो भी चंद कदम चलने मात्र से। मै तुरंत सतर्क तो हो गयी पर समझ नहीं पायी कि बाकी सब ठीक है तो मेरे साथ ऐसा क्यो। मैंने उसी क्षण खूद को एक विराम दे दिया और पूरी तरह से उस दिन आराम लिया...छठे सातवे दिन तक भी सांस फूलती रही बस समस्या बढ़ी नहीं। आठवें दिन पता नहीं कैसे....पूरे शरीर में जैसे खून के साथ दर्द भी बहने लगा । धीरे धीरे दर्द की तीव्रता इतनी बढ़ गयी कि नींद में भी आँख खुल जाती थी । मैं डॉक्टर्स की सलाह पर ही थी ...पर पेन किलर भी बेअसर थे। पूरे दिन रोने जैसी रहती थी लेकिन अपनी मानसिकता को पूरी तरह स्थिर रखा था। अपनी पूरी सकारात्मकता को बटोरते हुए दर्द से परे जाकर पेंटिंग भी बनाती थी । मुझे पता था कि यह दर्द चला जायेगा लेकिन उस दौर में उससे डील करना आसान नही था। वो रोंगटे खड़े करने वाला दर्द था। साँस मेरा अभी भी फूल रहा था....मैं फोन पर बात करते करते हाँफने लगी थी और सामने वाले को चिंता होने लगती थी। बस, यही वो समय था जब कोरोना फिर से पसरने लगा था हमारे देश में। नये वरिऐंट की सर्च सामने आयी जिसके सारे लक्षण मुझमे थे। मैं टीवी न्यूज तो पहले ही नहीं देखती थी अब मैंने अपना फोन भी स्विच्ड ऑफ कर दिया। मेरे परिवार के लोगो मित्रों सभी ने मुझे बहुत सहयोग किया। सबने कहा का बिल्कुल फोन बंद कर दो ...बाकी सदस्यों से हम कुशलता पुछते रहेंगे। मैं सिर्फ दर्द में सोयी रहती और हिम्मतकर पेंटिंग करती रहती । मेरी एकमात्र उर्जा का स्त्रोत ही वही था। एक दिन कविता पढ़ने मन हुआ और भरे नाक वाली जुखाम में मैंने एक पोट्रेट के साथ कविता पढ़ी.....यकीन मानिये ये सब दवाईयों से भी असरदार डोज थे। चार पाँच दिन के बाद दर्द की तीव्रता में धीरे धीरे कमी आने लगी। इसी बीच मेरे 14 दिन पूरे हो गये और मैं कोविड नैगेटिव भी हो गयी लेकिन रिकवरी के नाम पर बहुत कम हासिल था। अब शुरु हुआ पोस्ट कोविड.... जिसके लिये मैं बहुत अधिक तैयार थी। मैंने अब सिर्फ खूद पर फोकस किया। क्योकि मैं अच्छे से समझ चुकी थी कि कोविड के शुरुआती चार दिन अगर मैंने ध्यान दिया होता तो तकलीफें इतनी न बढ़ती।
अब 15 दिन बाद भी मैं आलसी सी पड़ी रहती थी और अपने O2 को देखकर खुश होती रहती जो कोविड के शुरुआत से ही मेरा साथ निभा रहा था। हमेशा 98 के आस पास ही रहा।
लगभग एक महीना बीत जाने के बाद मैं एकदम सामान्य हो गयी । इन सबसे सबसे महत्वपूर्ण भुमिका रही खूद का ध्यान रखने की। ये सबकी अपनी अपनी जंग है। आपकी अपनी सोच, आपकी सकारात्मकता, आपका खानपान, आपका रुटिन और सबसे अधिक आपकी साँसे ....इन सब पर आपकी रिकवरी निर्भर करती है। अपनी सांसों को थाम कर चले....ये सहज ही आती है पर जब ये उखड़ती है तो आगा पीछा सब याद दिला देती है।
ये सब लिखने का मकसद यही है कि भले ही आपके कोविड के लक्षण कम हो, आपका स्केनिंग क्लियर हो, ओ2 भी ऐक्सिलेंट हो....पर इसे हल्के में कतई न ले। घबराए बिल्कुल नहीं... वरना यह उलट वार करेगा। आइसोलेशन का मतलब एकांत होता है इस एकांत में अपनी पसंद का काम करे भले ही कुछ क्षण ही करे क्योकि मैं जानती हूँ शरीर साथ नहीं देता है अगर रग रग में दर्द है तो। ब्रीदिंग एक्सरसाइज, गरम पानी और भांप के साथ आपकी सकारात्मकता ही इसका इलाज है। जहां से नकारात्मक उर्जा आप तक आती है उन्हे ब्लॉक कर दे। ऐसा नहीं कहूंगी कि समय सरल है, पर कठिन समय भी निकल ही जाता है। और हाँ....ईश्वर के आगे समर्पित रहे ...हालांकि चमत्कार बहुत कम घटित होते है पर प्रार्थनाएं और समर्पण चमत्कारिक ढ़ग से आपको सकारात्मक करते है । निश्छल भाव से सबके लिये प्रार्थना करे और स्वयं का मनोबल बनाये रखे।
टिप्पणियाँ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (२४-०४-२०२१) को 'मैंने छुटपन में छिपकर पैसे बोये थे'(चर्चा अंक- ४०४६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बिलकुल यही हाल मेरी एक दोस्त का भी हुआ था ,जब मैंने उसे समझाया कि-खुद को आराम दो जिन्दा रही तो कपडे-वरतन करते रहना तब वो समझी और भगवन का लाख-लाख शुकराना की वो अब ठीक है। आपने सही कहाँ-हर एक को अपनी जिम्मेदारी खुद उठानी होगी।
हमारी प्रार्थना स्वीकार हो प्रभु को और ये दुःख के बदल छट जाए
सार्थक उपयोगी आप बीती।
हृदय स्पर्शी।