सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पहाड़ बुलाते है -2

दूसरा दिन रात को जल्दी सो जाने से सुबह जल्दी ही आँख खुल गयी, वैसे भी मैं जल्दी उठने वालो में से हूँ।  6 बज चुके थे, मैंने तुरंत उठकर खिड़की का पर्दा हटाया क्योकि रात को कुछ दिखाई न दे रहा था।  पर्दा हटाने ही जैसे मैं झूम गयी,  मेरे प्रिय पहाड़ जैसे मुझे खिड़की से गुडमोरनिंग कर रहे थे। वे एकदम नजदीक थे और विशालकाय थे।  मेरी नजरे उनसे हट ही नहीं रही थी कि सुशील ने याद दिलाया कि हमे 9 बजे निकल जाना है आस पास की जगह देखने।      आज के कार्यक्रम में शामिल था गोरसोन बुगयाल और इसे लेकर ही मैं सबसे ज्यादा उत्साहित थी, यह एक 3 किलोमीटर की ट्रैकिंग थी। यहाँ तक जाने के लिये हमे गंडोला  में बैठना था जो कि अपने आप में एक रोचक अनुभव होने वाला था।             ये गंडोला राइड जोशीमठ से ओली तक जाती है और ये एशिया की दूसरी सबसे लंबी दूरी तय करने वाली राइड है।  यूँ तो जोशीमठ और ओली के बीच की दूरी 15 किलोमीटर है पर गंडोला इसे साढ़े चार किलोमीटर में ही पुरी देता है और करीबन 15/20 मिनिट में हम ओली पहुँच जाते हैं। उसी गंडोला से हमे वापस आना होता है।        हम दोनो आनन फानन तैयार होकर नाश्ता करने पहुँच गये।

सुनहरी सुबह

रोज की तरह एक व्यस्त सी सुबह......... साढ़े दस के आस पास नीरजा दी का व्हॉट्सऐप कॉल आया। मैंने रिसीव किया तो उधर से उनकी और बच्चों की आवाजें आ रही थी, मुझे लगा शायद वो क्लासरुम में थी और गलती से फोन लग गया होगा । मैंने थोड़ा इंतजार किया,  फिर फोन डिसकनेक्ट हो गया।  पाँच मिनिट बाद फिर दी का कॉल आया, इस बार विडियो कॉल था । थोड़े आश्चर्य के साथ मैंने कॉल रिसीव किया, नीरजा दी थी सामने...... अपनी चिर परिचित मातृत्वमयी मुस्कान के साथ।  उन्होने कहा कि संगीता, अभी तुम्हारा विडियो देखा  और अपनी कक्षा के बच्चों को दिखाया।  बच्चों को बहुत अच्छा लगा और वे सब तुझसे मिलना चाहते है, यह कहकर उन्होने बच्चों की तरफ कैमरा किया। सारे बच्चें एक साथ मेरा अभिवादन कर रहे थे और मैं भाव विभोर तो थी ही, बहुत सम्मानित भी महसूस कर रही थी।  मैंने बच्चों को पुछा कि कैसा लगा तो सारे एक सूर में बोले बहुत अच्छा।  फिर मैंने पूछा कि ये कौनसी क्लास है तो सारे फिर से एक सूर में बोले, मुझे कुछ समझ नहीं आया।  मैंने कहा,  एक ही स्टूडेंट बोले तो पता लगा कि वो सेवेंथ क्लास थी। जब निश्छल मनों से प्रशंसा मिलती है तो वो सीधे दिल की

पहाड़ बुलाते है

पहला दिन दिसम्बर तीन की अलसुबह...... हम दोनो घर से निकल गये एअरपोर्ट के लिये। छ: बजे की फ्लाइट थी और 8:50 पर हम देहरादून पहुँचने वाले थे।      मैं बड़ी खुश थी अपनी इस यायावरी को लेकर, क्योकि पुरी ट्रिप मैंने प्लान की थी और पतिदेव ने इसे स्पोंसर किया था, हालांकि यह ट्रिप किसी और के साथ किन्हीं और वजहों से बनी थी।      हाँ तो...... हम एअरपोर्ट पहुँच गये, भीड़ बहुत थी, हमने फटाफट बोर्डिंग पास लिया और लगेज चैक इन करवाने लाइन में लग गये।  हमारा समान जैसे ही बैल्ट पर रखा गया, वजन ज्यादा होने की चेतावनी मिली।  हमने समान वापस लिया और कैमरा,  बैकपैक, पर्स और कुछ गरम कपड़े हाथ में लिये और बाकी समान को कार्गो में  डाला।  यह एक अलग ही अनुभव था, भीड़ के बीच हम समान खोलकर बैठे थे और हड़बड़ी में मै गड़बड़ कर रही थी जो कि अक्सर मुझसे होती है........ऐसे में कुशल पति का होना वाकई राहत होता है 😍       खैर......सुबह नौ बजे के करीब हम देहरादून एअरपोर्ट पर थे और हमारा टैक्सी ड्राइवर हमारा वहाँ इंतजार कर रहा था।  देहरादून में तापमान 10 डिग्री था जो मेरे लिये बेहद ठंडा था और मैंने स्वयं को एक पशमीना में

मन का जंगल

कभी यात्रा की है किसी जंगल की ? नहीं? तो सुनो अपने मन में झांको एक गहन जंगल है वहाँ घुप्प अंधेरा.... कंटीली झाड़ियाँ हर रोज उगते कूकुरमुत्ते और सुनो ध्यान से बोलते सियार, रोते कूत्ते सन्नाटे को चीरते झींगूर हँसी नहीं तेज अट्टहास है वहाँ किसका?  नहीं जानते तुम क्योकि तुम पहचान नहीं पाते किसी एक आवाज को और शोर समझ नजरअंदाज कर देते हो तुम देख नहीं पाते सूखे दरख्तों को झड़ते पत्तों को क्योकि यहाँ घनघोर कोहरा छाया है तुम्हारे विचारों का छँट नहीं सकते तुम उससे ये बादल नहीं है जो उड़ जायेगे ये भारी है बहुत क्योकि इसमे धुंध है तुम्हारी ग्लानियों की,  गुस्से की गलत निर्णयों की,  अपनी छवि की दोहरी मानसिकता की, तनाव की सब पा जाने की लालसा की सब खो देने के डर की लेकिन सुनो एक दिया जलाओ, उजाले से भरा तब सब छँट सकता है जो बाहर दिखते हो वो अंदर भी दिखो और फिर सैर करो अपने मन के जंगल में अब यहाँ अद्भुत जंगली फूल खिलेंगे संगीता जाँगिड़

पुरुष दिवस

जानती हूँ मैं मुश्किल होता है पुरुष होना अपने कंधों पर हर भार ढ़ोना आँसूओं को अंदर ही अंदर सींचना नहीं मतलब किसी को तुम्हारे भावों से क्योकि भावुक तो स्त्रीयां मानी जाती है तुम्हे तो पुरुषत्व के साथ जीना है एक गुरूर, एक दंभ, एक अहं एक गढ़ी गढ़ाई परिभाषा है तुम्हारी तुम जीना चाहते हो अपने मनोभावों को लेकिन उंडेल नहीं पाते उन्हें क्योकि तुम पुरुष हो न जाने कितने विचार रोज मरते है तुम्हारे अंदर तुम उन्हे जीवनदान देना चाहते हो लेकिन घोट देते हो अपने ही अंदर क्योकि तुम नहीं दिखा सकते अपना नर्म, नाजुक और संवेदनशील मन तुम भी मापना चाहते हो आसमान तुम भी उड़ना चाहते हो परिंदों की तरह तुम भी हवाओं की थिरकन चाहते हो कभी कभी तुम विरोध भी करना चाहते हो लेकिन तुम नहीं निकाल सकते मोर्चा क्योकि तुम पुरुष हो तुम्हारी हकीकत की जमीं सख्त है लेकिन सुनो पुरूष आधी आबादी तुम्हें बहुत प्यार करती है तुम प्रतिद्वंदी नहीं पूरक हो हम मिलकर पूर्ण होते है ना तुम्हारा कोई दिन ना मेरा कोई दिन हर दिन हमारा हो। संगीता #अंतर्राष्ट्रीय_पुरुष_दिवस

मित्रता दिवस

आज मित्रता दिवस है, दोस्ती का दिन!          क्या आपने कभी शिद्दत से दोस्ती को महसूस किया है, अक्सर लोग प्यार को तो शिद्दत से महसूस कर लेते है पर दोस्ती को नहीं कर पाते क्योकि सामान्यतया दोस्ती से मायने मात्र मौज मस्ती के लगाये जाते है। जिंदगी सब बातों का समावेश है और जब हर उस समावेश में आपकी दोस्ती घूली होती है तो शायद वो जिंदगी बेहतरीन। आपने कृष्ण सुदामा, राम सुग्रीव की दोस्ती के बारे में भी सुना होगा, ये मित्र प्रेम के  शानदार उदाहरण है। यहाँ मित्र के साथ प्रेम शब्द भी आ गया है जो हर कोई महसूस नहीं कर सकता। जब मित्रता उच्चतम पायदान पर पहुँच जाती है तो वह प्रेम बन जाती है अब आपका मित्र आपका भाई बनकर आपको समझा सकता है, आपकी माँ बनकर आपको डाँट सकता है, आपका गुरु बनकर आपकी गलतियां आपको गिना सकता है.....और प्रेम के इन भावों को ह्रदय से निकाला नहीं जा सकता, वे स्थायी होते है और इनमे रत्तीभर भी फर्क लाना या सोचना मात्र भी कई बेहतरीन रिश्तों को खो देने के बराबर है।  जरुरी नहीं कि आप दोस्ती में रोज बातें करे या मिले, हाँ... लेकिन यह अहसास बना रहना जरुरी होता है कि बात नहीं करते हुए भी मित्र