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सूरज और मैं

पूरे दिन का थका-मांदा ढलता सा सूरज
कल रात;
मेरे आंगन के एक कोने में आ छुपा
रात के साये से घबराया
सिमट रहा था मेरे ही आँचल में
मैंने कहा,चलो बतियाए थोड़ा
देख के स्नेह मेरा
उसने भी मौन तोड़ा
उसे सहमा सा देखा तो खुद पे हुआ गुमां
और कह बैठी सूरज से
कि तुझमे हैं ज्वाला इतनी
तो लौ मुझमे भी कम नहीं
तेरे जितना तेज ना सही
लेकिन;
मैं भी किसी से कम नहीं
जिस सृष्टी को देते हो तुम उजाला
सोचो जरा
कौन है उसे जन्म देने वाला
तुम तो रात के सायों में खो जाते हो
सितारों के आगोश में सो जाते हो
लेकिन मैं........
खुद ही सितारों की चूनर बन जाती हूँ
और तुम जैसों को अपने आँचल मे सहलाती हूँ
मेरी बातें सुन,सूरज मुस्कुराया
और बोला हँस कर
तु तो है वो नन्हा सा दिया
जिसकी लौ पे सबने अभिमान किया
मेरी ज्वाला किसी से सही ना जाए
लेकिन तेरी लौ सबको पास बुलाए
तुने पूछा........क्या हूँ मैं ?
मैं तो बस तेरे माथे पे सजा सिंगार हूँ.........
ऐसा कह चला गया वो नन्हा सा सहमा सा सूरज
आसमां को सिंदूरी करने
अपनी किरणों को मेरे आँगन मे छोड़..........
Proud to be a woman

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही लाजवाब ... प्रभावी रचना .. सच है असल है माँ होना .. सूरज की भी तो माँ होती ही है ... फिर उससे बढ़के कौन ..

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