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मन की करने दो ना

तुम चाहते क्या हो ?
मैं हमेशा खुश रहूँ ?
या खुश दिखूँ
तुम ही बताओ
जब अंदर पतझर हैं
तो बाहर
बसंत कैसे बिखेरू मैं ?
बरसना चाहती हैं आँखें
घुट जाता है गला मेरा
तो अपनी सिसकियों को
क्यो अंदर ही अंदर
समाहित करू मैं ?
जब उदास हैं मन
बैचैन हैं किसी
अपने की याद में
तो क्यो तुम्हारे
 साथ बैठकर
ठहाके लगाऊ मैं ?
माना कि
तुम मेरा ध्यान रखते हो
बस, यही गड़बड़ हैं
क्योकि मेरी परवाह
तुम्हारे दायरों तक
सीमित हैं
मुझे अपना ध्यान खुद रखने दो ना
मैं खुश रहुंगी
बस, अपने मन की करने दो ना

टिप्पणियाँ

yashoda Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 30 मई 2016 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
आत्ममुग्धा ने कहा…
जी, धन्यवाद यह मौक़ा देने का
Unknown ने कहा…
अच्छी लिखी सभी के मन की बात , बधाई
Unknown ने कहा…
अच्छी लिखी सभी के मन की बात , बधाई
आत्ममुग्धा ने कहा…
आभार आपका 🙏🏼
बहुत खूब ... तुम मेरा ख्याल दिल से रखो तो कोई बात बने ...
आत्ममुग्धा ने कहा…
सराहने के लिये आभार

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