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मार्च, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

परीक्षा बनाम अग्निपरीक्षा

परीक्षा भवन में आज गहरा सन्नाटा था रह रह कर मेरा दिल घबरा रहा था  सुबह की घटनाओ को याद कर  ना जाने क्यों आँखे भी फटी सी रह गई , जहा थी वही अचल सी मैं रह गई  धडकनों की आवाज़ लगने लगी ऐसे  नगाड़ो पर पड़ रहे हो हथोड़े जैसे  एक सौ साठ प्रति मिनिट हो रही थी ह्रदय गति  कुछ उपाय समझ ना आया , घूम गई मेरी मति  कांप गई मैं पूरी की पूरी , हाथ पावँ थरथराने लगे  सुबह के दृश्य चलचित्र की भांति मेरे सामने आने लगे  सुबह सुबह गधा भी आज बांयें से गुजरा था  निगोड़ी काली  बिल्ली ने भी रास्ता मेरे काटा था  राशिफल भी कुछ अच्छा ना था , अनिष्ट के घटित होने का उसमे पक्का वादा था  लेकिन फिर भी मै बड़ी बहादुरी से चली आई थी परीक्षा देने  लेकिन अब ; परीक्षा भवन के सन्नाटे से मेरा दिल घबरा रहा था  अनिष्ट के घटित होने का ख्याल दिल में बार बार आ रहा था  परचा मिलने में समय था अभी बाकी  कि तभी मुझे याद आया , अरे ! आज सुबह तो आँख भी मेरी फड़की थी  कोसने लगी मैं खुद को , किस बुरी घडी में मैंने घर से निकलने की  ठानी थी  खैर , घडी ने साढे सात बजाए पर्चे बांटने को सर परीक्षा भवन

माँ हूँ तुम्हारी

एक कविता मेरे बेटे के नाम उसके जन्मदिन पर             चाहती हूँ मैं  कि मेरी खुशियाँ तुम्हे लग जाये  और , तुम्हारे दुखों को मैं अपना लू  आँख में आये आंसू तुम्हारे  तो अपनी पलकों में सहेज लू  कही मिले ना आसरा तुझे  तो अपने आँचल में समेट लू  हंसो जब तुम  तो तुम्हारी मुस्कुराहट को गले लगा लू  जब ख़ुशी से चमके तुम्हारी आँखे  तो उसे अपनी कामयाबी बना लू  गलत राह भी ग़र चलो तुम  तो वो राह भी तुम्हे चुनने ना दूँ  क्योकि ; माँ हूँ तुम्हारी  चाहती हूँ तुम्हे परिपूर्ण देखना 

माँ मुझे जन्म दो

माँ मुझे मत मारो मैं तुम्हारा ही एक हिस्सा हु  तुम्हारी कोख में पल रहा  एक अधूरा ख्वाब हु मैं  जिसे देख रही हो तुम पिछले तीन महीनों से तुम चाहती हो वो कलाई  जिस पर दीदी राखी बांधे वो ललाट जिस पर दूज का टिका सजे  और अब  तुम्हारा मन विचलित है  क्योकि तुम्हे मेरी पहचान हो गई है  जब से तुम्हे मेरे बारे में पता चला है  तुमने तैयारियां शुरू कर दी  मुझे मार डालने की  लेकिन माँ  मेरा क्या कुसूर ? तुम कहती हो  पापा को वारिस चाहिए  दादी को वंश बढ़ाना है  लेकिन माँ  ये तो बहाना है  क्योकि प्रश्नचिन्ह तो तुम्हारे ही मन में है  तुम खुद नहीं चाहती कि मैं जन्म लू माँ मुझे याद है  जब तुम्हे पहली बार मेरा अहसास हुआ  तुम बहुत खुश थी  और मैं भी  मैं जल्द से जल्द इस दुनियां में आना चाहती थी  तुम्हारी गोद में समा जाना चाहती थी  तुम्हारी मधुर आवाज़  कोमल स्पंदन सब कुछ मुझे आनंदित कर देता था  लेकिन धीरे-धीरे  तुम्हारे ख्याल ख्वाब मुझे समझ आने लगे  मैं नन्ही जान  डर गई  क्या होगा ? जब तुम्हे मेरे अस्तित्व का पता चलेगा  माँ, मेरा द

आज होली है

आज होली है सब रंगे एक ही रंग में नकाब पे चढ़ गया एक और नकाब पहले ही ना पहचाने जाते थे अब तो पहचानना और मुश्किल हो गया नकाबपोशों की इस दुनियां में चलो चलते है चुराते है कुछ रंग खुशियों के और सजाते है जिंदगी का इन्द्रधनुष जला देते है होली उन कडवी यादों की जो गाती है दास्ताँ बेरंग से ज़ज्बातों की चलो , चुराते है कुछ रंग क्योकि , आज होली है रंगों से भरी पिचकारी है हर रंग में रंगी दुनिया सारी है आज होली है