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चाँद चौथ का

सहेज के रखी , अपनी ब्याह की चुनडी  आज फिर से मैं निकाल लाई  सात फेरों के सातों वचन  याद करने की रुत फिर से आई  तेरे हाथों से सजे मांग मेरी  एक बार फिर , फेरों की वह बात याद आई  ललाट पर कुमकुम , मांग में तारे  जैसे आँगन में मेरे  झूमते हो चाँद-सितारे  मेहंदी से रची हथेली, चूड़ियों से भरी कलाई  माथे पे सजा सिन्दूर , गालों  पे आई ललाई  कर-कर के श्रृंगार मैं मुसकाई  देख के दर्पण , खुद से ही शरमाई  यह जादू है आज के दिन का  सज-सज के सजना के लिए  एक प्रोढ़ा भी दुल्हन सी जगमगाई  यौवना हो या प्रोढ़ा रूप तो आज सबपे है टुटा  करके श्रृंगार देखेगे चाँद से झरता प्यार  यह जादू है आज के दिन का  बिखेरेगा प्यार .....देगा दीदार  झूम के निकलेगा चाँद .......हाँ .................चाँद करवा चौथ का ! करवा चौथ की हार्दिक बधाइयाँ