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संदेश

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हवा

मेरी चुप्पी को घमंड मेरे शब्दों को प्रचंड बतियाते नयनों को उदंड और मधुरता को मनगढ़ंत समझते है लोग लेकिन दोष लोगों का नहीं कमबख़्त ..... हमारी राह से गुजरने वाली हवा की फ़ितरत ही कुछ ऐसी है ।

करवां चौथ

ऐ चाँद,आज तु भी जरा इठलाना पूरो शबाब से आसमां में उतरना खुशियों के छलकाना जा़म क्योकि आज की ये खुबसुरत शाम तेरे और मेरे प्रिय के नाम ऐ चाँद, देख जरा नीचे सज धज के खड़ी सुहागिनें कर रही तेरा इंतजार,करके सोलह श्रृंगार बादलों की ओट से तु झांकना लगी है टकटकी,जो झलक तेरी दिखी खिल जायेगे सबके चेहरे,चलेगा तेरा जादु क्या प्रोढ़ा,क्या यौवना और क्या नववधु ऐ चाँद,तु साक्षी बनेगा प्यार का देखेगा आस्था की रात में घुलता ऐतबार आज तो यार से भी पहले होगा तेरा दीदार लेकिन सुन जरा, भले ही धरती पे ना उतर लेकिन आसमां में जल्दी तु आना मैं भी हुँ प्यासी तेरे दीदार की जल्दी तु आना होगा प्यार का समर्पण करके तुझको जल अर्पण करवां चौथ की हार्दिक बधाईयाँ

दशहरा

"राम ने रावण को मारा" यह वाक्य बचपन में ना जाने कितनी बार मैनें अपनी सुंदरलेख की पुस्तक में लिखा था,उस वक्त मेरे लिये यह महज ऋुतिलेख और सुंदरलेख का एक वाक्य भर था,जिसे मैं साठी (कलम का एक प्रकार) की सहायता से अपनी पुस्तक पर उतारती थी।बचपन की यादों में तो यही अंकित था कि रावण दस सिरों वाला एक राक्षस था जिसे भगवान राम ने अपने धनुष बाण से मार दिया था.....उस दिन से हम दशहरा मनाने लगे।समय के साथ विजयादशमी के गुढ़ अर्थ भी समझ में आने लगे कि राम और रावण तो प्रतिक मात्र है अच्छाई और बुराई के,वैसे व्यक्तिगत रूप से तो रावण महाविद्वान पुरूष थे।रावण जैसे ज्ञानी दुश्मन के साथ युद्ध करके स्वयं राम ने भी खुद को गौरवािन्वत महसुस किया था ।रावण को जितना पढ़ा,समझा....इतना ही जाना कि शिव का यह परम भक्त,महाज्ञानी था,ना सिर्फ शस्त्र विद्या में बल्कि वेदों का भी प्रकांड पंडित था। लेकिन उसकी एक बुराई ने उसका महाविनाश करवा दिया।वो दसानन एक बुराई के चलते मृत्यु को प्राप्त हुआ। लेकिन आज के रावण का विनाश क्या उसकी एक बुराई की वजह से हो पायेगा।वो रावण दस सिर वाला था,शस्त्र और शास्त्र दोनो का ज्ञानी था

निर्भया

आँखें मेरी खुशी से है नम निर्भया के गम कुछ तो हुए होंगे कम माना कि तेरी आत्मा सिसकती है अब भी तेरी माँ की आँखों से आंसू बन के बहती है तु अब भी लेकिन माँ की आँखों में आज तु खुशी बन के उमड़ी है तेरे गुनहगारों को मिली है फांसी अब आगे नहीं बनेगी कोई निर्भया अभागी........ .............देश की न्यायव्यवस्था और मीडिया दोनो को धन्यवाद,यह संदेश है गुनहगारों के लिये ।

निर्भया

मेरी खिड़की से आ रही गड़गड़ाहट आज उपर गरज रहे बादल तो नीचे धुम धड़ाका विसर्जन का झुम रहे गणपति भी गा रहे सब गणपति बप्पा मोरया लेकिन मेरा मन खोया है कही ओर चिल्ला चिल्ला के कह रहा निर्भया....निर्भया....निर्भया मुझे नींद ना आयेगी आज जब तक दरिंदों के सर फांसी का ना सजेगा ताज देश का सम्मान है तु तु ही है मेरा भी मान मिला अब तो तुझे बप्पा का भी आशिर्वाद आसमां से बुंद-बुंद बरस रही तु मत रो,लाडली अब खौल रहा सबका लहु तु चिन्ता मत कर निर्भया तेरे गुनहगारों को मिलेगी सजा खिड़की से आ रही आवाज गणपति बप्पा मोरया .... फैसले के इंतजार है तेरी निर्भया......

बेटी का जन्मदिन

आज बिटिया का १४ वां जन्मदिन है,आज के दिन मेरे मन का ये कोना उसके नाम बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती है घुटनों के बल चलती वो कब दौड़ने लगी, मेरी अंगुली पकड़ कर चलने वाली, कब मेरे कांधे आ लगी मुझे पता ही ना चला बिटिया अब सयानी हो चली है पेंसील की जगह पैन चलाने लगी है शब्दों की तुकबंदी के साथ कलम से भी अब वो खेलने लगी है अब वो तुतलाती नहीं अंग्रेजी में बड़बड़ाती है परिवार के नन्हे बच्चों को टीचर बनकर पढ़ाती है घर में, स्कुल में दादागिरी दिखलाती है लेकिन सच कहु,हर जगह खिचड़ी में घी के जैसे घुल जाती है उसके छोटे छोटे सपनों में खुशियाँ बड़ी समायी है हर जन्मदिन पर वो एक साल बड़ी हो जाती है बिल्कुल सच है बेटियाँ जल्दी बड़ी हो जाती है बच्चों में जान उसकी अटकती नहीं किसी से वो डरती हम सबकी वो दुलारी है सहेलियों को भी उतनी ही प्यारी है मेरे घर की वो धुरी आँगन में तितली सी मंडराती हैं नाक पे बैठा गुस्सा उसको डांट बड़ी पड़वाता है दुजे ही पल वो मुसकाती है भाई को बड़ी धमकाती है कभी कभी मुझसे भी होड़ कर जाती है जब दो लाईने लिखकर निबन्ध में प्रमाणपत्र वो पाती है कभी सम

पश्चिम बंगाल और सिक्कीम की मेरी यात्रा

२३ अप्रैल - सुबह की किरणें आज मेरे कमरे में नहीं आ रही थी.....अलसायी आँखों से मैने खिड़की के बाहर देखा....घने पेड़ों ने मेरी सिहरन बढ़ा दी । मैने बच्चों को उठाया,उनके कमरे की खिड़की से कंचनजंघा पर्वतमाला दिख रही थी और उसकी खुबसुरती बयां करने की नाकाम कोशिश मैं यहाँ नही करना चाहुंगी । चाय नाश्ते के बाद हम घुमने के लिये निकल गये ।सबसे पहले हमे माॅनेस्टरी जाना था और थोड़ी ही देर में हम दार्जिलींग की "माॅनेस्टरी" के सामने थे । माॅनेस्टरी के चारो तरफ लहराते झंडे वातावरण में आस्था घोल रहे थे और लग रहा था कि अतिथियों के स्वागत में उनके रंग कुछ ज्यादा ही सुर्ख हो गये हो ।सुबह का समय था,प्रार्थना हो रही थी,हमे थोड़ी देर इंतजार करना पड़ा । संशय नहीं कि माॅनेस्टरी बहुत संुदर थी लेकिन मिरिक की माॅनेस्टरी निश्चित रूप से मुझे लुभाने में थोड़ी अधिक कामयाब रही । हमने फोटोग्राफ्स खींचे और वहाँ से "राॅक गार्डन" के लिये निकल चले । "राॅक गार्डन",पर्यटकों को आकर्षित करने के लिये बनाया गया था और यह "चंडीगढ़" के राॅक गार्डन से पूरी तरह भिन्न था । एक पतली सी पगडंडी

पश्चिम बंगाल और सिक्कीम की मेरी यात्रा

२२अप्रेल -                रोज की तरह आज भी यह एक खुशनुमा ताजगी भरी सुबह थी ,नाश्ता करने के बाद हमे पीलिंग के लिये निकलना था और रास्ते में "रीवर राफ्टींग" के लिये रूकना था,रौनक इस बात को लेकर बहुत उत्साहित था । मैं बहुत जल्दी उठ चुकी थी और बेसब्री से ज्योतिष के चाय लाने का इंतजार कर रही थी । मन थोड़ा उदास भी था क्योकि मैं सूर्योदय देखने "टाईगर हिल" नहीं जा सकी थी । मेरी नजर शगुन पर पड़ी, जो गहरी नींद में सोयी थी । अब उसकी तबियत थोड़ी ठीक लग रही थी मतलब मेरा आगे का दिन अच्छा जाने वाला था इसलिये मैंने एक झटके में अपने मायूस मन को दूर भगा दिया ।कड़क चाय की प्याली ने गजब का असर किया और मैं आनन फानन तैयार हो गयी...... नाश्ते में थोड़ा समय था । हम होटल के बाहर चहल कदमी कर रहे थे कि ज्योतिष ने बताया कि होटल के पीछे जाइये , पूरा कंचनजंघा आपको नजर आयेगा । लगे हाथ हम वहाँ पहुंच गये । मैं स्तब्ध थी और मन ही मन अफसोस कर रही थी कि पिछले दो दिनों में मैंने ये खुबसूरती क्यों नहीं देखी । सात बजे का समय था, मौसम एकदम साफ था इसलिये कंचनजंघा की खुबसूरती पूरे शबाब पर थी,सूरज की सुन

पश्चिम बंगाल और सिक्कीम की मेरी यात्रा

"घुम" की सर्दीली रात में एक गहरी नींद के पश्चात अलसुबह सूरज की पहली किरण मेरे कमरे की खिड़की से मुस्कूरा रही थी । मैंने भी खिड़की खोलकर खुली बाँहों से इन नन्ही किरणों का स्वागत किया और अपने सर्द कमरे में पसरने का मौका दिया । .....तभी दरवाजे पर दस्तक हुई, खोला तो सामने ज्योतिष को चाय की केटली के साथ खड़ा पाया । मैने चार चाय ली और और बच्चों को उठाया ।कड़क चाय की चुस्कियों के साथ मैं एक खुबसूरत दिन की शुरूआत करने वाली थी । आज हम पूरा दिन दार्जिलींग की वादियों में सैर करने वाले थे,हमने फटाफट अपना नाश्ता किया और भगवती भाई के साथ निकल पड़े । रास्ता बहुत मनभावन था और सर्द हवा का झोंका , हमारी शीशे चढ़ी गाड़ी में भी आकर हमारी सिहरन बढ़ा जाता था । मेरा मन इन वादियों में हिंडोले लेने लगा,हालांकि लेह की वादियाँ और यादें अभी भी मेरे मन मस्तिष्क पर अपना कब्जा जमाये थी । सबसे पहले हम चिड़ियाघर देखने गये । वहाँ पर हमने लाल पांडा देखा,जिसे हमने पहले कभी नहीं देखा था ।चिड़ियाघर के ही एक तरफ संग्रहालय था जहाँ पर हमे पर्वतारोहण से संबंधित चीजों की जानकारी दी गई । रौनक और शगुन बड़ी दिलचस्पी

HT NO TV DAY

आजकल कुछ खास दिनों को मनाने का प्रचलन बहुत जोरो पर हैं, जैसे hug day,rose day,kiss day,chocolate day,mothers day,fathers day,daughters day,smile day और भी ना जाने क्या क्या ।लेकिन इन सब के बीच "हिन्दुस्तान टाइम्स" एक नई पहल लेकर आया है और पिछले दो सालों से इस मुहिम को सफल भी बना रहा है । HT NO TV DAY एक सार्थक प्रयास ।           पिछले दो सालों में HT ने ना केवल यह शुभ कार्य प्रारम्भ किया बल्कि इसे सफल बनाने के लिए भी भरसक प्रयत्न किये और निसन्देह: वह इसके लिये बधाई के पात्र है ।            इस "बुद्धु बक्से" ने हमारी भावी पीढ़ी को पूरी तरह से अपने चक्रव्यूह में फंसा लिया है ।गृहिणीयों की रचनात्मकता और कुशलता भी इसको भेंट चढ़ गई । जो समय परिवार के नाम होता है,वो समय भी ये डकार गया । हमे सब पता है फिर भी........... ।             मैं यहाँ TV के गुण और दोष नहीं गिनाने वाली हुँ ,वो तो हम सब को पता है ।मेरी इस post का पूरा श्रेय है HT की टीम को , जिनके जज्बे ने हम सबको प्रेरित किया tv बंद करने को ।मैं पिछले एक सप्ताह से पेपर में इनकी गतिविधियाँ देख रही हुँ और कही ना

पश्चिम बंगाल और सिक्कीम की मेरी यात्रा

.......बस के हिचकोलों के साथ अपनी सांसों के उतार-चढ़ाव को संयत करते हुए हम आखिरकार अपने होटल जगजीत तक पंहुच ही गये । ठंड हमे कपकपां रही थी,हम जल्दी से अपने अपने कमरों में जाना चाहते थे । बच्चों का कमरा हमारे कमरे से लगकर ही था । बच्चों को मौसम का विकराल  रूप बिल्कूल अच्छा नहीं लग रहा था ।            थोड़ी ही देर में हम सब रात के खाने के लिए dining hall में गये जो कि ऊपर की मंजिल पर था,वहाँ हम सभी साथी यात्रियों का आपस में परिचय हुआ । मुझे पता चला कि साथ वाली दोनो आंटी आपस में समधन हैं और बड़ी वाली आंटी जो कि ७५ वर्ष की है ,रिटायर्ड डाॅक्टर हैं,दुसरी आंटी म्युजिक टीचर है । मेरे बच्चों को दोनो आंटीज् बड़ी मस्त (उनकी भाषा में) लगी ।खाना बहुत लजीज़ था।हमे दुसरे दिन के कार्यक्रम के बारे में बताया गया । २२अप्रेल -                    सुबह का नाश्ता करने के बाद हम लोग माॅनेस्टरी देखने गये,जो कुछ ही कदमों की दूरी पर थी ।हमारे होटल से माॅनेस्टरी पास ही दिख रही थी ।हम आठ के समुह में थे और चढा़ई वाले रास्ते से चल पड़े । स्थानीय लोगो से रास्ता पूछते-पूछते हम बढ़ रहे थे,थोड़ी ही देर में हमार

पश्चिम बंगाल और सिक्कीम की मेरी यात्रा

मैं बहुत उत्साहित थी,अपनी इस यात्रा को लेकर । पूरे दो सालों के बाद , फुर्सत के कुछ पल जूटा पाई थी मैं । हालांकि लेह की यादें अभी भी मेरे जेहन में ताजा थी,लेकिन एक नया पड़ाव मुझे अपनी ओर खींच रहा था ।        २१अप्रेल की हमारी "बुकिंग" लगभग तीन महीनों पहले हो चुकी थी। हमारी तैयारियाँ भी काफी समय पहले शुरु हो चुकी थी.....और फिर मुम्बई की चिपचिपाहट वाली गरमी भी जैसे हमे किसी पर्वतीय स्थल पर धकेल रही थी......। २१अप्रेल :- हमारा "ट्यूर" बागडोगरा से प्रारम्भ हुआ। मुम्बई से बागडोगरा की हमारी यात्रा दो चरणों में पूरी हुई.....। सुबह करीब साढ़े तीन बजे हम घर से निकले.... हवाईअड्डे की औपचारिकताओं को निपटा कर छः बजे हमने उड़ान भरी,आठ बजे तक हम दिल्ली पहुंचे और दुसरी हवाईयात्रा का इंतजार करने लगे,जो कि ११ बजे की थी । दिल्ली हवाईअड्डे की खुबसूरती निहारने में कब ११ बज गये पता ही नहीं चला ।अब हम हमारे गंत्व्य स्थल की यात्रा की ओर अग्रसर थे.....और १२:३० पर हम बागडोगरा हवाईअड्डे पर खड़े थे ।        हमारा "ट्यूर मैनेजर" हमारे स्वागत के लिए पहले से ही वहाँ मौजूद थ

सूरज और मैं

पूरे दिन का थका-मांदा ढलता सा सूरज कल रात; मेरे आंगन के एक कोने में आ छुपा रात के साये से घबराया सिमट रहा था मेरे ही आँचल में मैंने कहा,चलो बतियाए थोड़ा देख के स्नेह मेरा उसने भी मौन तोड़ा उसे सहमा सा देखा तो खुद पे हुआ गुमां और कह बैठी सूरज से कि तुझमे हैं ज्वाला इतनी तो लौ मुझमे भी कम नहीं तेरे जितना तेज ना सही लेकिन; मैं भी किसी से कम नहीं जिस सृष्टी को देते हो तुम उजाला सोचो जरा कौन है उसे जन्म देने वाला तुम तो रात के सायों में खो जाते हो सितारों के आगोश में सो जाते हो लेकिन मैं........ खुद ही सितारों की चूनर बन जाती हूँ और तुम जैसों को अपने आँचल मे सहलाती हूँ मेरी बातें सुन,सूरज मुस्कुराया और बोला हँस कर तु तो है वो नन्हा सा दिया जिसकी लौ पे सबने अभिमान किया मेरी ज्वाला किसी से सही ना जाए लेकिन तेरी लौ सबको पास बुलाए तुने पूछा........क्या हूँ मैं ? मैं तो बस तेरे माथे पे सजा सिंगार हूँ......... ऐसा कह चला गया वो नन्हा सा सहमा सा सूरज आसमां को सिंदूरी करने अपनी किरणों को मेरे आँगन मे छोड़.......... Proud to be a woman