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नये साल को गले लगाये

आज साल का आखिरी दिन है

गये दिसम्बर की तरह
बीत रहा ये साल भी
कुछ मलाल थे
जो अब इन पलों में रहे नहीं 
कुछ बाते अनकही सी
समेट रही है खुद को यही कही
देखो.....सुनो
हंसी है एक खनकती हुई
दूर तक सुनायी देती हुई
खुली सी बांहें है 
सफर करती हुई
कोई आवाज नहीं है 
पीछे से पुकारती हुई
बस,कुछ खुशियां है 
ओस की बूंदों सी ठहरी हुई
आओ सहेज ले इन्हे
शिकायतों की अब जगह नहीं
उदासियों की कोई वजह नहीं
रोशन हो आँखें सितारों सी
चमके चेहरा चाँद सा
होठों पर तराने आये
अपनी अपनी धून गाये
आओ, कुछ जुगनुओं को दोस्त बनाये
नये साल को गले लगाये


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उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

पलाश

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जिंदगी विथ ऋचा

दो एक दिन पहले "ऋचा विथ जिंदगी" का एक ऐपिसोड देखा , जिसमे वो पंकज त्रिपाठी से मुख़ातिब है । मुझे ऋचा अपनी सौम्यता के लिये हमेशा से पसंद रही है , इसी वजह से उनका ये कार्यक्रम देखती हूँ और हर बार पहले से अधिक उनकी प्रशंसक हो जाती हूँ। इसके अलावा सोने पर सुहागा ये होता है कि जिस किसी भी व्यक्तित्व को वे इस कार्यक्रम में लेकर आती है , वो इतने बेहतरीन होते है कि मैं अवाक् रह जाती हूँ।      ऋचा, आपके हर ऐपिसोड से मैं कुछ न कुछ जरुर सिखती हूँ।      अब आते है अभिनेता पंकज त्रिपाठी पर, जिनके बारे में मैं बस इतना ही जानती थी कि वो एक मंजे हुए कलाकार है और गाँव की पृष्ठभूमि से है। ऋचा की ही तरह मैंने भी उनकी अधिक फिल्मे नहीं देखी। लेकिन इस ऐपिसोड के संवाद को जब सुना तो मजा आ गया। जीवन को सरलतम रुप में देखने और जीने वाले पंकज त्रिपाठी इतनी सहजता से कह देते है कि जीवन में इंस्टेंट कुछ नहीं मिलता , धैर्य रखे और चलते रहे ...इस बात को खत्म करते है वो इन दो लाइनों के साथ, जो मुझे लाजवाब कर गयी..... कम आँच पर पकाईये, लंबे समय तक, जीवन हो या भोजन ❤️ इसी एपिसोड में वो आगे कहते है कि मेरा अपमान कर