tag:blogger.com,1999:blog-4956749019745044392024-03-05T14:46:42.454+05:30मेरे मन का एक कोनाअपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.comBlogger255125tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-7714992822330195212024-01-22T12:05:00.001+05:302024-01-22T12:05:25.363+05:30राम लला<span ;="">लला की प्राण प्रतिष्ठा हुई</span><br>
<span ;="">चहूं ओर जय जयकार हुई</span><br>
<span ;="">कण कण में राम बोले</span><br>
<span ;="">हर मन में राम बोले</span><br>
<span ;="">तेरे राम, मेरे राम</span><br>
<span ;="">हम सबके राम</span><br>
<span ;="">हम सबसे, कुछ यूं बोले</span><br>
<span ;="">राम को मन में बसाना होगा</span><br>
<span ;="">राम को अपनाना होगा</span><br>
<span ;="">जय श्री राम से कुछ न होगा</span><br>
<span ;="">अपने मन की चौखट पर </span><br>
<span ;="">राम को स्थापित करना होगा</span><br>
<span ;="">चलकर मैं आया हूँ</span><br>
<span ;="">कई सौगातें साथ लाया हूँ</span><br>
<span ;="">राम को भजना</span><br>
<span ;="">राम को रमना </span><br>
<span ;="">प्राण प्रतिष्ठा मेरी</span><br>
<span ;="">तुम अपने मन में भी करना</span><br>
<span ;="">वरना सिर्फ नारों में मैं रह जाऊंगा</span><br>
<span ;="">मात्र मेरे आने से रामराज न आयेगा</span><br>
<span ;="">हर मन जब राम बसेगा</span><br>
<span ;="">तब ही तो राज राम का आयेगा </span><br>
<span ;="">जब प्राणों में मुझे रखोगे </span><br>
<span ;="">कण कण में</span><br>
<span ;="">हर सांस में मुझे पाओगे </span><br>
<span ;="">🙏</span><br>
<span ;="">#आत्ममुग्धा<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgNRLhDTRy4arFQ_Zu8-qGFs1NZKd7cwhC9dT3296ocH7s-14vd30s4mNAgvxpiav01OYZzYk0plFw0RWtvY0laTqLWWR37vjRQxcJNXRGiauewGsDgkBB2wnw1tv9jPepOp6xUUkMj0RflMVjRiLrQL0VJEzo8XodQ-oKM0waqhum1tRYkVh0sGiSvxi0" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgNRLhDTRy4arFQ_Zu8-qGFs1NZKd7cwhC9dT3296ocH7s-14vd30s4mNAgvxpiav01OYZzYk0plFw0RWtvY0laTqLWWR37vjRQxcJNXRGiauewGsDgkBB2wnw1tv9jPepOp6xUUkMj0RflMVjRiLrQL0VJEzo8XodQ-oKM0waqhum1tRYkVh0sGiSvxi0" width="400">
</a>
</div></span><!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_240122_120422_631.sdocx-->आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-35640380526315561582024-01-11T18:36:00.001+05:302024-01-11T18:36:57.554+05:30हिंदी<span ;="">आज विश्व हिंदी दिवस है। हिंदी एक ऐसी भाषा जिसमे सुकून है, जो हमारी आत्मा की भाषा है। मुझे इसकी लिपि से भी प्यार है । हिंदी लिखना और हिंदी बोलना दो अलग बाते है बिल्कुल इसी तरह भाषाई शुद्धता और भाषाई सौंदर्य दो अलग बातें है । </span><br>
<span ;="">बात करते है इसके पहले बिंदू पर......अमूमन हम सब हिंदी बोल लेते है लेकिन मोबाईल में देवनागरी लिखना और पढ़ना सब लोग नहीं कर पाते। मैं सिर्फ इसीलिये देवनागरी में लिखती हूँ ताकि मेरे बच्चें इस लिपि के मातृत्व से जुड़े रहे, मातृभाषा के मोह में रहे। </span><br>
<span ;=""> अपनी भाषा का मिठास सबसे मीठा । हिंदी बोलने को लेकर दो छोटी घटनाएं आपके साथ शेयर करती हूँ। यह बात कुछ दिनों पहले की है जब शगुन एक ऐसे देश गयी जहाँ सब अंग्रेजी के पहले अपनी भाषा बोलते है । वो वहाँ पाँच दिन रूकी , हम सब उसके लगातार संपर्क में थे और जब भी नेटवर्क मिलता , हम बात कर लेते। एक फ्लाईट लेकर जब वो टोक्यो पहूँची तो अगली फ्लाईट में समय अंतराल कम होने की वजह से हम चिंतित थे। हम सबने चैन की सांस ली थी जब वो बोर्डिंग की लाइन में लग गयी थी। </span><span ;="">टोक्यो से दिल्ली तक की 10:35 की फ्लाईट में वो 10:29 पर बैठी और जैसे ही बैठी , उसका पहला मैसेज था कि</span><br>
<span ;=""> "प्लेन भर गयी और सब मस्त हिंदी में बात कर रहे है" </span><br>
<span ;=""> ये होता है अपनेपन का अहसास। उसका सारा तनाव काफूर हो गया ।</span><br>
<span ;="">दूसरा किस्सा है पहली जनवरी का जब रौनक न्यूयाॅर्क के ईस्काॅन मंदिर में गया और जब वहा एक विदेशी भक्त ने हैलो की जगह " हरे कृष्णा " कहा । वो खुशी से रोमांचित हो गया और मुझे बताया । ये होता है अपनेपन का अहसास, अपनी भाषा का स्वाद। </span>
<br><br><span ;="">अब आते है दूसरे बिंदू पर....भाषा की शुद्धता और भाषा के सौंदर्य पर । तो दिलचस्प बात यह है कि आज के दिन मैं एक ऐसी प्रोफाईल से टकराई जो हिंदी की बिंदी है । एक प्यारी सी, सरल सी बच्ची.....जो उतनी सरल, सधी और शुद्ध हिंदी बोलती है कि आप दांतों तले अंगुली दबा लोगे। आप खुद पर संदेह भी कर सकते है कि आप हिंदी बोलते भी है क्या 😄 इस बच्ची का नाम है वर्षा दहिया, जिसे आप यूट्यूब या इंस्टाग्राम पर सुन सकते है । </span><br>
<span ;=""> विश्व हिंदी दिवस की शुभकामनाएं<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEikFcJyXmIlKZpej2yO_Qygx3UORXICGDNXWhXO7F9vEZ2hi9j3a4SgjmqQtJKbJBo0cawpDPE3kUCgqWj5ac2caDyok3TIovcLokIvOjDZ9pDJTKNGy5KPnJ9XWuJzX0cIQnjIWok93tOoosuXxO3v31fXMa-H5HNl8ukuQMg-u1Xu3qQ1rEcjWPbMHVE" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEikFcJyXmIlKZpej2yO_Qygx3UORXICGDNXWhXO7F9vEZ2hi9j3a4SgjmqQtJKbJBo0cawpDPE3kUCgqWj5ac2caDyok3TIovcLokIvOjDZ9pDJTKNGy5KPnJ9XWuJzX0cIQnjIWok93tOoosuXxO3v31fXMa-H5HNl8ukuQMg-u1Xu3qQ1rEcjWPbMHVE" width="400">
</a>
</div> </span><br>
<!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_240111_183617_447.sdocx-->आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-71474939446200634432023-12-31T12:52:00.001+05:302023-12-31T12:52:38.088+05:30इतवार <span ;="">साल काअंतिम महीना, अंतिम इतवार </span><br>
<span ;="">सोमवार, फिर नयी शुरूआत</span><br>
<span ;="">मेरे इन इतवारों पर बोझ बड़ा है</span><br>
<span ;="">मैं हर काम इतवार पर जो डाल देती हूँ</span><br>
<span ;="">कोई भी काम आज न हुआ</span><br>
<span ;="">चलो, इतवार को करेंगे </span><br>
<span ;="">और मेरा इतवार </span><br>
<span ;="">सारी जिम्मेदारी अपने सिर लेता है</span><br>
<span ;="">आखिर हर आठवें दिन फिर आ जाता है</span><br>
<span ;="">पेंडिग कामों की लिस्ट साथ लिये चलता है</span><br>
<span ;="">शायद साल के पहले इतवार </span><br>
<span ;="">चर्चा की थी मैंने</span><br>
<span ;="">एक साड़ी पेंट करनी थी</span><br>
<span ;="">एक बड़ा सा कैनवास भी इंतजार में था</span><br>
<span ;="">डिक्लटरिंग का वादा भी खुद से था</span><br>
<span ;="">खुद का ख्याल मेरी लिस्ट में सबसे पहले था</span><br>
<span ;="">रेगुलर चेकअपस् की जिम्मेदारी थी</span><br>
<span ;="">परिवार की भागादौड़ी भी साथ थी</span><br>
<span ;="">खाने से जंक हटाना था</span><br>
<span ;="">सुबह सुबह समय से आगे दौड़ना था</span><br>
<span ;="">कुछ रिश्तों की बिगड़ती लय को भी साधना था</span><br>
<span ;="">अब यही लिस्ट लिये खड़ा है इतवार मेरे आगे </span><br>
<span ;="">मैंने भी नजरे मिलाकर कहा </span><br>
<span ;="">गये सारे इतवार मेरे अपने रहे </span><br>
<span ;="">भले कुछ काम पेंडिंग रहे</span><br>
<span ;="">लेकिन जो काम पूरे हुए </span><br>
<span ;="">उन पर गुरूर हुआ</span><br>
<span ;="">छूटे पर भला कैसा मलाल हुआ</span><br>
<span ;="">जंक हटा नहीं पर कम हुआ</span><br>
<span ;="">खाने की प्लेट में सलाद बढ़ा</span><br>
<span ;="">साड़ी न सही पर ब्लाऊज जरूर पेंट हुआ</span><br>
<span ;="">कैनवास बड़ा हो या छोटा</span><br>
<span ;="">चित्र जरूर उभरा</span><br>
<span ;="">यात्राएं बेहद हुई , छूटते रहे नियमित काम</span><br>
<span ;="">फिर भी</span><br>
<span ;="">सुबह की वाॅक को हर बार थाम लिया </span><br>
<span ;="">योग के लिये भी जतन तमाम किया</span><br>
<span ;="">आहार विहार के साथ इस बार</span><br>
<span ;="">विचार पर भी गौर किया</span><br>
<span ;="">मन की कलुषिका को मांजा</span><br>
<span ;="">दिल को थोड़ा और चमकाया</span><br>
<span ;="">थोड़ा और खरा किया</span><br>
<span ;="">हर रोज मानस का एक पन्ना दिन की शुरूआत बना</span><br><span ;="">अब मुसकाया ये आज का इतवार </span><br>
<span ;="">और बोला बड़े अपनेपन से</span><br>
<span ;="">लिस्ट भले पेंडिंग रही</span><br>
<span ;="">लेकिन हर दिन पहले से बेहतर तुम हुई</span><br>
<span ;="">अलविदा के साथ मुसकाई मैं भी</span><br>
<span ;="">कुछ काम बने तो कुछ बिगड़े</span><br>
<span ;="">खुद से प्यार, खुद पर नाज ये साल भी रहा</span><!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_231231_124830_904.sdocx--><div><span ;=""><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiDJD7Lv_s4XUOo8rbw2C5ragUWhTOZY91_5Hqm2fnFtJ9_kAfPX9zG_E913IMxXOFSMQ7-OdFiwVP1GWwEplST4IhVJCSkLXRGDcC9RDKtlvL4D9YwJmkvvsMZi9TBLzUaDD6bZOLV0RlV4aGHZ45ltO19j3k6GheP_TNoFbMKKxslA5GiCF4IYskcS2Y" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEiDJD7Lv_s4XUOo8rbw2C5ragUWhTOZY91_5Hqm2fnFtJ9_kAfPX9zG_E913IMxXOFSMQ7-OdFiwVP1GWwEplST4IhVJCSkLXRGDcC9RDKtlvL4D9YwJmkvvsMZi9TBLzUaDD6bZOLV0RlV4aGHZ45ltO19j3k6GheP_TNoFbMKKxslA5GiCF4IYskcS2Y" width="400">
</a>
</div><br></span></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-73788594414320893232023-12-25T19:09:00.002+05:302023-12-25T21:28:56.262+05:30पहाड़ <div>स्पीति यात्रा के दौरान वहाँ के पहाड़ों ने मुझे अपने मोहपाश में बांधे रखा । उनकी बनावट, टैक्चर बहुत अद्भूत था। वे बहुत लंबे, विशालकाय, अडिग थे। मनाली से काजा का दुर्गम रास्ता पार करते हुए इनसे मौन संवाद होता रहा। मैं इनकी ऊँचाई और आस पास की नीरवता से लगभग स्तब्ध थी। ये एकदम सीधे खड़े से पहाड़ थे जैसे कोई खड़ा रहता है सीना ताने। कालक्रम की श्लांघाओं से दूर ये साक्षी रहे साल दर साल होने वाले परिवर्तनों के। </div><div> </div><div> उन दुर्गम रास्तों से गुजरते हुए, ग्लेशियरों को पार करते हुए बहुत बार मन ने सोचा कि क्या ये हमेशा से ऐसे ही खड़े है। क्या इनका स्वरूप यही था ? इन पहाड़ो में इतना आकर्षण क्यो है हालांकि ये अलग बात है कि इस नीरव पथ पर दिल की धड़कने तीव्र गति से चलती रही, सड़क की स्थिती ने चेहरे पर बारह बजा रखे थे , इस रास्ते पर यात्रा करना एक साहसिक काम है और इस साहस में ये पहाड़ हर मोड़ पर साथ निभाते रहे और यह यात्रा मेरे जीवन की अविस्मरणीय यात्रा बन गयी। </div><div> मैंने इन पहाड़ो के अलग अलग विडियों बनाये, इनकी ऊँचाई,इनकी बनावट मुझमे जैसे रचबस गयी। आज जब अटलजी की ये कविता सुनी तो लगा जैसे ये पहाड़ ही मुझसे बतिया रहे हो । शुक्रगुजार हूँ मैं इन पहाड़ों की, इन्होने हमेशा मुझे चेताया है, मेरी तुच्छता का अहसास कराया है ताकि अंहकार का बीज मन के किसी कोने में दबा भी न रह जाये। </div><div> प्रस्तुत विडियों स्पीति घाटी में ही किसी स्थान का है, आप भी इनकी बनावट देखे। ऐसा लगता है जैसे पहाड़ो की भीड़ हो या कोई कुनबा । पत्थर के हजारों पेंग्विन हो जैसे। कल्पनाओं का कोई छोर नहीं, आप भी अपनी कल्पनाओं में किसी भी रूप में देख सकते है इन्हे 😊 </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhiSyXr44IJ-gJNZWz1pQURg_Om3HkiAOyFNX-icIDraZWNlLK-2XBOGiC3__uDEGkJ5f3eWu6M17wOYJzRi1acoHrlbeMJybks7LvAxAaeenq90POlF4KK8-eD7hn_KAHxIOz2j0XfKh6sy6z6-Be7khdMn0qXTqTBjpD1vWWXoEjJqUN23rmnJ8O3oG8" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhiSyXr44IJ-gJNZWz1pQURg_Om3HkiAOyFNX-icIDraZWNlLK-2XBOGiC3__uDEGkJ5f3eWu6M17wOYJzRi1acoHrlbeMJybks7LvAxAaeenq90POlF4KK8-eD7hn_KAHxIOz2j0XfKh6sy6z6-Be7khdMn0qXTqTBjpD1vWWXoEjJqUN23rmnJ8O3oG8" width="400">
</a>
</div><br></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-38882375470550896052023-12-22T22:28:00.001+05:302023-12-22T22:28:58.887+05:30इमरोज<span ;="">अमृता की कहानी का मुख्य अध्याय , मुख्य पात्र इमरोज, जिसने आज इस दुनिया को अलविदा कह दिया। </span><br>
<span ;="">प्रेम, इश्क, मोहब्बत इन दिनों बहुत सामान्य सी बात है और बहुत आसानी से उपलब्ध भी है। इसके बड़े बड़े किस्से हमे अक्सर देखने सुनने मिल जाते है, नहीं मिलता तो सिर्फ "इमरोज" क्योकि इमरोज होना आसान नहीं है। </span><br>
<span ;=""> एक बहुत लंबा जीवन जीने वाले इमरोज ने अपना पूरा जीवन अमृता को समर्पित कर दिया और समर्पण भी ऐसा कि कोई मिसाल नहीं सिवाय स्वय इमरोज के। </span><br>
<span ;="">अमृता को जानने वाले जानते है कि इमरोज क्या थे । अमृता से परे हटकर देखते है तो इमरोज एक कवि और चित्रकार थे लेकिन अमृता से मिलने के बाद उनके चित्र , उनकी कविताएं सिर्फ अमृता के ही इर्द गिर्द रही । उनका कतरा कतरा अमृता के लिये प्यार से लबरेज़ रहा। अक्सर सोचती हूँ कि पीठ पर साहिर नाम उकेरती अमृता की अंगुलियां इमरोज को कैसी लगी होंगी ? </span><span ;="">इससे उन्हें पता चला कि वो साहिर को कितना चाहती थीं। लेकिन इमरोज के अनुसार इससे फ़र्क क्या पड़ता है। वो उन्हें चाहती हैं तो चाहती हैं। मैं भी उन्हें चाहता हूँ। </span><span ;="">समर्पित प्रेमी के लिये शायद इन बातों के कोई मायने नहीं है लेकिन ऐसा समर्पण दिखा पाना आसान नहीं है, बस....इसीलिये इमरोज इमरोज है । </span>
<br><br><span ;="">जब अमृता की मृत्यू हुई तब इमरोज़ ने कहा था -</span><br>
<span ;="">''उसने जिस्म छोड़ा है साथ नहीं। वो अब भी मिलती है कभी तारों की छांव में कभी बादलों की छांव में कभी किरणों की रोशनी में कभी ख़्यालों के उजाले में हम उसी तरह मिलकर चलते हैं चुपचाप हमें चलते हुए देखकर फूल हमें बुला लेते हैं हम फूलों के घेरे में बैठकर एक-दूसरे को अपना अपना कलाम सुनाते हैं उसने जिस्म छोड़ है साथ नहीं।"</span><br>
<span ;=""> इश़्क के लिहाफ में लिपटे इश़्क ने आज अपने इश़्क की ओर रूखसत किया है ।<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjV5Zfx_J1PMoVFo6wTL_xwy5dSPDcZ7bgPqZ61cpTL92_JLJ9otKHDxxJJs0COka9Xg2zLFk94hS6D6uVUCJ4kyCohmFV8IsxBLpqOdCX-yy9srK51s4eOHkIUzaE8uMX6lw-SiQxSxniwFzkNFRSVZ3odXOXb04Ae12WpVzknz0lxYjSkKLszeIpDfTY" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjV5Zfx_J1PMoVFo6wTL_xwy5dSPDcZ7bgPqZ61cpTL92_JLJ9otKHDxxJJs0COka9Xg2zLFk94hS6D6uVUCJ4kyCohmFV8IsxBLpqOdCX-yy9srK51s4eOHkIUzaE8uMX6lw-SiQxSxniwFzkNFRSVZ3odXOXb04Ae12WpVzknz0lxYjSkKLszeIpDfTY" width="400">
</a>
</div> </span><!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_231222_215906_448.sdocx-->आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-61230418699682447692023-12-21T14:04:00.002+05:302023-12-22T22:28:27.605+05:30साड़ी<span ;="">आज इंटरनेशनल साड़ी डे है । एक वक्त था जब मैं हर रोज साड़ी पहनती थी, साड़ी पहनना आदतन था। अब भले ये आदत थोड़ी पीछे छूट गयी है पर साड़ी से मोह हर रोज बढ़ता जा रहा। साड़ी की मेरी समझ अब पहले से कही अधिक है।</span><br>
<span ;=""> जैसा कि सब कहते है कि साड़ी महज एक कपड़ा नहीं है वो इमोशन है , मैं इस बात से पूरा सरोकार रखती हूँ । साड़ी सच में आपके भाव है, आपकी अभिव्यक्ति है , आपके व्यक्तित्व का आइना है। </span><br>
<span ;=""> हम सबकी अपनी अपनी पसंद होती है और कुछ चुनिंदा रंगों की साड़िया स्वत: ही हमारी आलमारी में जगह बना लेती है।कुछ साड़ियों दिल के बेहद करीब होती है , कुछ में कहानियां बुनी होती है, कुछ के किस्से गहरे होते है, कुछ हथियायी हुई रहती है, कुछ उपहारों की पन्नी में लिपटी होती है, कुछ कई महीनों की प्लानिंग के बाद आलमारी में उपस्थित होती है तो कुछ दो मिनिट में दिल जीत लेती है ....मेरी हर साड़ी कुछ इन्ही बातों को बयां करती है लेकिन एक काॅमन बात है हर साड़ी में, कोई भी साड़ी कटू याद नहीं देती और यही बात साड़ी को खास बनाती है। आप अपनी आलमारी खोलकर देखिये , साड़ियां मीठी बातों से ही बुनी होती है। </span><br>
<span ;=""> साड़ियां माँ की याद दिलाती है,माँ के बिना भी माँ का अहसास करा जाती है। दादी की बनायी तह में रिश्तों को नजाकत से सहेजना सिखाती है। मेरी कितनी ही साड़ियों में फाॅल मेरी दादी के हाथों से लगा है , आज तक वो तुरपन नहीं उधड़ी है। </span><br>
<span ;=""> साड़ियों की सबसे दिलचस्प बात यह है कि ये जादुगरी करती है ....आप कितनी भी साड़ियां खरीद ले लेकिन इनके प्रति लोभ कम नहीं होता । मेरे हर न्यू ईयर रिज्योलुशन में ये जरूर होता है कि इस साल साड़ी नहीं खरीदूंगी लेकिन साड़ी की जादूगरी सिर चढ़कर बोलती है और सब भुला देती है। मुझे लगता है कि साड़ीयों की खरिदारी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है। </span><br>
<span ;=""> अगर आपकी आलमारी साड़ियों से भरी है और जरुरत न होने पर भी गर एक साड़ी आपने खरीद ली तो गिल्ट मत लाईये मन में.....इसकी माफी हर दरबार में है क्योकि साड़ी इमोशन है। </span><br>
<span ;=""> तो बिल्कुल इतरा कर पहनिये अपनी साड़ियां , ना तो ये आपकी हाइट वजन आपसे पूछती है, ना आपका साईज मैटर करता है.....ये बस आपको पुर्ण व्यक्तित्व बनाना जानती है, ये आपको सजाना जानती है।</span><br>
<span ;="">हैप्पी साड़ी डे ! </span><br>
<span ;=""> <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEg65YC-jAYACPsJtcLI-GVW7WHU-9L99czvMluG3kmHwnrpzyH37E74wn_5YkysfMCvxGVGzqxK8KO5RPFZLJnMBHCPahE2xi8Byru_utx1ojNEU1YJ2OJWRry6GiNAsS0h7ZPGW3s4kBSDgaU7O3hSlsEphso0n2WEST3GWK-FcH4itBghROZNQx7NWxI" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</a>
</div> </span><!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_231221_140319_420.sdocx-->आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-85709238152405629782023-11-07T12:03:00.001+05:302023-11-07T12:03:32.913+05:30धागों की गुड़िया<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEjNGg_WKTlRLaZExe52u8T_4vEFpWdwQGIgt4J16i1JpuxJtlW-Um-8Vksftiq8m3O6P-C6OUM0jKL-zdMKDY6HZcQw8yD0p3tRrX1FyT6Tist2Ds1bsoxFg7ViGGlc4e9DVeu3V4NlUc-oYM-FPTaFVaeM2cae9b8E01bY101zUMTBwpo22f8tvs3c0Dg" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</a>
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhh0d0OFwTyNhRaLFzwxhnN0qCJ9FHHlbDtGPVVw3bsBY3EuqKdeYby_NtVf5rItLrUVJ0egVeCzU6gy_oqatuS_66hYxTdHLx6kIACMHI3bsIAUGxoJ-1Il8D8fYQS0dZPefYB4AEwR39Vp2EHfbrUb5euuqduoNhExYvI1t4G-ecl_FilM0qF2EwS3CY" width="400">
</a>
</div><span style="font-size:17px" ;="">एक दिन एक आर्ट पेज मेरे आगे आया और मुझे बहुत पसंद आया । मैंने डीएम में शुभकामनाएं प्रेषित की और उसके बाद थोड़ा बहुत कला का आदान प्रदान होता रहा। वो मुझसे कुछ सजेशन लेती रही और जितना मुझे आता था, मैं बताती रही। यूँ ही एक दिन बातों बातों में उसने पूछा कि आपके बच्चे कितने बड़े है और जब मैंने उसे बच्चों की उम्र बतायी</span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> तो वो बोली....अरे, दोनों ही मुझसे बड़े है । </span><br>
<span style="font-size:17px" ;="">तब मैंने हँसते हुए कहा कि तब तो तुम मुझे आंटी बोल सकती हो और उसने कहा कि नहीं दीदी बुलाना ज्यादा अच्छा है और तब से वो प्यारी सी बच्ची मुझे दीदी बुलाने लगी। </span><br>
<span style="font-size:17px" ;="">अब आती है बात दो महीने पहले की....जब मैंने क्रोशिए की डॉल में शगुन का मिनिएचर बनाने की कोशिश की थी और काफी हद तक सफल भी हुई थी। उस डॉल के बाद मेरे पास ढेरों क्वेरीज् आयी। उन सब क्वेरीज् में से एक क्वेरी ऐसी थी कि मैं उसका ऑर्डर लेने से मना नहीं कर सकी । यह निशिका की क्वेरी थी, उसने कहा कि मुझे आप ऐसी डॉल बनाकर दीजिए । मैंने उससे कहा कि ये मैंने पहली बार बनाया है और पता नहीं कि मैं तुम्हारा बना भी पाऊँगी कि नहीं लेकिन निशिका पूरे कॉंफिडेंस से बोली कि नहीं, मुझे भरोसा है कि आप बना देगी....बस, थ्रेड थोड़ा डार्क स्किन टाइप लेना,मेरा स्किन टोन डस्की है और मुझे ब्लश जरुर लगाना.....मैं मुस्कुरा उठी और इस मासूमियत पर कौन न मुस्कुराये भला। मैं बोली कि मैं व्यस्त भी हूँ , एक पॉट्रेट का ऑर्डर पहले से चल रहा है और मैं कोई भी काम समय लेकर करती हूँ । निशिका ने कहा कि जब भी समय मिले आप बनाईये। मैंने कहा कि चलो ठीक है, अपनी पसंद की फोटो भेजो और उसने मुझे दो-तीन फोटो भेजी जिन पर मैंने काम शुरु किया।</span>
<br><br><span style="font-size:17px" ;=""> लगभग महीने भर बाद काम शुरु किया और उधेड़ते बुनते मैंने इसे पूरा किया । मुझे बनाते वक्त बहुत मजा आया हालांकि एक बार में कुछ भी सही नहीं बना। अब डॉल निशिका के पास पहूंच चुका है और वो इसे देखकर बहुत खुश हुई । एक कलाकार को भला और क्या चाहिये ? </span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> थैंक्यू निशिका.... बच्चे , मुझ पर इतना भरोसा दिखाने के लिये । </span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> ध्यान देने वाली बात: बच्ची पुलिस वाली है और गजब के बुकमार्क बनाती है 😎</span><!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_231107_114633_048.sdocx-->आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-37123683510832602562023-11-05T10:50:00.000+05:302023-11-05T10:51:43.221+05:30नन्हे जूते<span style="font-size:17px" ;="">ये नन्हे से जूते मैंने बनाये है , एक बहुत प्यारी क्रोशिए की डॉल के लिये । डॉल का फोटो भी जल्दी ही शेयर करूँगी, बस उसे अपनी मंजिल तक पहूँच जाने दीजिए । </span><br>
<span style="font-size:17px" ;="">अब आते है मुद्दे की बात पर....जब मैं यह नन्हे सैंडल बना रही थी तो जूतों से जुड़ी कितनी ही कहावते मेरे दिमाग में आ रही थी जिनमे से एक यह थी कि कभी फलां के जूतें में पावं रखकर देखना तब तुम्हे उन जूतों की राह पता चलेगी। </span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> मैं इस बात से एकदम सरोकार रखती हूँ कि किसी भी सफल/असफल इंसान की डगर उसके अपने संघर्षों से बनी होती है। किसी के जूते आवाज करते है तो कोई चुपचाप राह माप जाते है। </span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> लेकिन यहां बात है नन्हें कदमों की , जो लड़खड़ाते हुए अभी चलना ही सीख रहे है। खासतौर से अभिभावकों के लिये मेरा ये मैसेज है कि ये नन्हे पावं एक दिन आपके जूतों में फिट होंगे, इनकी भी अपनी डगर होगी, इनके भी अपने संघर्ष होगे । इन्हे आप कोई बनीबनायी राह मत दिखाईये बल्कि जिस राह ये चलना चाहे आप उस राह को उन्हे बनाना सिखाईये। आप अभिभावक है , अपने अनुभवों से उन्हे सिखाईये कि पहले अपने जूतों के कंकर निकाले ,फिर मजबूती से पावं जमाते हुए रास्ते पर बढ़े ।</span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> </span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> </span><span style="font-size:17px" ;="">निदा फ़ाजली सा'ब ने क्या खूब कहा है.....</span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> </span><span style="font-size:17px" ;="">बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो </span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे</span>
<br><br><span style="font-size:17px" ;="">इस शेर को पढ़ते हुए मैं यही कहूँगी कि भले आप उनको सपने दिखाइये आसमान की उड़ान के, चाँद सितारों को छूने के लेकिन बहुत जरुरी है हकीकत का फसाना भी ....उन्हे आसमान से पहले धरातल दिखाईये । हमारी आज की पीढ़ी इमोशनली बहुत वीक है इसलिये जरुरी है कि उन्हे सिखाया जाये मजबूती से टिके रहना। उन्हे गलतियां करने दीजिये, गलत जूते पहनने दीजिए ....यहाँ मायने गलती के नहीं है यहाँ मायने है गलती से सबक लेने के । देखियेगा....एक दिन उनका पावं सही माप के जूते में होगा , उन्हे जूता बदलने की हिम्मत दीजिए । </span><br>
<span style="font-size:17px" ;=""> यह बात हम सब पर लागू होती है। </span><br>
<span style="font-size:17px" ;="">तो बताईये ये नन्हे से सैंडल आपको कैसे लगे ?<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEgQ4JatUqiGHzr6a_1hnY2Wx94adCYuF3ro2Z4L0kLJC2RMlYmvmuP0G3sA5BX1ktp1l8f8FF3_P1Vz0jMpv1bDK1ntd8PUjMEQUc0ESXqwFYFxTdoY24OmdmCScc_tGncu1kUiF-b9bY8eK4nwfzW65rCTcFk8JFG7GVsN2_RW8U6xEcN_jl8a0YtKiCA" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</a>
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</a>
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</a>
</div> </span><!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_231105_105013_098.sdocx-->आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-69038188742867899002023-09-22T21:30:00.001+05:302023-09-22T21:30:15.041+05:30ज़िंदगी विथ ऋचा<span ;="">क्या मिला....ये छोड़िये</span><br>
<span ;="">खुद क्या किया...ये सोचीये</span><br>
<br><br><span ;="">आज दुपहरी क्रोशिया चलाते हुए एक पोडकास्ट सुना। इतना सकारात्मक कि मेरे पास शब्द नहीं है। </span><br>
<span ;=""> पोडकास्ट में एक व्यक्ति अपने साथ हुए एक दुखद हादसे को यह कहकर परिभाषित कर रहा है कि जो भी होता है अच्छे के लिये होता है । </span><br>
<span ;=""> इंटरव्यू लेने वाली महिला अभिभूत है और प्रश्न पुछती है कि आप इतने पॉजिटिव कैसे है ? सामने वाला व्यक्ति बोलता है कि अपनी माँ की वजह से ❣️</span><br>
<span ;=""> वो कहते है कि मेरी माँ ने मुझे आत्मनिर्भर बनना सिखाया और वो भी डिग्निटी के साथ। माँ ने हमेशा कहा और विश्वास दिखाया कि तुम सब कुछ कर सकते हो ।माँ बाप का सोचना था कि हमारा बच्चा हमारे बिना अच्छे से जीना सीखे और जिये । </span><br>
<span ;=""> इंटरव्यू में जो व्यक्ति है , उनका नाम है विक्रम अग्निहोत्री जो कि भारत के पहले बिना बाहों वाले ड्राइविंग लाइसेंसधारी है। उनका मानना है कि बचपन में हुऐ इस एक्सिडेंट को मैं ब्लेसिंग मानता हूँ अगर मेरे भी हाथ होते तो आज मैं भी साधारण जिंदगी जी रहा होता । मैंने अपने आपमे जो क्षमताएं पायी है वो इसी हादसे के बाद पायी है।</span><br>
<span ;=""> इंटरव्यू में वे हर दूसरी बात में अपनी माँ का जिक्र करते है और यह कितनी सच बात है कि माँ एक ऐसा व्यक्तित्व है जो अपने बच्चें को एक सांचा दे देती है जिसमे बच्चा ढल जाता है।</span><br>
<span ;=""> वो दिव्यांग है लेकिन कही से भी उनमे न मलाल है और न ही उनके मन में आज तक ऐसा प्रश्न नहीं उठा कि मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ ? उनसे पुछा जाता है कि जब अनजाने ही लोग आपसे सहानुभूति दिखा देते है तो आपको कैसा लगता है....बड़ी सरलता से वो कहते है कि आय अलाउ दैम ❣️ मुझे ये बात इतनी अच्छी लगी कि वो चिढ़ते नहीं है, वो लोगों की अच्छाई में विश्वास करते है। वो कहते है कि जब लोग उन्हे खाना खिलाने लगते है तब मैं लोगो को अपनी मदद करने देता हूँ ।</span><br>
<span ;=""> एक जगह वे बताते है कि मेरी माँ ने मुझे अपने हाथ से खाना नहीं खिलाया ताकि मैं खुद खाना सीख सकू। माँ शादी ब्याह में मुझे अपने आप खाने के लिये छोड़ देती थी और मैं अपने हिसाब से मैनेज करता था तब लोग माँ पर अंगुलियां उठाते थे कि ये कैसी माँ है ? </span><br>
<span ;=""> ये सबसे अच्छी सीख है जो मुझे इस एपिसोड से मिली कि कभी भी किसी के व्यवहार को अपने हिसाब से मत आंकना । हर कोई किसी न किसी उद्देश्य को अपने साथ लेकर चल रहा है, आप उसकी मदद नहीं कर सकते , कोई बात नहीं, पर कम से कम उसकी राह का रोड़ा न बने।</span><br>
<span ;=""> विक्रम बताते है कि वो लिमिटलेस है उनकी कोई लिमिट नहीं.... वो सब कुछ कर सकते है। विक्रम ऐसी और भी बातें कहते है जो किसी का भी दिन बना दे।</span><br>
<span ;=""> आज का दिन इस पोडकास्ट के नाम रहा ....इंटरव्यू लेने वाली महिला मेरी बेहद पसंदीदा है ...उनकी आवाज सुनकर ही मजा आ जाता है।</span><br>
<span ;=""> मैं बात कर रही हूँ जिंदगी विथ ऋचा की और ऋचा की ।</span><br>
<span ;="">दिल से शुक्रिया ऋचा , आप मोहब्बत है।</span><div><br></div><div>#ज़िंदगी #ज़िंदगीविथऋचा<br><!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_230922_212828_130.sdocx--><div><span ;=""><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEj0-_a2A3y-hZDOh4J-J-v91v14D9DZrfIjHzaS3L6hhhF50zsN1aMsuMpDv7Zk3BIqDIUCcD__5SQlT4EVU_2i2Rr8-NpXLa45j7AmVcVw75WkswCfAu3ICL4EACKPG1gzOUscZGTqV4pO9Sqoej8CJN8DzXzPUsPQq0doEBdG6Xrg6zLm7COuJAYZXmw" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
<img border="0" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEj0-_a2A3y-hZDOh4J-J-v91v14D9DZrfIjHzaS3L6hhhF50zsN1aMsuMpDv7Zk3BIqDIUCcD__5SQlT4EVU_2i2Rr8-NpXLa45j7AmVcVw75WkswCfAu3ICL4EACKPG1gzOUscZGTqV4pO9Sqoej8CJN8DzXzPUsPQq0doEBdG6Xrg6zLm7COuJAYZXmw" width="400">
</a>
</div><br></span></div></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-420025406613508322023-07-02T16:43:00.001+05:302023-07-02T16:43:23.348+05:30नयी किताब<span ;="">आज एक चिर प्रतिक्षित किताब पढ़नी शुरू की है । सिर्फ तीस पन्ने पढ़े है और एक बहुत सुंदर प्रसंग आया और स्वयं को बताने से रोक नहीं सकी । </span><br>
<span ;=""> मैं स्वामी रामकृष्ण परमहंस की प्रशंसक हूँ और उन्हे एक निश्छल अबोध सरल से सरलतम सन्यासी के रूप में देखती हूँ ....उनकी इसी निश्छलता सरलता का प्रसंग पढ़ा और मन पुलकित हो गया ।</span><br>
<span ;=""> इस प्रसंग में नरेंद्र, ठाकुर (रामकृष्ण परमहंस) की बातों से उनको थोड़ा पगलाया हुआ सा समझते है और अपने तर्क वितर्क से, अपनी हाई स्कुल के ज्ञान से, देश विदेशों के पढ़े दर्शन से वे ठाकुर को समझाने की चेष्टा करते है कि जिस माँ के दर्शन की वे बात करते है वो वास्तव में "हैल्यूसिनेशंस" है । </span><br>
<span ;=""> ऐसे में सबको ऐसा सब दिखता है जिसकी वे कल्पना करते है और आपकी 'माँ' भी आपको ऐसे ही दिखती है।</span><br>
<span ;=""> ठाकुर का मुहँ उतर जाता है और वे बोलते है लेकिन माँ मुझसे बाते करती है।</span><br>
<span ;=""> नरेंद्र कहते है कि आप सिर्फ बातें करते है, लोगो के साथ तो देवी देवता नृत्य भी करते है....यह एक रोग है , कही बढ़ न जाये, संभालिये अपने आप को।</span><br>
<span ;=""> ठाकुर के चेहरे पर संशय के भाव आ गये लेकिन तत्क्षण उन्होने कहा कि मैंने परीक्षण किया है, माँ मुझे सदैव सत्य बताती है। </span><br>
<span ;=""> लेकिन नरेन्द्र स्वीकार नहीं करते और कहते है कि ये आपके मस्तिष्क की कल्पनायें मात्र है।</span><br>
<span ;=""> ठाकुर आहत हो जाते है। कुछ बोलते नहीं है और मंदिर भीतर चले जाते है।</span><br>
<span ;=""> थोड़ी देर बार वे मंदिर से लौटते है, एकदम प्रसन्नचित्त और आतुर । दौड़कर नरेन्द्र के पास आते है और कहते है " मैंने माँ से तेरी शिकायत कर दी है " </span><br>
<span ;=""> यह पढ़ते ही मन बलिहारी हो गया....और विश्वास हुआ कि ईश्वर को सिर्फ और सिर्फ सरलता से पाया जा सकता है 🙏</span><br>
<span ;=""> <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</a>
</div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div> </span><br>
<!--/data/user/0/com.samsung.android.app.notes/files/clipdata/clipdata_bodytext_230702_164211_199.sdocx-->आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-44570432195439487512023-06-20T15:37:00.000+05:302023-06-20T15:38:22.422+05:30घुमक्कड़ी<div>कहते है ना कि 'उसकी' मर्जी के बिना एक पत्ता भी नहीं हिल सकता। इस बात से मैं पुरा सरोकार रखती हूँ ।</div><div> इस बार हमने स्पिति वैली की ट्रिप प्लान की थी, सब बहुत अच्छे से प्रीप्लान्ड था। जैसा कि हम अक्सर सोचते है कि सब कुछ हमारी प्लानिंग से होगा और प्लानिंग थोड़ा भी बिगड़ती है तो हम इरीटेट हो जाते है । भुल जाते है कि.....</div><div> होइहि सोइ जो राम रचि राखा। </div><div> को करि तर्क बढ़ावै साखा॥</div><div>जिस दिन अलसुबह हम निकलने वाले थे, प्लान तभी से प्रभावित होने लगा। पहले दिन ही हमारे घर की बिजली गुल हो गयी । दिन में हमने पैकिंग कर ली थी लेकिन कुछ इस भरोसे रह गयी कि लास्ट टाइम</div><div>तक चलती रहेगी । मुम्बई इन दिनों प्रीमानसून के दौरान बहुत ह्युमिड रहती है, गरमी चिपचिपाहट अपने चरम पर होती है....उस दिन बिल्कुल ऐसा ही था और लाइट भी शाम तक न आयी। कम्पलेन के बाद बिजली विभाग के कर्मचारियों ने हमारे घर के पास वाले बड़े मीटर बॉक्स को चैक किया, सब ठीक किया। अब आस पास की दो बिल्डिंगों की लाइट आ गयी लेकिन हमारे घर की बत्ती अब भी गुल थी। काफी मशक्कत के बात पता लगा कि हमारे घर तक पहूंचने वाला केबल ही जल गया तो अब बिजली सुबह तक तो नहीं ही आयेगी। </div><div> हमे सुबह के तीन बजे निकलना था और बिना बिजली घर में घुट जाने जैसा था । इनवर्टर पहले से खराब था क्योकि उसकी कभी जरुरत पड़ी नहीं। </div><div>हमने अंधेरे में टॉर्च की रोशनी में लास्ट टाइम रखने वाला सामान रखा और रात दस बजे ही अपने घर से निकल कर परिवार के दुसरे सदस्य के घर चले गये और सुबह तीन बजे वही से निकले।</div><div> प्लाइट सही समय पर पकड़ी, सही समय पर अगले डेस्टिनेशन पहूंचे और टैक्सी लेकर मनाली पहूंच गये। सुबह सुबह हम स्पिति वैली के लिये निकलने वाले थे, सब प्लानिंग से था, होटल बुक था। प्लानिंग के हिसाब से ही हम सुबह नाश्ता करके निकल लिये। हम मनाली को पीछे छोड़ते हुए रोहतांग पास की ओर निकल आये। इसी पास पर एक कच्चा रास्ता काज़ा को जाता है जो कि हमारी मंजिल था। उस रास्ते पर चैकपोस्ट के लिये कुछ लोग खड़े थे और उन्होने हमे रोक लिया और कहा कि काज़ा तो बंद है साहब...लैंड स्लाइड हुआ है, वापस लौट जाइये ।</div><div> हम तो सकते में आ गये कि ऐसे कैसे ? हमारी तो आज की बुकिंग है काज़ा में। </div><div> हमने पूछा कि कब तक खुलेगा तो बताया गया कि कम से कम दस घंटे लगते है और एक नम्बर प्रोवाइड किया गया कि इस पर फोन करके पुछ सकते है ।</div><div> हम लौट आये लेकिन मनाली जाने के बजाय हमने सोचा कि पास के होम स्टे में रुका जाये और हम निकल गये होम स्टे की खोज में। तीन चार जगह पर क्वेरी की तो कोई कमरा खाली नहीं मिला। किस्मत से एक होम स्टे वाले अंकलजी ने बोला कि जस्ट एक कमरा चेकआउट हुआ है....लेकिन साफ करना बाकी है । हमने वो बुक कर लिया और अंकल को क्लीन करने बोल दिया । तब तक हम बाहर आस पास के नजारे देखने लगे। वहाँ एक और परिवार था जो हमारी ही तरह अटका था । उन्होने बताया कि उन्हे चंद्रताल जाना था लेकिन लैंडस्लाइड की वजह से जा नहीं पाये और इस होमस्टे में आकर रूके है । </div><div> खैर....कमरा साफ हुआ , हमने सामान भीतर रखा । इसी बीच आंटी ने बहुत स्वादिष्ट चाय बनाकर पिलायी। काज़ा वाले रास्ते का बंद होने का थोड़ा अफसोस तो था हमे...लेकिन होमस्टे के आसपास के खुबसूरत नजारे और उनके पहाड़ी मालिक परिवार की सरलता देखकर अफसोस छूमंतर हो गया। </div><div> अब हमारे पास पूरा दिन था....हमने सोचा कि आस पास के पहाड़ घुम लेंगे लेकिन तभी एक आइडिया आया कि क्यो न रोहतांग चला जाये और बस आनन फानन हम रोहतांग के लिये निकल गये।</div><div> रोहतांग की सैर हमारे प्लान में नहीं थी , लेकिन ये भगवानजी ने प्लान कर रखा था कि इन्होने रोहतांग नहीं देखा है तो चलो इनको ये दिखा दिया जाये 😃 </div><div> हम रोहतांग पास गये और मन एकदम खुश हो गया। वहां एक कैमरा वाले भैया मिले, उनसे हमने फोटो शूट करवाया। जब सब हो गया तो मुझे खयाल आया कि रिसेंटली बनायी मेरी राम दरबार की पेंटिंग मेरे बैग में रखी है और मैंने उसको बाहर निकाला और उसका फोटो क्लिक करने लगी तभी वो कैमेरा वाले भैया बोले कि मैम ये आपने बनाया है ? मैंने जब हाँ कहा तो उन्होने फिर से पूछा कि ये बैकग्राउंड में लिखा भी आपने है? उसने लगभग चार बार पुछा और वो भी आश्चर्य से। फिर उन्होने बोला कि मैं क्लिक करता हूँ और उन्होने पांच छः फोटो मेरे इस आर्टवर्क की क्लिक की....बिल्कुल दिल से।</div><div> तो यह थी पहले दिन की कहानी...</div><div>जाना था जापान पहूंच गये चीन 😃 </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/a/AVvXsEhC8849PAN3u7AaARigb3F4ocH1tYDD9LFkJHoN1JOfSxbbSvSsxfY1VAhoLgRrhdy04rq3zWrSlN-ZDMfMn14X5RJvfwvlcOgYvpoDj-3U5TvOv8dK4AL54KYUG8FM5dsZFfsmCGEeej11lh_ISTmUCZWJcYiMg4cC-nLV5BRK5oOIJDpCLv7hW1eLwv8" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div><br></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-51449407200053792492023-05-21T14:19:00.002+05:302023-05-21T17:09:16.437+05:30जिंदगी विथ ऋचा<div>दो एक दिन पहले "ऋचा विथ जिंदगी" का एक ऐपिसोड देखा , जिसमे वो पंकज त्रिपाठी से मुख़ातिब है । मुझे ऋचा अपनी सौम्यता के लिये हमेशा से पसंद रही है , इसी वजह से उनका ये कार्यक्रम देखती हूँ और हर बार पहले से अधिक उनकी प्रशंसक हो जाती हूँ। इसके अलावा सोने पर सुहागा ये होता है कि जिस किसी भी व्यक्तित्व को वे इस कार्यक्रम में लेकर आती है , वो इतने बेहतरीन होते है कि मैं अवाक् रह जाती हूँ।</div><div> ऋचा, आपके हर ऐपिसोड से मैं कुछ न कुछ जरुर सिखती हूँ।</div><div> अब आते है अभिनेता पंकज त्रिपाठी पर, जिनके बारे में मैं बस इतना ही जानती थी कि वो एक मंजे हुए कलाकार है और गाँव की पृष्ठभूमि से है। ऋचा की ही तरह मैंने भी उनकी अधिक फिल्मे नहीं देखी। लेकिन इस ऐपिसोड के संवाद को जब सुना तो मजा आ गया। जीवन को सरलतम रुप में देखने और जीने वाले पंकज त्रिपाठी इतनी सहजता से कह देते है कि जीवन में इंस्टेंट कुछ नहीं मिलता , धैर्य रखे और चलते रहे ...इस बात को खत्म करते है वो इन दो लाइनों के साथ, जो मुझे लाजवाब कर गयी.....</div><div>कम आँच पर पकाईये, लंबे समय तक, जीवन हो या भोजन ❤️</div><div>इसी एपिसोड में वो आगे कहते है कि मेरा अपमान करना मुश्किल है, मैं कभी अपमानित नहीं होता, आप गाली दीजिए,बेइज्जती कीजिए...मैं लूंगा ही नहीं । वे कहते है कि सामने वाला आपको उकसाना चाहे ना और आप न उकसो बल्कि मुस्कुराते रहो तो उसको ज्यादा तकलीफ़ होती है।</div><div> पंकजजी, मैंने आपकी अधिक फिल्मे नहीं देखी लेकिन वादा है आपसे , आपकी आने वाली फिल्म 'मैं अटल हूँ ' जरुर देखुंगी।</div><div><br></div><div> ऋचा, आप तो मोहब्बत है, आपका गरिमापूर्ण व्यक्तित्व, सधी और खनकती आवाज, सौम्य मुसकान, कार्यक्रम के लिये चुनी हुए उम्दा हस्तियाँ, आपकी मेजबानी सब सुभानल्लाह है। </div><div> यूँ ही मिलती रहे सबसे ❤️🙏<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-45797158329911095602023-04-09T23:13:00.001+05:302023-04-09T23:13:24.031+05:30माँ <div>माँ शब्द आते ही जेहन में सबसे पहला इमोशन आता है सिर्फ प्यार ही प्यार, दुनिया जहान का प्यार </div><div><br></div><div> 1.एक ऐसी अदालत जहां आपकी हर बात की, हर गलती की माफी होती है।</div><div> 2.एक ऐसा स्कुल जहां जीवन भर आपको सीख मिलती है और सबसे अच्छे प्यारे विद्यार्थी का मेडल भी।</div><div>3. एक ऐसा मंदिर जहां आपको इष्ट के समकक्ष बैठा दिया जाता है।</div><div>4. एक ऐसी आरामगाह जहां खुली बाहों से आपका स्वागत होता है।</div><div> 5.एक ऐसी छत जिसकी छावं तले आप महफ़ूज रहते है।</div><div>6.एक ऐसा अधिकार जो कभी मांगना नहीं पड़ता।</div><div>7. एक ऐसा कल्पवृक्ष जिससे कभी कुछ कहना नहीं होता , बिन बोले आपकी मुरादें पूरी होती है।</div><div>8.एक ऐसा इंश्योरेंस जो आपकी लंबी आयू के लिये अनवरत प्रार्थनाएं दर्ज करता रहता है।</div><div>9.एक नजरबट्टू जो आपको हर बुरी नजर से दूर रखता है।</div><div>10.एक ऐसी गीता जो हर पथ पर आपका मार्गदर्शन करती है ।</div><div>11.एक कूंजी, जिसके पास आपकी हर समस्या का समाधान होता है।</div><div>12.एक भरोसा जो आपके सिर पर हाथ फिराता है कि चिंता मत कर , मैं हूँ तुम्हारे लिये , तो यकिन मानिये कि ईश्वर स्वयं आपके समक्ष खड़ा होता है ।</div><div>13.एक आशीर्वाद जो मृत्यु के उपरांत भी सदैव आपके साथ रहता है।</div><div>14. माँ, जो साथ थी, तब भी सिखाती थी और अब जब नहीं है तब पहले से अधिक सिखाती है ।</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-4021904779185171132023-01-19T20:33:00.001+05:302023-01-19T20:33:53.418+05:30पलाश<div>एक पेड़ </div><div>जब रुबरू होता है पतझड़ से </div><div>तो झर देता है अपनी सारी पत्तियों को</div><div>अपने यौवन को</div><div>अपनी ऊर्जा को </div><div>लेकिन उम्मीद की एक किरण</div><div>भीतर रखता है </div><div>और इसी उम्मीद पर</div><div>एक नया यौवन नये श्रृंगार....</div><div>बल्कि अद्भुत श्रृंगार के साथ</div><div>पदार्पण करता है</div><div>ऊर्जा की एक धधकती लौ फूटती है </div><div>और तब आगमन होता है</div><div>शोख चटख रंग के फूल पलाश का </div><div>पेड़ अब भी पत्तियों को झर रहा है</div><div>जितनी पत्तीयां झरती जाती है</div><div>उतने ही फूल खिलते जाते है </div><div>एक दिन ये पेड़ </div><div>लाल फूलों से लदाफदा होता है </div><div>तब हम सब जानते है कि </div><div>ये फाग के दिन है</div><div>बसंत के दिन है </div><div>ये फूल उत्सव के प्रतीक है</div><div>ये सिखाता है</div><div>उदासी के दिन सदा न रहेंगे </div><div>एक धधकती ज्वाला ऊर्जा की आयेगी </div><div>उदासी को उत्सव में बदल देखी</div><div>बस....उम्मीद की लौ कायम रखना </div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div><br></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com14tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-23463507940813919402023-01-15T22:09:00.001+05:302023-01-15T22:09:51.144+05:30पलाश <div>इस बार जब अपने खेत वाले घर में जाना हुआ तो दूर से ही घर के पिछवाड़े एक लाल पेड़ मुझे दिखा और बरबस ही मुझे चिनार याद आ गये ।</div><div> मैं नजदीक गयी तो पता लगा कि बसंत आने वाला है....ये पलाश के फूल थे जो पेड़ की शाखाओं पर झूंड में थे । जब मैंने छत पर जाकर देखा तो कई जगह ये पलाश के पेड़ दिखे । पहाड़ों में,जंगलों के बीच ये पेड़ इतने खूबसूरत लग रहे थे कि कल्पना भी नहीं की जा सकती । </div><div> मैंने पलाश के पेड़ों को नजदीक से जाकर देखा, बड़े बड़े तीन पत्तों की जोड़ी वाला ये पेड़ अपनी पत्तियों को गिरा रहा था और जो पत्तियाँ पेड़ों पर थी वो भी सूखी सी, धूल मिट्टी से सनी । यहाँ पर सभी पेड़ ऐसे ही थे ....सब पर धूल जमी हुई थी । मेरे मन ने कहा कि एक बारीश होगी और ये सब नहाये धोये हो जायेंगे। प्रकृति सबका ख्याल रखती है अपने तरीके से । </div><div> हाँ , तो हम वापस आते है पलाश पर.....इन धूल जमी आधी बची सी पत्तियों के बीच ये अलौकिक पुष्प इस तरह खिल रहे दे जैसे कोई दैवीय वृक्ष हो । पत्तों पर जितनी धूल थी वही इसकी मखमली पत्तियों पर कही कोई धूल नहीं बल्कि एकदम ताजगी भरा अहसास । एक ही वृक्ष पर दो विरोधाभास । मेरी उत्सुकता बढ़ गयी और पलाश के बारे में जितनी जानकारी निकाल सकती थी, मैने निकाली । मुझे पता लगा कि यही इसके खिलने का समय है और बसंत के आगमन की सूचना है । ढाक के तीन पात वाला मुहावरा इसी पेड़ से निकला है । इसकी पत्तियां तीन के समूह में ही निकलती है । किसी भी टहनी पर न तो दो पत्तियां होती है और ना ही चार । </div><div> इसके अलावा सबसे दिलचस्प बात मुझे ये लगी कि पलाश जिसे टेसू या केसू के नाम से जाना जाता है , इसके रंग बनाये जाते है जिससे होली खेली जाती है । बस....मैंने तुरंत फूल बीनने शुरु कर दिये और सोच लिया कि घर जाकर रंग बनाऊँगी और उससे पेंटिंग 😎</div><div> स्थानीय लोगों से रंग बनाने की विधि पूछी जो कि बहुत ही सरल थी । </div><div> इस पेड़, इस फूल से मैंने बहुत सी चीजे सीखी । उन सब सीखों से एक कविता बन गयी जिसे अगली पोस्ट में शेयर करूँगी ।</div><div> रंग बनाने का प्रोसेस भी शेयर करूँगी....तब तक खूद का खयाल रखते रहिये । <div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
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</div></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-57402346606019475092022-12-08T14:01:00.001+05:302022-12-08T14:01:13.180+05:30भवाई नृत्य शैली <div>जब आप कोई भी यात्रा करते है तो आपकी जिंदगी की किताब में एक पन्ना अनुभवों का जानकारियों का जुड़ जाता है। इस बार मैं थी रणमहोत्सव में....जहाँ मुझे गुजरात की कोर जानकारी मिली। यहाँ की संस्कृति के परम्परागत वाद्य यंत्रों के बारे में जाना जोकि विलुप्त प्रायः है । रणमहोत्सव जैसे आयोजन शायद इसीलिए किये जाते है कि इन विलुप्त होती गूढ़ कलाओं को जीवित रखा जा सके, कलाकारों को काम मिल सके और पूरा देश इनसे परिचित हो सके। मेरा मानना है कि किसी भी संस्कृति को बचाये रखना बहुत दुभर काम है और अगर कोई कलाकार चार पुश्तों से अपनी कला को संभाल रहे है तो उनके लिये प्रोत्साहन और रोज़गार दोनो जरुरी है। </div><div> इसी के चलते मैं रुबरु हुई गुजरात की एक नृत्य शैली से जो राजस्थान से भी जुड़ी हुई है। इस शैली का नाम है 'भवाई' । हमे बताया गया कि इसे करने के 365 तरीके है और हमारे सामने इसकी एक प्रस्तुति होनी थी 'किरवानो भेष' । </div><div> प्रस्तुति शुरु हुई ....सफेद सिल्क में चमचमाती वेशभुषा में एक लोक कलाकार आये और उन्होने घूमते हुए करतब शुरु किये । पहले वे तलवार जैसी किसी चीज को हाथ में घुमाते हुए प्रदर्शन कर रहे थे। तलवार घूमते हुए उनकी अंगुली से खिसकते हुए उनकी कोहनी तक आ गयी ...एक रिदम था उनके (कलाकार ) और तलवार के घूमने में। दोनो में जैसे तालमेल था। एक और साथी कलाकार उनके पीछे था जो उन्हे अलग अलग तरह की तलवारे उन्हे दे रहा था । </div><div> अब उन्हे एक कपड़ा दिया गया...लगभग साड़ी जितना। उन्होने कपड़े का एक कोना अपने हाथ में पकड़ा और बाकी कपड़े को कंधे पर डाल लिया और पूरा ध्यान दोनों हाथों से पकड़े कपड़े पर बनाया और वे लगातार कुछ बुनने लगे जैसे । कपड़े को सधे हाथों से घूमाते हुए वो कुछ बना रहे थे और आश्चर्य की बात यह कि ये सब वो स्वयं घूमते हुए बना रहे थे। जब से उन्होंने प्रस्तुति शुरु की वो एक बार के लिये भी नहीं रुके थे। इसी तरह कपड़े से कुछ बनाते हुए वो कंधे से थोड़ा कपड़ा नीचे उतार लेते और बनाते जाते। जब कंधे पर थोड़ा कपड़ा बचा तो हम सबके आश्चर्य का ठिकाना नहीं था उन्होने अनवरत रुप से घुमते हुए मोर बना दिया था....तालियों की गड़गडाहट के बीच दर्शक दीर्घा में बैठी मैं चकित थी। उनको इतने लंबे वक्त से घुमते हुए देखकर मुझे चक्कर आ गया। </div><div> उनका पूरा वीडियो तो मैं नहीं बना पायी क्योकि हम सब भी देखने में मगन थे लेकिन एक छोटी सी क्लिप बनायी ताकि इस लोक कला और कलाकार के बारें में लोगो को बता सकूँ ।</div><div>यहाँ मैं फोटो संलग्न कर रही हूँ ।</div><div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjLFP1tnfBa5eFt2bav0ZRUM6phwu9m77YI7kIZftrpKYQxwFUmzjtscntlJsJynVbhxVrlYCRo-mHbfW10qIAnggjXoLIXUL3dNZdqKQVoKC_hZHQYEjDMwq8h-CshpQiaL4GC8W-lhf0/s1600/1670488268181834-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj9bzT4ZdPT7iF5ErSP8IQsTZNa7po7k596fy8CK7NewJrZ9uV3LMla0Lyc7l6zJJGnxyrglJxSSqaZd_OsGTKzorSSFK4tVyiQM63MxzzWwzlYSaR0MDafrbHyx4ZqXAkD-uo0bOi45dU/s1600/1662700314262623-0.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;">
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</div></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-20844819582850794632022-09-07T12:55:00.001+05:302022-09-07T15:56:01.672+05:30एक संवाद <div><div>आज एक संवाद सुना ।</div><div> दो स्त्रियां.....जिनमे से एक बिल्कुल सधे शब्दों में कुछ पूछती है और दूसरी कभी खिलखिलाकर तो कभी रोतलू सी उनका जबाब देती है और कभी असमंजस में कहती है कि ' पता नहीं ' । </div><div> संवाद था सुदीप्ति और अनुराधा के बीच । सुदीप्ति को मैं इंस्टाग्राम पर उनकी साड़ियों की वजह से जानती थी और हमेशा पढ़ती भी थी। अनुराधा को उसकी पहली किताब 'आजादी मेरा ब्रांड' के वक्त से जानती हूँ । तीखे नैन नक्श वाली निश्छल सी लड़की ,जो यकीनन वही है जो वो दिखती है और खूबसूरत इतनी कि कोई भी मुग्ध हो जाये । </div><div> संवाद एक बार शुरू हुआ तो पता ही न लगा कि कब समय गुजर गया।</div><div> दोनो ही नदियों की तरह.....सुदीप्ति जहाँ शांत बहाव वाली मन को सुकून देने वाली नदी तो वहीं अनुराधा ,चंचल हिलोरे लेती कलकल बहती नदी, जो अपनी बौछारों से आपको भिगो दे ।</div><div> सुदीप्ति जिस तरह से प्रश्न पूछती है ....उनकी आवाज का गांभीर्य और ठहराव उस प्रश्न को बातचीत बना देता है और यह वाकई एक कला है।</div><div> सामने वाला आपका दोस्त है, आपकी व्यक्तिगत जानपहचान है लेकिन एक सार्वजनिक मंच पर उस निजता को बनाये रखते हुए एक प्रवाहमयी संवाद को साधना सच में प्रंशसनीय है।</div><div> अनुराधा.....इसके बारे में क्या ही कहा जाये...एक हरियाणवी छोरी जो दुनिया जहान की बातें करती है । जो दुनिया घूमती है लेकिन ,अपने मन के समंदर से हर रोज बाहर आने को डूबती तैरती है। तमाम बड़ी बड़ी बातों को धता बताकर एक छोटी सी बात बोलती है जो अक्सर मैं भी खुद से कहती रहती हूँ....हर दिन खुद को सही करना। सही करने से उसका तात्पर्य यह नहीं कि आप गलत हो....सही से मतलब है कि दुनिया से परे खुद पर काम करना, खुद को प्यार करना , खुद को जीना। </div><div> पूरे संवाद में कई बार गला भर्राया....जहां जहां अपनों का, परिवार का जिक्र हुआ....अनु की आँखें तो चमकती थी पर आवाज रुंधी सी होती थी। अपनी जड़ों से जुड़ाव यही होता है। अपनी बुआ, मौसी, ताई , चाची, बहन सबके बारें में बोलते वक्त उसकी आवाज जैसे खनकती थी लेकिन उनके जीवन की हकीकत उसे रुआंसा कर देती है....अपनों का दर्द उसकी आवाज</div><div>में उतर आता है इसलिए लगता है कि किताब में दर्ज़ इस लड़की के जज़्बात झूठे नहीं हो सकते। </div><div> अपने आपको ठोस धरातल पर रखने वाली ये लड़की स्वीकारती है कि उसमे विकार है....वैसे तो ये स्वीकारोक्ति भी आजकल ट्रेंड में है लेकिन ,जिस सहजता से वो कहती है कि मुझमे इर्ष्या बहुत है और इस पर मैं लगातार काम कर रही हूँ....इसलिए हर दिन ठीक हो रही हूँ। अपने परिवार की अशिक्षित महिलाओं पर गर्व करने वाली इस लड़की में दंभ नहीं है लेकिन गर्वित होते रहना इसका स्वभाव है.....मेरा अपना यही मानना है कि हर स्त्री का यह स्वभाव होना चाहिए। </div><div> सुदीप्ति, जिस तरह से तुमने इस संवाद को रोचक बनाया उसके लिये शुक्रिया तुम्हारा।</div><div>तुम्हारी और तुम्हारी साड़ियों की मैं हमेशा से फैन हूँ ।</div></div><div><br></div><div><br></div><div>संवाद सुनिये नीचे दिये लिंक पर क्लिक करके ....</div><div>https://fb.watch/fo346syMc8/<br></div><div><br></div><div><br></div><div>#आत्ममुग्धा </div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-9684550290021483292022-09-02T10:02:00.001+05:302022-09-02T10:02:31.110+05:30मन<div>कभी कभी मन डुबा सा रहता है</div><div>कभी हिलोरे लेता </div><div>किसी पल सहम जाता </div><div>तो कभी कमल सा खिल जाता </div><div>कभी खारा हो जाता समंदर सा</div><div>तो कभी नदी की मिठास सा</div><div>कभी घनीभूत होता विचारों से</div><div>तो कभी सांय सांय करता</div><div>खाली अट्टालिका की तरह </div><div>कभी ध्वज सा लहराता किसी शिखर पर</div><div>कभी जमीदोंज होता कोई कोना</div><div>कभी शांत होता मंदिर के गर्भगृह सा</div><div>तो कभी शोर मचाता सुनामी सा</div><div>कभी कलकल बहता झरने सा</div><div>तो कभी सब कुछ लीलता तुफान सा</div><div>कभी परिचित सा</div><div>तो कभी अजनबी अनजान सा</div><div>मन है.........</div><div>विरोधाभास के बीच </div><div>कहाँ खुद को जानने देता</div><div>#आत्ममुग्धा</div><div><br></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-495674901974504439.post-60919653188201969322022-08-26T10:43:00.001+05:302022-08-26T10:43:06.262+05:30जीवन उत्सव<div>क्यो इंतजार करते हम खुशियों का</div><div>क्यो तकते राह उत्सवों की</div><div>क्यो साल भर बैठ </div><div>इंतजार करते जन्मदिन का</div><div>क्यो नहीं मनाते हम हर एक दिन को</div><div>क्यो नहीं सुबह मनाते</div><div>क्यो शामें उदास सी गुजार देते</div><div>क्यो नहीं रात के अंधेरों को हम </div><div>रोशनाई से भरते</div><div>कभी अलसुबह उठकर सुबह का उत्सव मनाना</div><div>देखना कि कैसे </div><div>आसमान सज उठता है </div><div>चहकने लगते है पक्षी</div><div>खिल उठता है डाल का हर पत्ता</div><div>अगुवाई होती है सुरज की </div><div>वंदन होता है उसके प्रखर तेज का</div><div>तुम उस तेज को मनाना सीखो</div><div>कभी शाम भी मनाओ</div><div>ढ़लते सुरज को देखो </div><div>उसके अदब को देखो</div><div>शाम-ए-जश्न के लिये</div><div>खुद विदा कह जाता है</div><div>गोधूलि की धूल को देखो</div><div>घर लौटते पंछियों को देखो</div><div>ऊपर आसमान में </div><div>विलीन होती सिंदुरी धारियों को देखो</div><div>आरती के समय ह्रदय में उठते कंपन को देखो</div><div>देखो .....हर रोज शाम यूँ ही सजती है</div><div>अब....रात के अंधेरों को मनाओ</div><div>ये रातें तुम्हारे लिये ख्वाब लेकर आती है</div><div>इन्हे परेशान होकर मत जिओ</div><div>सुकून से रातें रोशन करो</div><div>बोलते झिंगुरों के बीच तुम</div><div>जरा चाँद से बाते करो</div><div>उसकी कलाओं को निहारो </div><div>सोचो जरा.....</div><div>सदियों से ये चाँद हर रात को उत्सव की तरह मनाता है</div><div>तुम भी उत्सव मनाना सीखो</div><div>कभी समंदर की आती जाती लहर को देखो</div><div>कभी झरनों के जुनून को देखो</div><div>बारिश की पहली बुंद को देखो</div><div>जो तपती धरती को तृप्त करने आती है</div><div>बरखा की इन बुंदों का नृत्य उत्सव ही तो है</div><div>तुम भी मनाओ हर दिन </div><div>जीवन का उत्सव</div><div><br></div>आत्ममुग्धा http://www.blogger.com/profile/09368805902557364435noreply@blogger.com4