मेरी चुप्पी को घमंड मेरे शब्दों को प्रचंड बतियाते नयनों को उदंड और मधुरता को मनगढ़ंत समझते है लोग लेकिन दोष लोगों का नहीं कमबख़्त ..... हमारी राह से गुजरने वाली हवा की फ़ितरत ही कुछ ऐसी है ।
अपने मन के उतार चढ़ाव का हर लेखा मैं यहां लिखती हूँ। जो अनुभव करती हूँ वो शब्दों में पिरो देती हूँ । किसी खास मकसद से नहीं लिखती ....जब भीतर कुछ झकझोरता है तो शब्द बाहर आते है....इसीलिए इसे मन का एक कोना कहती हूँ क्योकि ये महज शब्द नहीं खालिस भाव है