लम्बे अंतराल के बाद आज यहाँ आना हुआ है ....पिछले कुछ दिन काफी व्यस्तता वाले रहे ....गया पखवाडा मैंने राजस्थान में बिताया .....हमेशा की तरह लू के थपेड़े लेकिन फिर भी आनंद की अनुभूति.....बहुत सारे मेहमानों की मेहमान-नवाजी का सौभाग्य प्राप्त हुआ और सब सकुशल संपन हुआ....हर बार की तरह इस बार भी मेरी किताब में एक और पृष्ठ जुड़ गया और इस बार इसमें सिर्फ मीठी यादें है ना पनघट है ना घूँघट है और ना ही बरगद की छावं फिर भी अच्छा लगता मुझे मेरा गाँव बढ़ा रहा हाथ दोस्ती का शहर से चला जा रहा सड़क की ओर पगडंडी की डगर से ऐसे ही अपने गाँव में बिता आये कुछ पल फुर्सत के भागते से लम्हों में कुछ पल सुस्ताई मशीनी युग में रेंगती सी जिंदगी देख मैं हरषाई यहाँ तो कहते है नाइन-महरिन को भी चाची और ताई बड़ों ने बिछाई बाज़ी ताश के पत्तों की खुशियों के ओवर में लगे चौक्के-छक्के ठहाको के यहाँ ; अपनेपन की चारदीवारी में बंटवारे होते सुख-दुःख के महफ़िल सजी शामियानों में जागरण हुआ एकादशी...
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है