परसो 'हमारे राम' नाटक की प्रस्तुति देखने का सौभाग्य मिला। तीन घंटे का शानदार मंचन, अद्भुत अभिनय, बेजोड़ कलाकार, सधे हुए काव्यात्मक संवाद, बेहतरीन गीत और तालीयां बजाकर प्रशंसा करते दर्शक। मैंने पहली बार ऐसा शानदार नाट्य देखा। कलाकारों की बेजोड़ मेहनत साफ साफ दिख रही थी। संवाद अदायगी ऐसी थी कि दर्शक दीर्घा में बैठे दर्शक चुप्पी साधे शब्द शब्द को जैसे पी रहे हो। हालांकि राम और रावण के अभिनय का तो कोई सानी नहीं लेकिन अब जब लिखने बैठ रही हूँ तो ऐसा लग रहा है कि अभिनय सबका ऊपरी दर्जे का था । छोटे से छोटा पात्र भी उतना ही मुखर था जितने कि मुख्य पात्र । सबसे ज्यादा हतप्रभ थी मैं संवादो और हाव भाव को लेकर। संवाद इतने बड़े और इतनी शुद्ध हिंदी में थे कि कही भी जीभ फिसल सकती थी लेकिन मजाल जो कोई अटक भी जाये। मैं बार बार सोच रही थी कि फिल्मों में रिटेक होते है लेकिन यहाँ तो आपको जो भी करना है, एक ही बार में सामने सामने प्रस्तुत करना है और वो भी एकदम सधा हुआ । दूसर...
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है