सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

माँ तू याद बहुत आती है

माँ,तू याद बहुत आती है
सब कहते है कि भुल जाऊँ तुझे
और बढ़ूँ आगे
लेकिन तू ही बता,कैसे भुलू ?
दिन रात तेरी ही याद सताती है
माँ,तू याद बहुत आती है।
सब कहते है,बीति ताहि बिसार दे
लेकिन कैसे बिसार दूँ उन पलों को
जिनमें तू समायी है
हर बात तेरी ही बात बताती है
माँ,तू याद बहुत आती है।
मेरी आँखों से तरल बहता है
होंठों से सिसकियाँ छूटती है
हर ओर तेरी सूरत नजर आती है
माँ,तू याद बहुत आती है।
मैं ब्याह के आयी,
तुझे छोड़ के आयी
तेरे बिन जीना भी सीखा
क्योंकि,तेरी बातें,तेरी नसीहतें
सीखा रही थी मुझे जीवन की हक़ीक़तें
तेरी नज़रें मेरी हर चुक को सुधारती थी
लेकिन अब ना तू है ना तेरी नज़रें
तेरा युँ मुझे छोड़ के जाना
ख़ुदा की बात ये बेमानी है
माँ,तू याद बहुत आती है।
जब तू थी
दुनियाँ बड़ी हसीं थी
और मैं उसमें मगन थी
अब तू नहीं
फिर भी हर तरफ तू ही तू है
तेरे बिन ये दुनियाँ भी बेगानी है
माँ,तू याद बहुत आती है।

टिप्पणियाँ

  1. आपकी प्रस्तुत कविता दिल के अंतस को प्रभावित कर गयी ।

    जवाब देंहटाएं
  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  3. अच्छी रचना
    छू गई मन को
    इस कविता की कुछ पंक्तियां सुधार कर लिख रही हूँ
    अब तू नहीं
    फिर भी हर तरफ तू ही तू है
    तेरे बिन ये दुनियाँ भी बेगानी है
    माँ,तू याद बहुत आती है।
    हर जगह छोटे उ का प्रयोग किया हा आपने
    यदि इसे इस तरह पढ़ें तो

    अब तुम नहीं
    फिर भी हर तरफ तुम ही तुम हो
    तेरे बिन ये दुनियाँ भी बेगानी है
    माँ,तुम्हारी याद बहुत आती है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पंक्तियां सुधारने के लिये आभार यशोदाजी..........

      हटाएं
  4. भावपूर्ण .. भुलाना आसान नहीं होता ... और माँ को तो जब तक साँस है भुलाया नहीं जा सकता ...
    मन को छूते भाव ...

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

उम्मीद

लाख उजड़ा हो चमन एक कली को तुम्हारा इंतजार होगा खो जायेगी जब सब राहे उम्मीद की किरण से सजा एक रास्ता तुम्हे तकेगा तुम्हे पता भी न होगा  अंधेरों के बीच  कब कैसे  एक नया चिराग रोशन होगा सूख जाये चाहे कितना मन का उपवन एक कोना हमेशा बसंत होगा 

मन का पौधा

मन एक छोटे से पौधें की तरह होता है वो उंमुक्तता से झुमता है बशर्ते कि उसे संयमित अनुपात में वो सब मिले जो जरुरी है  उसके विकास के लिये जड़े फैलाने से कही ज्यादा जरुरी है उसका हर पल खिलना, मुस्कुराना मेरे घर में ऐसा ही एक पौधा है जो बिल्कुल मन जैसा है मुट्ठी भर मिट्टी में भी खुद को सशक्त रखता है उसकी जड़े फैली नहीं है नाजुक होते हुए भी मजबूत है उसके आस पास खुशियों के दो चार अंकुरण और भी है ये मन का पौधा है इसके फैलाव  इसकी जड़ों से इसे मत आंको क्योकि मैंने देखा है बरगदों को धराशायी होते हुए  जड़ों से उखड़ते हुए 

धागों की गुड़िया

एक दिन एक आर्ट पेज मेरे आगे आया और मुझे बहुत पसंद आया । मैंने डीएम में शुभकामनाएं प्रेषित की और उसके बाद थोड़ा बहुत कला का आदान प्रदान होता रहा। वो मुझसे कुछ सजेशन लेती रही और जितना मुझे आता था, मैं बताती रही। यूँ ही एक दिन बातों बातों में उसने पूछा कि आपके बच्चे कितने बड़े है और जब मैंने उसे बच्चों की उम्र बतायी तो वो बोली....अरे, दोनों ही मुझसे बड़े है । तब मैंने हँसते हुए कहा कि तब तो तुम मुझे आंटी बोल सकती हो और उसने कहा कि नहीं दीदी बुलाना ज्यादा अच्छा है और तब से वो प्यारी सी बच्ची मुझे दीदी बुलाने लगी। अब आती है बात दो महीने पहले की....जब मैंने क्रोशिए की डॉल में शगुन का मिनिएचर बनाने की कोशिश की थी और काफी हद तक सफल भी हुई थी। उस डॉल के बाद मेरे पास ढेरों क्वेरीज् आयी। उन सब क्वेरीज् में से एक क्वेरी ऐसी थी कि मैं उसका ऑर्डर लेने से मना नहीं कर सकी । यह निशिका की क्वेरी थी, उसने कहा कि मुझे आप ऐसी डॉल बनाकर दीजिए । मैंने उससे कहा कि ये मैंने पहली बार बनाया है और पता नहीं कि मैं तुम्हारा बना भी पाऊँगी कि नहीं लेकिन निशिका पूरे कॉंफिडेंस से बोली कि नहीं,